औरैया। बीहड़ में राज करने वाली दस्यु कुसुमा को अपनी मां से बहुत प्रेम था। मां के लिए अपशब्द बोलने पर कुसुमा ने उस डकैत लालाराम का साथ भी छोड़ दिया था। जिसकी अगुवाई में उसने अस्ता में नरसंहार को अंजाम दिया था। जिस गांव में पली बड़ी उसी गांव में जब डकैत बनकर अपने गैंग के साथियों के साथ कुसुमा नाइन वर्ष 1985 में टिकरी गांव पहुंची, तो उसने गांव के ही रामरूप दुबे के यहां डकैती डाल दी। परिजनों ने विरोध किया तो उसने परिजनों को बुरी तरह मारापीटा। ग्रामीणों ने बताया कि वह इतनी निर्दयी हो चुकी थी कि वह महिलाओं को भी नहीं छोड़ती थी।
फायरिंग करते हुए की थी लूटपाट
जालौन के सिरसाकलार थाना क्षेत्र के जहटौली गांव निवासी रमेश चौरसिया अब करीब 75 वर्ष के हो चुके हैं। अपने साथ हुई घटना की जानकारी देते हुए वह भावुक हो गए। बताया कि वर्ष 1981 में अचानक कुसुमा ने गांव में धावा बोल दिया। वह उनके घर में घुस गई और जमकर लूट पाट की। उनकी मां कुंजा देवी ने जब इसका विरोध किया तो कुसुमा ने बंदूक की बटों से उनकी पिटाई की थी। इसके बाद दहशत फैलाने के लिए उसे गांव में फायरिंग की थी। इससे गांव के लोग घरों में दुबक गए थे। उन्होंने पुलिस को सूचना दी थी, लेकिन उस समय पुलिस की स्थिति बहुत दयनीय थी। डकैतों के जाने के बाद ही पुलिस आती थी।
मां को अपशब्द कहने पर डकैत लालाराम का साथ भी छोड़ा
बीहड़ में राज करने वाली दस्यु कुसुमा को अपनी मां से बहुत प्रेम था। मां के लिए अपशब्द बोलने पर कुसुमा ने उस डकैत लालाराम का साथ भी छोड़ दिया था। जिसकी अगुवाई में उसने अस्ता में नरसंहार को अंजाम दिया था। सरेंडर के दौरान उसने मां की मौत के बाद फांसी की सजा सुनाए जाने की गुहार लगाई थी।
जालौन जिले के टिकरी निवासी कुसुमा नाइन और माधव मल्लाह का प्रेम उसके परिजनों को नागवार गुजरा था। दिल्ली जाने के दो साल बाद उसके पिता ने पुलिस की मदद से उसको पकड़वाकर घर बुलवा लिया था। इसके बाद उसकी कुरौली निवासी केदार नाई के साथ शादी कर दी। शादी के कुछ साल बाद ही माधव ने अपने रिश्तेदार दस्यु विक्रम मल्लाह की मदद से कुसुमा को अगवा करवा लिया था। यहीं से कुसुमा सामान्य महिला से दस्यु बन गई। आठ साल बाद विक्रम की मौत के बाद उसने दस्यु लालाराम के गैंग का दामन थाम लिया था।
26 मई 1984 में उसने लालाराम व श्रीराम के साथ मिलकर बेहमई कांड में हुई 22 लोगों की निर्मम हत्या का बदला अस्ता में 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था (जैसा कि अस्ता में बने स्मारक में दर्ज है)।
इसके कुछ समय बाद लालाराम ने कुसुमा की मां को अपशब्द बोले दिए थे। इससे आहत कुसुमा लालाराम के गैंग से किनारा कर फक्कड़ बाबा गैंग का हिस्सा बन गई थी। उसने कई अपहरण, हत्या, डकैती आदि घटनाओं को अंजाम देकर अपने नाम की दहशत बना दी थी। लोग कुसुमा की गिनती उस दौर की सबसे क्रूर डकैतों में करते थे।
वर्ष 2004 में मध्य प्रदेश के भिंड जिले में उसने फक्कड़ महाराज और गैंग के अन्य सदस्यों के साथ सरेंडर कर दिया था। सरेंडर करने के दौरान उसने अपनी मां की मौत के बाद फांसी दिए जाने की गुहार लगाई थी। कुसुमा की मां की मौत कई साल पहले हो गई थी।
कुसुमा की मौत के बाद अपनों की याद में छलकीं अस्ता वासियों की आंखें
जेल में बंद दस्यु कुसुमा नाइन की गंभीर बीमारी के चलते इलाज के दौरान रविवार को लखनऊ में मौत हो गई। इसकी जानकारी पर अस्ता के लोग खुश हो उठे। उन्होंने एक दूसरे को मिठाई खिलाने के साथ घी के दीये जलाकर खुशी जाहिर की। वहीं 14 लोगों के नरसंहार में मारे गए अपनों की याद में उनकी आंखें छलक आईं। घटना के प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कुसुमा और उसके साथियों ने महिलाओं और बच्चों पर भी रहम नहीं किया था। नरसंहार के बाद गांव को आग लगा दी थी। उस वक्त लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा था।
भलै मर गई, हमाए पति व देवर को मारा थाः रामदुलारी
अस्ता की बुजुर्ग रामदुलारी को अब सुनने में परेशानी होती है। दस्यु कुसुमा नाइन की मौत के बारे में उनसे पूछा तो वह खुश हो गईं। कहा कि भलै मर गई। हमाए पति धनीराम व देवर महादेव को मार डाला था। बोलीं-कुसुमा ने उन्हें व उनकी देवरानी सोमवती को विधवा बना दिया। इसी तरह सबकी जुबान पर अपनों को खोने की दास्तां थी।
जिस पति को 47 साल पहले छोड़ा, उसी ने किया दाह संस्कार
जिस पति को छोड़कर डकैत कुसुमा नाइन 47 साल पहले बागी हो गई थी। अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो जाने पर जब उसका शव ससुराल पहुंचा तो सोमवार की सुबह उसके पति केदार ने ही अंतिम संस्कार किया। इस दौरान गांव के अलावा अन्य गांवों के लोगों की भीड़ जमा रही। जानकारी पर केदार के अन्य रिश्तेदार भी वहा शरीक होने पहुंचे थे।
सिरसा कलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था। उसके पिता गांव के ग्राम प्रधान थे। जबकि चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। वह इकलौती संतान होने के चलते परिवार उसे बड़े लाड़ प्यार से पाल रहे थे। लेकिन जब वह 13 साल की हुई तो उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम प्रसंग हो गया और वह उसके साथ चली गई। दो साल बाद पिता उसे वहां से ले आए और उसकी शादी कुठौंद थाना क्षेत्र के कुरौली गांव निवासी केदार नाई से करा दी।
करीब एक साल बाद माधव डकैत विक्रम मल्लाह के साथ कुरौली पहुंचा और कुसुमा को अगवाकर ले गया था। इसके बाद केदार ने इसकी जानकारी अपने ससुर डरू को दी। जब पिता और पति कुसुमा से मिले तो उसने घर आने से मना कर दिया। इसके बाद कुसुमा ने केदार की करीब बीस साल बाद कुंती नामक युवती से शादी करा दी। उसके तीन बच्चे हैं। तभी से केदार व कुसुमा के बीच फिर से नजदीकियां बढ़ गईं थीं।
वर्ष 2004 में जब कुसुमा ने दस्यु रामआसरे उर्फ फक्कड़ बाबा के साथ आत्म समर्पण कर दिया तो केदार व उनके परिजन जेल में उससे मिलने जाने लगे। इटावा जेल में बंद कुसुमा की तबीयत बिगड़ने पर उसे लखनऊ में भर्ती कराया गया। जहां शनिवार को उसकी मौत हो गई। वहां पहले से मौजूद केदार का बड़ा बेटा शैलेंद्र रविवार रात शव लेकर गांव पहुंचा तो भारी पुलिस बल व गांव के लोगों की भीड़ लग गई। लेकिन रात होने की वजह से अंतिम संस्कार नहीं किया गया।
पूरी रात परिजन उसके शव के पास बैठे रहे। सुबह करीब साढ़े सात बजे उसके पति केदार ने कुसुमा का अंतिम संस्कार कर दिया। लोगों का कहना है कि जिस पति को उसने 47 साल पहले छोड़ा था। बाद में वही काम आया और उसने कुसुमा को मुखाग्नि दी।