जब राजधानी में ही बेतरतीब विकास हो रहा हो तब देश-दुनिया इस पर यकीन कैसे करेगी कि भारत तेजी से तरक्की करता देश है? अब दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आ गई है। रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथी महिला सीएम बनी हैं। ऐसे में केंद्र और दिल्ली की डबल इंजन की सरकार पर दारोमदार है कि वह देश की राजधानी की सूरत बदलें...
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार की विधायक रेखा गुप्ता का चयन कर एक बार फिर चकित किया। रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदारों में नहीं थीं, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उन्हें ही इस पद के लिए उपयुक्त माना। उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर महिला सशक्तीकरण का संदेश तो दिया ही गया, यह भी बताया गया कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा अलग ढंग से सोचती है।
रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री बनी हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर केवल राजनीतिक संदेश ही नहीं दिया गया, बल्कि दिल्ली भाजपा की उस अंदरूनी राजनीति पर भी विराम लगाया गया, जो किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाने से उभर सकती थी।
दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन वह लंबे समय से केंद्र और राज्य सरकार के बीच झगड़े का शिकार बनी रही। पिछले 10-12 वर्षों में आम आदमी पार्टी सरकार और मोदी सरकार के बीच झगड़ा होता रहा। इसके पहले जब शीला दीक्षित 15 वर्षों तक के लिए मुख्यमंत्री थीं तो उनके शासन काल के प्रारंभिक समय में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। इसके बाद भी दोनों में समन्वय और सहयोग देखने को मिला।
2004 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार आ गई और दोनों सरकारों के बीच सामंजस्य कायम रहा। इसका लाभ दिल्ली को मिला और उसका ठीक-ठाक विकास भी हुआ। इससे दिल्ली की सूरत संवरी। दिल्ली पर केवल राजधानी में रहने वाली आबादी का ही बोझ नहीं है।
वह एनसीआर के शहरों की आबादी के दबाव को भी झेलती है। चूंकि आम आदमी पार्टी सरकार केंद्र सरकार से हर मसले पर उलझती रही, इसलिए बीते दस वर्षों में उसका सही से विकास नहीं हो पाया और उसका आधारभूत ढांचा चरमरा गया। दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में एक बड़ी संख्या में अन्य राज्यों के लोग भी रहते हैं।
उत्तर भारत के लोग बड़ी संख्या में नौकरी की चाह में दिल्ली और एनसीआर के शहरों में आते रहते हैं। इससे दिल्ली के आधारभूत ढांचे पर आबादी का दबाव बढ़ता रहता है। दिल्ली विकास प्राधिकारण यानी डीडीए ने राजधानी के गांवों की जमीनें अधिग्रहित कर नियोजित कालोनियां तो बनाईं, लेकिन उसने गांवों के नियोजित विकास पर ध्यान नहीं दिया।
इससे इन गांवों और उनके आसपास अनियोजित विकास होता रहा और वोट बैंक की राजनीति के कारण वहां नियोजित विकास नहीं किया गया। राजनीतिक नुकसान के भय से दिल्ली के अनियोजित विकास को रोकने के लिए किसी भी दल की सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए। देखना है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दिल्ली के अनियोजित विकास को नियोजित करने के लिए कड़े फैसले ले पाएंगी या नहीं?
दिल्ली में न केवल देश भर के लोग रहते हैं, बल्कि काम के सिलसिले में वे यहां आते भी रहते हैं। ये लोग दिल्ली की दुर्गति देखते हैं और उसकी चर्चा करते हैं। इससे भी दिल्ली की नकारात्मक छवि बनती है। दिल्ली का लुटियंस जोन कहे जाने वाले इलाके की शानो-शौकत अलग ही दिखती है।
यहां केंद्र सरकार के कार्यालय भी हैं और मंत्री, सांसद, नौकरशाहों, न्यायाधीशों के आवास भी। इस क्षेत्र की देखभाल एनडीएमसी यानी नई दिल्ली नगरपालिका परिषद करती है और शेष दिल्ली की एमसीडी अर्थात दिल्ली नगर निगम।
एनडीएमसी और एमसीडी के अधिकार क्षेत्र वाले इलाकों की अलग-अलग सूरत के चलते लोगों को यही संदेश जाता है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के लोगों ने अपने क्षेत्र को तो संवार रखा है, लेकिन बाकी दिल्ली को उसके हाल पर छोड़ रखा है।
यह संदेश इसलिए भी जाता है, क्योंकि बेतरतीब विकास के चलते एमसीडी नियंत्रित इलाकों का आधारभूत ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ दिखता है। इस चरमराए हुए ढांचे से दिल्ली और यहां आने वाले देश-विदेश के नागरिक दो-चार होते रहते हैं। एमसीडी के अधिकार क्षेत्र वाली दिल्ली में टूटी सड़कें तो दिखती ही हैं, यातायात जाम और गंदगी भी नजर आती है।
दिल्ली से बहने वाली यमुना भी बुरी तरह प्रदूषित है। यह भी दिल्ली पर एक दाग है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वोट बैंक की राजनीति के कारण दिल्ली में झुग्गी बस्तियां बन गई हैं। उन्हें नियमित भले कर दिया जाता हो, लेकिन वे नागरिक सुविधाओं से वंचित ही दिखती हैं।
इस सबका देश के नागरिकों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। यह भी किसी से छिपा नहीं कि सर्दियां आते ही दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर बन जाती है। यह न तो दिल्ली की छवि के लिए बेहतर है और न ही मोदी सरकार की प्रतिष्ठा के लिए। ध्यान रहे कि दिल्ली देश की अंतरराष्ट्रीय छवि का निर्धारण करती है।
एक ऐसे समय जब देश को विकसित बनाने की बात हो रही है और हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, तब राजधानी का बेतरतीब विकास दिल्ली के नागरिकों की समस्या बढ़ाता है और देश की छवि को भी नुकसान पहुंचाता है।
आखिर जब देश की राजधानी में ही बेतरतीब विकास हो रहा हो और यहां के लोगों को खुशहाल जीवनयापन करने में कठिनाई पेश आ रही हो, तब देश के आम लोग और साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर यकीन कैसे करेगा कि भारत तेजी से तरक्की करता देश है?
जब राजधानी में बेहतर आधारभूत शहरी ढांचा न हो और यहां नागरिक सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता हो, तब शेष देश के हाल का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। दिल्ली में आधारभूत ढांचे की चुनौतियों को प्राथमिकता के आधार पर दूर करना होगा।
ऐसा होने की उम्मीद इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि अब यहां रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही भाजपा की डबल इंजन सरकार बन गई है। कुछ समय बाद यह सरकार ट्रिपल इंजन भी हो सकती है, क्योंकि एमसीडी में भी भाजपा को बहुमत मिलने के आसार हैं।
अब यह अपेक्षा बढ़ गई है कि दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार और मोदी सरकार के बीच सामंजस्य से शीघ्र ही दिल्ली के नागरिकों को एक सुंदर और प्रदूषण मुक्त राजधानी देखने को मिलेगी। यह अपेक्षा पूरी होनी ही चाहिए।