प्रयागराज (राजेश सिंह)। ज्योति पर्व दीपावली पर बृहस्पतिवार को झूंसी स्थित क्रियायोग आश्रम एवं अनुसंधान संस्थान में दुनिया के कई देशों के अनुयायियों के बीच दीपोत्सव के उल्लास की वैज्ञानिक विधि क्रियायोग अभ्यास के जरिए बताई गई। क्रियायोग गुरु स्वामी योगी सत्यम ने इस पर्व पर प्रेम-अहिंसा की ज्योति जलाने का संदेश दिया। उनका कहना था कि दुनिया के कई देश हिंसा और अशांति की आग में झुलस रहे हैं। वहां शांति की स्थापना क्रियायोग अभ्यास के माध्यम से हो सकती है।
महाअवतार वटवृक्ष के नीचे क्रियायोग ध्यान में धनतेरस व दीपावली के वास्तविक स्वरूप की उन्होंने व्याख्या की। बताया कि क्रियायोग ध्यान में ही दीपावली के वास्तविक स्वरूप का दर्शन होता है। हम जितने पर्व, त्योहार उत्सव के रूप में मनाते हैं उन सभी का लक्ष्य मानवता को सत्य व अहिंसा के परिवेश में लाना है। आत्मज्ञानी ऋषि-मुनियों ने अनुभव किया है कि सभी प्रकार के उत्सव का लक्ष्य प्रेम-शांति का वातावरण बनाना है।
धन और निधन के अंतर को भी उन्होंने समझाया। बताया कि निधन तब होता है जब किसी के अंदर से अद्भुत शक्ति निकल जाती है, जिसे आत्मा या प्राण कहते हैं। इसी को धन कहते हैं। जबकि, निधन प्राण का निकल जाना होता है। ऐसे में हमे धन रूपी आत्मा के संचय को समझना चाहिए। इसके बिना शांति की भून नहीं मिटाई जा सकती। आत्मा रूपी इस धन का सही सदुपयोग तभी है जब संपूर्ण मानवता के बीच प्रेम और शांति की स्थापना हो।