मीरजापुर (रविन्द्र कुमार जायसवाल)। रेलवे स्टेशन मीरजापुर पर पिछले 15 वर्षों से अवैध वेंडरों का संचालन निर्बाध रूप से जारी है। इसकी वजह कथित तौर पर रेल यूनियन और स्टेशन पर लंबे समय से जमे अधिकारियों की सांठगांठ है। सूत्रों के मुताबिक, रेलवे के स्थानांतरण नियमों को दरकिनार करते हुए क्लर्क से लेकर वाणिज्य अधिकारी तक के पदों पर तैनात दो अधिकारियों को पिछले डेढ़ दशक से मीरजापुर स्टेशन पर बनाए रखा गया है। रेल यूनियन के दबाव में इनके कार्यक्षेत्र में केवल औपचारिक फेरबदल कर ष्ईस्ट को वेस्ट और वेस्ट को ईस्टष् की तैनाती दिखाई गई, लेकिन वास्तव में इन्हें स्टेशन से हटाया नहीं गया।आरोप है कि रेल यूनियन के मंडलीय पदाधिकारियों ने मंडल और जोनल रेल प्रशासन पर दबाव डालकर अपने पदाधिकारी का स्थानांतरण रुकवाने में एक बार फिर सफलता हासिल की है। इन अधिकारियों के कार्यकाल में एक ही बिरादरी के ठेकेदारों, यूनियन पदाधिकारियों और अवैध वेंडरों का बोलबाला रहा है। इतना ही नहीं, मीरजापुर की जलवायु इन अधिकारियों को इतनी रास आई कि उन्होंने यहीं अपने निजी मकान बना लिए। सूत्रों का दावा है कि अवैध वेंडिंग से होने वाली कमाई में इन अधिकारियों की भी साझेदारी है, जिसके चलते स्थानांतरण रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए गए और रेल प्रशासन भी दबाव के आगे नतमस्तक हो गया।
स्टेशन पर घटिया सामान और बेस किचन का खेल
मीरजापुर स्टेशन पर हालात यह हैं कि मल्टी पर्पज स्टॉल्स पर यात्रियों की जरूरत का सामान जैसे महिलाओं के लिए सेनेटरी पैड्स, बच्चों के लिए हगीज या अटैची लॉकर तक उपलब्ध नहीं हैं। इसके बजाय, बिना अनुमति के अवैध वेंडर मनमाने दामों पर घटिया क्वालिटी का सामान बेच रहे हैं। स्टेशन के बाहर गली में एक मकान की ऊपरी मंजिल पर मानकों को ताक पर रखकर एक कमरे को ष्बेस किचनष् का नाम देकर वहां तैयार पूड़ी-सब्जी के पैकेट्स और गैर-मान्यता प्राप्त पानी की बोतलें यात्रियों को परोसी जा रही हैं।
रेलवे प्रशासन की इस चुप्पी और अधिकारियों की कथित मिलीभगत से यात्रियों की परेशानी बढ़ रही है। सवाल उठता है कि क्या रेलवे नियमों और यात्रियों की सुविधा से ज्यादा महत्वपूर्ण यूनियन और अधिकारियों का निजी हित बन गया है? इस मामले में रेल प्रशासन से जवाब की प्रतीक्षा है।