प्रधानमंत्री ने सही कहा कि महाकुंभ भारत की संस्कृति आस्था और एकता का प्रतीक है। यह ठीक है कि जिस आयोजन में प्रतिदिन एक-दो करोड़ लोगों की भागीदारी होती हो वहां कुछ समस्याएं हो सकती हैं और वे दिखीं भी लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इस आयोजन को विफल बताने की कोशिश की जाए अथवा यह कहा जाए कि श्रद्धालुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है...
मध्य प्रदेश के छतरपुर में बागेश्वर धाम मेडिकल एवं साइंस रिसर्च सेंटर की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाकुंभ का उल्लेख करते हुए जिस तरह कुछ विपक्षी नेताओं पर निशाना साधा, उसकी आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि कुछ लोग वास्तव में अनावश्यक और अनर्गल टीका-टिप्पणी करने में लगे हुए हैं।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि लालू प्रसाद यादव ने किस तरह महाकुंभ को फालतू करार दिया और ममता बनर्जी ने उसे मृत्यु कुंभ की संज्ञा दे दी। इसी प्रकार कुछ अन्य विपक्षी नेताओं ने महाकुंभ को लेकर ऐसे बयान दिए जो वहां जाने वाले लोगों को भयभीत और आशंकित करने वाले थे।
यह स्पष्ट दिखा कि ऐसे बयान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को नीचा दिखाने के लिए तो दिए ही गए, धर्म और आस्था का उपहास उड़ाने के लिए भी दिए गए। यह समझ आता है कि कुछ तथाकथित प्रगतिशील और सेक्युलर लोगों को आस्था से जुड़ा हर पर्व और परंपरा रास नहीं आती, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वे सभी मतावलंबियों के ऐसे धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों पर उसी तरह की टीका टिप्पणी करते हैं जैसी उन्होंने महाकुंभ को लेकर की।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक समागम ही नहीं है, यह भारत की संस्कृति का भी परिचायक है। इस बार महाकुंभ में जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया, वह अकल्पनीय है। विश्व में इतने विशाल जनसमूह को आकर्षित करने वाले धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन की कोई मिसाल नहीं मिलती।
प्रधानमंत्री ने सही कहा कि महाकुंभ भारत की संस्कृति, आस्था और एकता का प्रतीक है। यह ठीक है कि जिस आयोजन में प्रतिदिन एक-दो करोड़ लोगों की भागीदारी होती हो, वहां कुछ समस्याएं हो सकती हैं और वे दिखीं भी, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इस आयोजन को विफल बताने की कोशिश की जाए अथवा यह कहा जाए कि श्रद्धालुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
इसे छिद्रान्वेषी मानसिकता ही कहा जाएगा कि कुछ लोगों ने चुन-चुनकर इस आयोजन की समस्याओं को गिनाने में अतिरिक्त दिलचस्पी दिखाई और इस क्रम में वहां मची भगदड़ का जिक्र करते हुए यहां तक कहा कि उसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई है। यह गैरजिम्मेदारी के अतिरिक्त और कुछ नहीं। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों को कठघरे में खड़ा किया, क्योंकि वे हिंदू आस्था पर जानबूझकर प्रहार ही कर रहे थे।
ऐसा लगता है कि महाकुंभ पर मीन-मेख निकालने वाले विपक्षी नेता यह विस्मृत कर बैठे कि भाजपा भारतीय संस्कृति के परिचायक आयोजनों को सदैव ही विशेष महत्व देती है और यदि उसने महाकुंभ के संदर्भ में ऐसा ही किया तो यह समय की मांग थी, क्योंकि इसमें करोड़ों लोगों की भागीदारी सुनिश्चित थी। अच्छा हो कि विपक्षी नेता यह समझें कि ऐसे आयोजनों पर उनकी बेजा टिप्पणियां उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान ही पहुंचाती हैं।