मुंबई। 1990 में प्रदर्शित हुई एक्शन ड्रामा फिल्म ‘अग्निपथ’ को समीक्षकों से मिश्रित प्रतिक्रिया मिली थी। कुछ ने इसकी कहानी और एक्शन को पसंद किया, जबकि कुछ ने इसे हिंसक और अतिरंजित बताया। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और इसे एक कल्ट क्लासिक का दर्जा दिया जाता है। इस फिल्म से जुड़ी यादें साझा कर रही हैं रोहिणी हट्टंगडी...
कविता से मिला फिल्म का शीर्षक
कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘अग्निपथ’ से निर्देशक मुकुल आनंद की फिल्म ‘अग्निपथ’ का शीर्षक लिया गया था। आज (16 फरवरी) फिल्म के प्रदर्शन को 35 साल पूरे हो रहे हैं। कल्ट फिल्मों में शामिल इस फिल्म के सेट का हर दिन आज भी अभिनेत्री रोहिणी हट्टंगडी (त्वीपदप भ्ंजजंदहंकप) को याद है। फिल्म में उन्होंने विजय दीनानाथ चौहान की मां सुहासिनी चौहान की भूमिका निभाई थी।
मां के रोल के लिए तोड़े अपने बनाए नियम
रोहिणी बताती हैं, ‘उस दौरान मुझे मां के रोल खूब ऑफर होते थे। मैंने अपने सेक्रेटरी से कहा था कि मां का रोल नहीं करना है। उन्होंने कहा कि यश (निर्माता यश जौहर) जी चाहते हैं कि आप ही यह रोल करें। जब मैं स्क्रिप्ट सुनने पहुंची, तो मैंने कहा रोल अच्छा है और किरदार भी अहम है, इसलिए कर रही हूं। जब शूटिंग शुरू होने वाली थी, उस दौरान मेरी सास बहुत बीमार थीं। उन्हें कैंसर था। मैं यश जी को फिल्म के लिए मना करके चली गई और पांच-छह दिनों में मेरी सास का निधन हो गया। मेरे सेक्रेटरी ने बताया कि यश जी अब भी मेरे लिए रुके हैं, जबकि नटराज स्टूडियो में सेट खड़ा था। मैंने दो दिन मांगे और शूटिंग शुरू कर दी। इतने सारे बड़े कलाकार होने के बावजूद यश जी मेरे लिए रुके थे। ऐसे में जब मुझे इस फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला था, तो मैंने वह अवार्ड यश जी को ही समर्पित किया था।’
रोहिणी ने भले ही मां की भूमिका निभाई, लेकिन वह उम्र में अमिताभ बच्चन से छोटी थीं। इस पर रोहिणी हंसते हुए कहती हैं, ‘मेरे जितने ऑनस्क्रीन बच्चे रहे हैं, फिर चाहे वह धरम जी (धर्मेंद्र), जीतू (जीतेन्द्र) जी या अमित जी हों, सब मुझसे बड़े रहे हैं। अमित जी के साथ पहले मैं फिल्म ‘शहंशाह’ कर चुकी थी। इसमें वह मुझे अलग लगे। मैंने उनसे कहा कि तब से अब में किरदार के प्रति आपका एप्रोच बदला है। उन्होंने कहा वो मजेदार फिल्म थी, यह कुछ अलग है, मैं चाहूंगा दर्शक अपनी कुर्सी पर थोड़ा आगे आकर यह फिल्म देखें।’
अमिताभ की बदली आवाज का किस्सा
अमित जी ने इस फिल्म के लिए अपनी आवाज काफी बदली थी, जिसके बाद खूब हल्ला हुआ कि यह तो अमित जी की आवाज नहीं लग रही है, फिर उन्हें अपनी सामान्य आवाज में डबिंग करनी पड़ी थी। रोहिणी कहती हैं, ‘मैं उदास हो गई थी, क्योंकि उनकी जो पहली वाली रफ आवाज थी, वह किरदार को सूट कर रही थी।’
सेट पर हुआ मजेदार किस्सा
रोहिणी एक और किस्सा साझा करते हुए बताती हैं, ‘गोवा में एक तरफ गांव का सेट लगा था, सामने विलेन कांचा चीना की कोठी थी, दोनों काफी साफ-सुथरे थे। मुकुल जी को दिखाना था कि जब गांव में मास्टर दीनानाथ चौहान होते हैं, तो वह आदर्श गांव होता है, लेकिन कोठी की हालत खराब होती है। दीनानाथ की मौत के बाद कांचा चीना के हाथों में सत्ता आने के बाद गांव की हालत खराब और कोठी की हालत अच्छी हो जाती है। उसी दौरान मेरा और नन्हे विजय का गांव छोड़कर जाने वाला सीन शूट हो रहा था। फिल्म में विजय के बचपन का रोल करने वाले मास्टर मंजुनाथ आठ साल के थे, उन्होंने यश जी को पूछा, ‘अंकल ये क्या हो रहा है?’ यश जी का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था, उन्होंने कहा, ‘मेरी पिटाई कर रहे हैं।’
वे आगे बताती हैं, ‘फिल्म में हर पात्र के लुक पर भी खास ध्यान दिया गया था। फिल्म में अस्पताल के एक सीन में मिथुन (चक्रवर्ती) का पात्र नारियल के पैसे लेने आता है। फिल्म की एडिटिंग भी साथ हो रही थी। मुकुल जी को मेरा लुक सही नहीं लग रहा था। वह मेरे लुक को थोड़ा स्वतंत्रता सेनानी का रंग देना चाह रहे थे। उन्होंने मुझे खादी की साड़ी और गोल चश्मा दिया। मैं जब तैयार होकर आई तो उन्होंने मेरे बालों को थोड़ा सा ऊपर-नीचे कर बिगाड़ दिया और कहा, ‘अब ठीक है।’ बिखरे हुए बाल, खादी की साड़ी, गोल चश्मा उस दौर की मां के लुक, जिसमें सफेद साड़ी हुआ करती थी, से काफी अलग मगर सशक्त था।’