नई दिल्ली। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दावा किया कि भारत और चीन पर अमेरिका की टैरिफ धमकी बेअसर हो रही है और वाशिंगटन में दोनों प्राचीन सभ्यताओं के साथ ऐसी भाषा के प्रयोग की निरर्थकता को लेकर बहस चल पड़ी है।
भारत और चीन के खिलाफ जारी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ युद्ध के खिलाफ रूस का खुलकर उतरना वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव का उदाहरण है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का दोनों देशों के पक्ष में खुलकर उतरना यह साबित करता है कि तीनों ही देश कम से कम आर्थिक विषयों के मामले में साथ आ रहे हैं। रूस का खुलकर भारत और चीन का साथ देना और अमेरिका का विरोध करना, वैश्विक दादागिरी वाली अमेरिकी कूटनीति को सीधी चुनौती कही जा सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके जन्मदिन 17 सितंबर के दिन बधाई देकर एक तरह से दोनों देशों के रिश्तों में टैरिफ युद्ध के चलते आई तल्खी को कम करने की कोशिश जरूर की है। लेकिन जमीनी स्तर पर अमेरिकी रूख में कोई बदलाव नहीं आने की वजह से वास्तविक हालात में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। ऐसे मौके पर सर्गेई लावरोव का बयान एक तरह से अमेरिका को चेतावनी हो सकता है।
भारत से अमेरिका को होने वाले आयात पर पचास प्रतिशत का टैरिफ लगाने के लिए अमेरिका ने रूस से भारत द्वारा कच्चा तेल खरीदने को कारण बताया है। अमेरिका का कहना है कि भारत ऐसा करके रूस को यूक्रेन युद्ध में फंडिंग कर रहा है। हालांकि भारत इससे इनकार करता रहा है। भारत वैसे भी रूस से तेल खरीदने वाले देशों में निचले पायदान पर है। हां, भारत की रूस से नजदीकी रही है और वह बनी हुई है। विशेषकर रक्षा क्षेत्र में रूस से भारत की नजदीकी दशकों से बनी हुई है। अमेरिका इससे चिढ़ता रहा है। हालांकि पिछले करीब दो दशकों से इसमें कमी आई है। इसकी वजह भारत का विशाल मध्य वर्गीय बाजार रहा है। जिसके जरिए अमेरिकी कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं। लेकिन ट्रंप काल में आए टैरिफ बम के चलते इसमें गिरावट आ रही है।
सर्गेई लावरोव ने अमेरिका को एक तरह से चेतावनी दी, अपने ही देश के मुख्य टीवी चौनल 1टीवी के कार्यक्रम ‘द ग्रेट गेम’ में उन्होंने कहा कि चीन और भारत प्राचीन सभ्यताएं हैं। उनसे इस तरह से बात करना कि या तो आप वह बंद कर दें जो हम नहीं चाहते या हम आप पर टैरिफ थोप देंगे, काम नहीं कर पाया।
सर्गेई ने इस कार्यक्रम में एक तरह चुटकी भी ली। उन्होंने अमेरिका के चीन और भारत से जारी रिश्तों को लेकर कहा कि चीन और भारत से जिस तरह का अमेरिकी संपर्क जारी है, वह दिखाता है कि अमेरिकी पक्ष वैश्विक कूटनीति में आ रहे बदलावों को समझ चुका है।
लावरोव ने अमेरिका के प्रति भारत और चीन की प्रतिक्रिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमेरिकी कदम से दोनों देशों को थोड़ी आर्थिक परेशानी जरूर हुई, क्योंकि दोनों ही देशों यानी चीन और भारत को नए बाजारों और ऊर्जा आपूर्ति के नए स्रोतों की तलाश करने और ज्यादा कीमत चुकाने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि इस अमेरिकी रवैये का नैतिक और राजनीतिक विरोध भी हो रहा है।
लावरोव का यह कहना भी कि रूस पर नए प्रतिबंधों से कोई खतरा नहीं है, बहुत मानीखेज है। इसका मतलब यह है कि रूस कम से कम इस वक्त अमेरिकी दबवा में नहीं आने जा रहा। रूस पर वैसे ही बाइडन प्रशासन के जमाने से कई तरह की पाबंदियां लगी हुई हैं, फिर भी रूस की सेहत और कूटनीति पर विशेष असर नहीं पड़ा है।
ध्यान देने की बात यह है कि रूस, चीन और भारत की कुल जनसंख्या करीब तीन अरब है। जो वैश्विक जनसंख्या का करीब चालीस फीसद है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीनों देशों की अर्थव्यवस्था की सामूहिक भागीदारी करीब 32 प्रतिशत है। जाहिर है कि दुनिया में इनकी हिस्सेदारी अहम है। ऐसे में लावरोव का बयान एक तरह से अमेरिका को चुनौती ही है कि टैरिफ युद्ध खत्म हो या न हो, तीनों देश कम से कम अपनी आर्थिक चुनौतियों के सामने झुकने नहीं जा रहे।