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पितृ पक्ष में खरीदारी करना शुभ है अथवा अशुभ...

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प्रयागराज (राजेश शुक्ल/राजेश सिंह)।  पूर्वजों (पितर) से हमारा अस्तित्व है। परंपरा, गोत्र, संस्कार, धन-संपदा की प्राप्ति हर व्यक्ति को पूर्वजों से होती है। उन्हीं पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है पितृपक्ष। इसकी शुरुआत सात सितंबर से होगी। अधिकतर लोग पितृपक्ष में खरीदारी को अशुभ मानते हैं। पितृपक्ष में पूजन न करने, नई खरीदारी न जैसी भ्रांतियां सदियों से फैली हैं। सनातन धर्म के मर्मज्ञ इस सोच को अनुचित बता रहे हैं। पितृपक्ष में शुभ कार्य में पाबंदी है, न खरीदारी करने पर रोक है। इनका कहना है कि पितृपक्ष में खरीदारी अथवा शुभ कार्य करने से कोई विघ्न नहीं होता, बल्कि पितरों का आशीष मिलता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित कमला शंकर उपाध्याय भुईपारा-मेजा, प्रयागराज के अनुसार किसी धर्मग्रंथ में पितृपक्ष में खरीदारी व शुभ कार्य को वर्जित नहीं बताया गया है। यह सौभाग्य को जागृत करने वाला महापर्व है। परमपिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के दौरान समय, काल का विभाजन किया था। देवताओं व राक्षसों के लिए दिन निर्धारित हुए। देवताओं का दिन सूर्य के उत्तरायण होने पर होता है, जबकि सूर्य के दक्षिणायन होने पर दैत्यों का समय माना जाता है।

उन्होंने बताया कि इसी में भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि से आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि तक का समय पितरों के लिए निर्धारित किया गया। इसे महालय कहा जाता है। उक्त कालखंड में वंशजों को आशीष देने के लिए पितर दिव्य लोक से पृथ्वी पर आते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष में पुत्रों के कल्याण के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत, मां महालक्ष्मी व्रत पड़ते हैं।

पुराणों में विष्णु के स्वरूप बताए गए हैं पितर

विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डा. बिपिन पांडेय के अनुसार पितृ रूपी जनार्दनरू अर्थात पितर साक्षात विष्णु स्वरूप माने गए हैं। गरुण पुराण के प्रेत खंड में वर्णन है कि पितरि प्रीति म पन्ने श्रीयंते सर्व देवतारू।। विष्णु पुराण व पद्म पुराण में कहा गया है कि पितरों को प्रसन्न रखने वाले पर परमात्मा की कृपा बरसती है। इससे उनके सफलता के द्वार खुलते हैं। पितृपक्ष में वस्तुओं की खरीदारी बिना किसी झिझक के करनी चाहिए।

पितृपक्ष को लेकर षडयंत्र के तहत फैलाई गई भ्रांतिः विद्याकांत

पाराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार सनातन धर्मावलंबियों को बांटने के लिए धार्मिक परंपरा और कृत्यों को लेकर भ्रांति फैलाई गई। गुलामी के कालखंड में सनातन धर्म विरोधियों ने पितृपक्ष के अशुभ होने की भ्रांति फैलाई, जबकि वह शुभ है। शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा है कि पितृपक्ष में नई वस्तु न खरीदें अथवा नया कार्य न करें। अलग-अलग तिथियों पर खरीदारी का विशेष मुहूर्त है, जिसमें क्रय करने से लक्ष्मी का स्थायित्व रहेगा।

पितृपक्ष में खरीदारी का प्रमुख योग

-नौ सितंबर को द्वितीया तिथि व उत्तराभाद्रपद नक्षत्र है। इसमें अस्त्र-शस्त्र और मशीनरी के सामान की खरीदारी कर सकते हैं।

-10 सितंबर को तृतीया तिथि व रेवती नक्षत्र व गणेश चतुर्थी है। ललिता देवी यात्रा दिवस भी है। इसमें आभूषण, बर्तन, वस्त्र की खरीदारी शुभकारी है।

-11 सितंबर को चतुर्थी तिथि, अश्विनी नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। शाम चार बजे से वाहन, आभूषण, रत्न, वस्त्र, फर्नीचर सहित भौतिक सुख की समस्त वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं।

-12 सितंबर को पंचमी-षष्ठी तिथि भरणी नक्षत्र है। इसमें फर्नीचर, वस्त्र, औषधि, आभूषण खरीद सकते हैं।

-13 सितंबर को सप्तमी तिथि, कीर्तिका नक्षत्र है। दोपहर 2.38 बजे से अमृत सिद्धि लग जाएगा। लोहा और काला वस्त्र छोड़कर हर सामान खरीद सकते हैं।

14 सितंबर को अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और दोपहर 12.44 बजे से सिद्ध योग लग जाएगा। इसी दिन जीवित्पुत्रिका व्रत, मां महालक्ष्मी व्रत व्रत होगा। इसमें रत्न, आभूषण व श्रृंगार के सामान की खरीदारी करना चाहिए।

-15 सितंबर को नवमी तिथि मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र रहेगा। सुबह 11.36 बजे तक सर्वार्थ अमृत योग है। इसके अंतर्गत हर खरीद सकते हैं।

-17 सितंबर को एकादशी तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र, तथा सुबह 9.30 बजे से पुष्य नक्षत्र लग जाएगा। इसमें वस्त्र, भूमि, आभूषण की खरीदारी करनी चाहिए।

-18 सितंबर को द्वादशी तिथि, गुरुपुष्य योग है। ये औषधियों की खरीदारी का उत्तम दिन है।

-19 सितंबर को त्रयोदशी तिथि, प्रदोष व्रत, सिद्ध योग और महाशिवरात्रि है। इसमें भवन, भूमि और आभूषण खरीदना चाहिए।

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