घरों, प्रतिष्ठानों में की गई गणेश-लक्ष्मी की पूजा
प्रयागराज (राजेश सिंह)। आसमान से रोशनी का पर्व दीपावली हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बृहस्पतिवार की रात रोशनी से नहा उठी। भवनों की जगमगाहट मन-मस्तिष्क को भी रोशन कर रही थी। रात होते ही सतरंगी आतिशबाजी से आसमान जगमगा उठा। धमाकों की आवाज खुशी और उल्लास को बयां कर रही थी।
मठों, मंदिरों में भी पूजन संग दीपों और झालरों से जमकर सजावट की गई। प्रतिष्ठानों, दुकानों, गोदामों के अलावा पार्क, चौराहों और दफ्तरों में बिजली की झालरों पर जोर रहा तो घरों में दीयों के साथ मोमबत्तियां भी जलाई गईं। पूजास्थल पर लक्ष्मी-गणेश की पूजा कर आरती उतारी गई।
दीपों की रोशनी के बाद बच्चों की आतिशबाजी का दौर शुरू हुआ। बड़ों की अंगुलियां थामे बच्चे बाहर खुली जगह या पार्क में इकट्ठा हुए। शुरुआत फुलझड़ियों से हुई, फिर अनारों और तेज आवाज वाले बम, पटाखे देर रात तक बजते रहे।
दीपावली पर घरों में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान तो बने ही,परंपरा के मुताबिक ज्यादातर घरों में ओल, सूरन की सब्जी और पकौड़ी भी बनाई गई। सब्जी मंडियों में सूरन की अधिक मांग रही। छोटे बाजारों में भी ठेले पर सूरन बिके।
दीपोत्सव पर बलुआघाट, गऊघाट और बरगद घाट दीपमालाओं की लड़ियों से जगमगा उठा। संगम की रेती से लेकर गंगा, यमुना, विलुप्त सरस्वती की सुरम्य लहरों तक तैरते दीयों से धरा पर तारामंडल सरीखी छटा हर किसी का ध्यान खींचने लगी। सांझ ढलने के साथ ही दीप जलाने वालों की भीड़ लग गई। घर-घर से दीपोत्सव को यादगार बनाने के लिए लोग निकल पड़े। बच्चे, महिलाएं संगम पर गंगा, यमुना, सरस्वती के नाम से अलग-अलग दीये जला रहे थे। श्रद्धालुओं ने नावों से मध्यधारा में पहुंचकर दीये जलाए।