श्रीमद्भागवत कथा में कृष्ण रास लीला के वर्णन पर झूमे श्रोता
लालापुर प्रयागराज (मंगला प्रसाद तिवारी)। श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान कथा करमा बाजार समीप पण्डितपुर गांव में पंडित सुरेश चन्द्र द्विवेदी के घर पर लगातार चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठां दिवस श्रीकृष्ण रास लीला कथा का प्रारम्भ करते हुए कथा वक्ता आचार्य पंडित परम् पूज्य श्री प्रभाकर मिश्र जी महाराज व्यास ने भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन करते हुए बताया है कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम बढ़ाने को नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान पर अपने सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया। लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया उसे ही परास्त होना पड़ा रास लीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है गोपी गीत पर बोलते हुए व्यास जी ने कहा कि जब तक जीव में अभिमान आता है। भगवान उससे दूर हो जाता हैं। लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर आग्रह करते हैं उसे दर्शन देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह को सुनाते हुए बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मिणी के साथ सम्पन्न हुआ। लेकिन रुक्मिणी को श्रीकृष्ण हरण कर विवाह किया गया।इस कथा समझाया गया कि रुक्मिणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और नारायण से दूर नहीं रह सकती यदि जीव अपने धर्म अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगायें तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है।धन को परमार्थ में लगाना चाहिए।जब कोई पर लक्ष्मी नारायण की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती है। श्रीकृष्ण भगवान रुक्मिणी के अतिरिक्त अन्य विवाहों का वर्णन किया गया कथा के दौरान पंडित आचार्य श्री प्रभाकर मिश्र व्यास ने भजन प्रस्तुत किया और का मन मोहा कहां छुपा हो रसिया, मुरली वाले अजा तेरी याद सतायें यादों के भरोसे कही टूट न जाये, निगाहें मिलाने को जी चाहता है, मोहन तेरे दर पे आने को जी चाहता है, दिल की धड़कन गीत तेरे गाये, रोती है अखियां नीर बहाये रे, कैसे समझाये,नैह लगाया प्रीति लगाई प्यारे, कन्हैया मेरे कृष्ण कन्हाई, दूं मै दुहाई, राधा बुलाये गोपी या बुलाये आओ कन्हैया हम रास रचायें रे , रे अनु,हर्शायें, छुपा कहां आजा छलिया, मुरली वाले आजा तेरी याद सतायें।
घनश्याम तेरी बंशी पागल कर जाती है, मुस्कान तेरी मीठी घायल कर जाती है, सोने की होती जो ,न जाने क्या करती जब बांस की होकर यह दुनिया को नचाती हैं। तुम गौरे होते तो ना जाने क्या करते, जब काले रंग पे यह दुनिया मर जाती है। कभी रास नचाने को, कभी बंशी बजाते हो,कभी माखन खाने को मन में आ जाती है। घनश्याम तेरी बंशी पागल कर जाती है। पूर्व प्रधान समाजसेवी बालकृष्ण द्विवेदी उर्फ भइयन ने आचार्य पंडित श्री प्रभाकर मिश्र सम्मानित करते हुए आर्शीवाद लिया। श्रीमद्भागवत कथा मुख्य श्रोता पंडित सुरेश चन्द्र द्विवेदी सपत्नी सावित्री देवी,व कृष्ण चन्द्र द्विवेदी सपत्नी सूर्यवती देवी व हरिश्चंद्र द्विवेदी, जानकी रमन कुन्ज स्वर्गद्वार अयोध्या धाम के महंत दिवाकर मिश्र, पीयूष द्विवेदी,पंकज द्विवेदी, पुष्कर द्विवेदी, सुमित पाण्डेय, राधेश्याम मिश्र, सरस पाण्डेय, हिमांशु द्विवेदी शिवा द्विवेदी सीताराम द्विवेदी आयूष पाण्डेय प्रीत द्विवेदी शुभ द्विवेदी मुन्ना शुक्ला गप्पू मिश्र सहित क्षेत्रीय स्नेहिल परिवार श्रीमद्भागवत कथा पण्डाल प्रांगण में उपस्थित रहे।