नई दिल्ली। जनसेना पार्टी के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने शुक्रवार को तमिलनाडु के नेताओं की आलोचना की और कहा कि राज्य में कथित तौर पर हिंदी थोपने का आरोप लगाना पाखंड है। उन्होंने कहा कि ये नेता हिंदी का विरोध करते हैं, लेकिन वित्तीय लाभ कमाने के लिए तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करवाते हैं। इस बयान के बाद उन्होंने इस बात को भी साफ कर दिया कि उन्होंने कभी हिंदी को विरोध नहीं किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, ष्किसी भाषा को जबरन थोपा जाना या किसी भाषा का आंख मूंदकर केवल विरोध किया जाना, दोनों ही प्रवृत्ति हमारे भारत देश की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक नहीं हैं।
उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने लिखा, मैंने कभी भी हिंदी भाषा का विरोध नहीं किया। मैंने केवल इसे सबके लिए अनिवार्य बनाए जाने का विरोध किया। जब एनईपी-2020 खुद हिंदी को अनिवार्य तौर पर लागू नहीं करता है, तो इसके लागू किए जाने के बारे में गलत बयानबाजी करना जनता को भ्रमित करने के अलावा और कुछ नहीं है।ष्
एनईपी-2020 के अनुसार, छात्रों के पास एक विदेशी भाषा के साथ-साथ कोई भी दो भारतीय भाषाएँ (अपनी मातृभाषा सहित) सीखने की सुविधा है। यदि वे हिंदी नहीं पढ़ना चाहते हैं, तो वे तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी, संस्कृत, गुजराती, असमिया, कश्मीरी, ओडिया, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, बोडो, डोगरी, कोंकणी, मैथिली, मैतेई, नेपाली, संथाली, उर्दू या कोई अन्य भारतीय भाषा चुन सकते हैं।-आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण
जनसेना पार्टी के प्रमुख ने आगे लिखा, बहुभाषी नीति छात्रों को अधिकाधिक विकल्प प्रदान करने, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और भारत की समृद्ध भाषायी विविधता को संरक्षित करने के लिए बनाई गई है। राजनीतिक एजेंडे के तहत इस नीति की गलत व्याख्या करना और यह दावा करना कि मैंने इसपर अपना रुख बदल दिया है, केवल पारस्परिक समझ की कमी को दर्शाता है।
हिंदी का विरोध कर रहे नेताओं और अभिनेताओं पर निशाना साधते हुए पवन कल्याण ने कहा था कि वे बालीवुड से पैसा चाहते हैं, लेकिन हिंदी को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। यह किस तरह का तर्क है। देश की भाषाई विविधता पर जोर देते हुए कल्याण ने कहा कि देश को तमिल समेत कई भाषाओं की जरूरत है, न कि सिर्फ दो प्रमुख भाषाओं की। हमें भाषाई विविधता को अपनाना चाहिए।