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प्रयागराज का हिंदी भाषा को समृद्ध करने में ऐतिहासिक योगदान

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प्रयागराज (राजेश सिंह)।  प्रयागराज के हिंदी पुरोधाओं को हिंदी को नन्हें पौधे से वटवृक्ष बनाने में गौरव प्राप्त है। यह विशिष्टजन या प्रयाग की माटी से जन्मे या दूसरे शहरों से आकर अपना सर्वस्व जीवन यहीं रहकर हिंदी के लिए न्योछावर किया।

भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय, पं. बालकृष्ण भट्ट, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी श्निरालाश्, पं. देवीदत्त शुक्ल, महीयसी महादेवी वर्मा, प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जैसे मनीषी, इन सभी ने हिंदी की जड़ें इतनी मजबूत की जिससे बने वृक्ष की छांव तले कालांतर में हिंदी पुष्पित, पल्लवित हुई। आज 14 सितंबर है। हिंदी दिवस हर वर्ष इसी दिन मनाया जाता है। तारीख विशेष इसलिए है, क्योंकि 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में लेखकों और संस्थाओं का अमूल्य योगदान रहा है। 

अंग्रेजी की मानसिकता वालों को जवाब हैं हिंदी के पुरोधा

वर्तमान पीढ़ी में हिंदी को लेकर भ्रम है। यह कि अंग्रेजी में बात नहीं कर पाते हैं, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाते हैं और वेशभूषा पाश्चात्य देशों की शैली जैसी नहीं तो फिर आप हैं क्या ? ऐसी मानसिक रखने वालों को जवाब हैं वह लेखक जिन्होंने 1990 के आसपास तक हिंदी का सुनहरा काल बनाया जब भारत में पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। उस दौर के लेखकों और समीक्षकों को एक दूसरे पर नाज था, हिंदी के प्रति उनमें निष्ठा की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

हिंदी को प्रमुखता देने की थी ललक

उस दौर में आम बोलचाल के साथ ही लेखन और पठन-पाठन में भी हिंदी को प्रमुखता देने की ललक थी। उस कालखंड के बाद लोगों में हिंदी के प्रति भावना कुछ बदलने लगी। हिंदी पर आते खतरे को महामना पं. मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों ने भांप लिया था। फलस्वरूप महामना के प्रयास से हिंदी साहित्य सम्मेलन जैसे संस्थान स्थापित हुए ताकि हिंदी की ताकत में कहीं कोई कमी न आने पाए।

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