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रसिया गायन और छड़ीमार होली, अद्भुत दृश्य...भक्ति के रंग में रंगे श्रद्धालु झूम उठे

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मथुरा। कान्हा की नगरी में होली का उल्लास छाया हुआ है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना और दाऊजी में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। बरसाने की लट्ठमार और लड्डूमार होली के बीच अब यहां हर ओर गुलाल बरस रहा है। वहीं आज गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होगा। 

श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली गोकुल में यमुना किनारे होली चबूतरा पर छड़ीमार होली शुरू हो गई है। गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल-नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते-गाते आगे बढ़ रहे थे।

गोकुल में छड़ीमार होली एक बजे के बाद शुरू हो जाएगी। इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ना शुरू हो गई है। पुलिस ने भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।

वृंदावन के गोदा हरिदेव मंदिर की भव्य शोभायात्रा सोमवार को धूमधाम से निकाली गई। इस धार्मिक आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और भक्ति भाव से नाचते-गाते हुए यात्रा को भव्यता प्रदान की।

गोकुल की छड़ीमार होली खेलने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। इस उत्सव का आयोजन यहां सदियों से चला आ रहा है। प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए आज भी हर साल यहां छड़ीमार होली का आयोजन किया है। छड़ीमार होली के दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं।

बचपन में कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता था, इसलिए गोकुल में कान्हा के बालस्वरूप को अधिक महत्व दिया जाता है। नटखट कान्हा की याद में हर साल यहां पर छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बालकृष्ण को लाठी से चोट न लग जाए, इसलिए यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है।

-मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने पहली होली गोकुल में खेली थी।

-इस दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं।

-छड़ीमार होली कृष्ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक मानी जाती है।

-बाल गोपाल को चोट न लग जाए इसलिए लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।

फाग खेले तो ब्रज में आ जइयो रसिया, ओ रंग डार गयो री मोपे सांवरा, उड़त गुलाल लाल भए बदरा जैसे पारंपरिक गीत, मयूर नृत्य, श्रीराधा कृष्ण के स्वरूप में नृत्य करतीं झांकियां, चहुंओर उड़ता गुलाल, फूलों की होली, लाठी मारती हुरियारिनें और ढाल थामे हुरियारे। यह दृश्य सोमवार को रंगभरनी एकादशी पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि में लठामार होली महोत्सव में साकार हो उठा। लठामार होली में जगदीश ब्रजवासी और शालिनी शर्मा ने ब्रज के परंपरागत लोकगीत का बहुत ही सुंदर गायन कर श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते और रंगों में सराबोर होकर झूमने लगे। इसके बाद फूलों की खेली गई। चारों ओर हाइड्रोजन सिलिंडर से उड़ते गुलाल ने भक्तों को अपने आगोश में ले लिया। इसके बाद गुरु शरणानंद महाराज ने मंच पर विराजमान युगल सरकार श्रीराधाकृष्ण के स्वरूप की आरती की। जिलाधिकारी सीपी सिंह और एसएसपी शैलेश कुमार पांडेय ने भी श्रीराधाकृष्ण के स्वरूप पर फूलों की वर्षा की।

वृंदावन में धार्मिक आयोजन को देखते हुए शहर में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए। सड़क से लेकर मंदिर तक पुलिस का कड़ा पहरा रहा। डीआईजी शैलेश कुमार पांडेय और जिलाधिकारी चंद्रप्रकाश सिंह स्वयं व्यवस्थाओं की निगरानी करते रहे, ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।

राधावल्लभ लाल स्वयं अपने भक्तों पर गुलाल उड़ाते हुए चल रहे थे और श्रद्धालु इस अलौकिक क्षण का आनंद लेते हुए रंगों में सराबोर हो गए। शोभायात्रा मार्ग में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर ठाकुरजी का स्वागत किया। सेवायत मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि इस अद्भुत दर्शन और शोभायात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।

रंगभरनी एकादशी पर सोमवार को ठाकुर राधावल्लभ मंदिर से हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भव्य शोभायात्रा निकाली गई। यह पारंपरिक प्रिया-प्रियतम की रंगीली होली शोभायात्रा अपराह्न मंदिर से प्रारंभ हुई और नगर भ्रमण के पश्चात मंदिर प्रांगण में संपन्न हुई। शोभायात्रा में ठाकुर राधावल्लभ लाल और श्रीजी की प्रतिमाएं सुसज्जित रथ पर विराजमान थीं। जैसे ही रथ नगर के मुख्य मार्गों से गुजरा भक्तों ने ठाकुरजी के साथ रंगों की बौछार में मग्न होकर होली खेली। 


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