नई दिल्ली। बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के कारण अगले पांच वर्षों में कृषि और आवास कर्ज के 30 प्रतिशत में चूक का जोखिम बढ़ सकता है। वैश्विक कंसल्टेंसी फर्म बीसीजी के एक विश्लेषण में यह आशंका जताई गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ रही है और कृषि उत्पादन घट रहा है।
रिपोर्ट में जानकारी आई सामने
रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का लगभग आधा कर्ज प्रकृति और उसके इकोसिस्टम पर काफी हद तक निर्भर है, इसलिए कोई भी प्राकृतिक आपदा उनके मुनाफे को प्रभावित करती है। अनुमान के मुताबिक, 2030 तक भारत के 42 प्रतिशत जिलों में तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। इसलिए, अगले पांच साल में तापमान वृद्धि से 321 जिले प्रभावित हो सकते हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन बैंकों को देश की ऊर्जा परिवर्तन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिवर्ष 150 अरब डालर का अवसर भी प्रदान करता है, क्योंकि 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण काफी कम है।
भारत में भी बदलाव की आवश्यकता
बीसीजी के प्रबंध निदेशक अभिनव बंसल ने कहा कि भारत कोयले और तेल से दूर होकर नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत को यह बदलाव लाने के लिए सालाना 150-200 अरब डॉलर का निवेश करना होगा। इसके विपरीत, भारत में जलवायु वित्त 40-60 अरब डालर के बीच है, जिससे 100-150 अरब डॉलर का अंतर पैदा हो रहा है। यह परिवर्तन अवसरों का परिदृश्य तैयार करेगा। हालांकि, हम लक्ष्य से बहुत दूर हैं।