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भगवान की लीला तर्क और ज्ञान के बल पर नहीं श्रृद्धा और विश्वास से समझ में आती हैः पं निर्मल कुमार शुक्ल

 

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नीबी लोहगरा भागवत कथा के पंचम दिवस

प्रयागराज (राजेश सिंह)। परमात्मा परीक्षा और समीक्षा का विषय नहीं है वह तो केवल प्रतीक्षा और सदिक्षा से मिलते हैं। अगर अपने ज्ञान और प्रतिभा के बल पर उसे जानना चाहेंगे तो ब्रह्मा को भी मोह हो सकता है। भगवान को जान सकें यह क्षमता मन बुद्धि और वाणी में है ही नहीं अगम्य को कौन जान पाया। पंडित अमरनाथ दूबे के आवास पर भागवत कथा के पंचम दिवस मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने विशाल श्रोता समाज के समक्ष उक्त उद्गार व्यक्त किया। आपने कहा कि भगवान भाव के विषय हैं बृज की गोपियों ने मात्र समर्पण और भाव के बल पर भगवान को अपना मित्र बना लिया भगवान कृष्ण ने इन गोपियों के सामने अपने समस्त ऐश्वर्य को छिपा लिया और गोपियों के सुख संवर्धन में तत्पर रहने लगे।नारद भक्ति सूत्र में गोपियों को प्रेम के अंतिम प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है। वृंदावन का परमात्मा प्रेम स्वरूप है वहां ज्ञान विज्ञान और तर्क कुतर्क की गति नहीं है।एक दिन ब्रह्मा जी भगवान की लीला देखने आए थे ग्वाल बालों के साथ भगवान को सामूहिक भोजन करते हुए देख कर उन्होंने बुद्धि का प्रयोग किया जो सर्व व्यापक ब्रह्म है जिसमें बारे में वेद भी मौन हो जाते हैं और नेति नेति कह कर अपनी असमर्थता व्यक्त करते हैं वह ग्वालों का जूंठा खा रहा है बस ब्रह्मा जी मोह ग्रस्त हो गये। उन्होंने सारे गोप ग्वाल और गाय बछड़ों को एक कंदरा में बंद कर दिया तथा अपने लोक चले गए इधर भगवान को ब्रह्मा की चतुराई विदित हो गई उन्होंने अपने संकल्प मात्र से वैसे ही ग्वाल बाल वही गाय बछड़े निर्मित कर दिया।यहा न तो कोई पदार्थ है न जीव है न कर्म है न मन बुद्धि चित्त और अहंकार ही है सब कुछ भगवान ही बन गये।एक वर्ष तक यह लीला चलती रही वृंदावन के किसी स्त्री पुरुष को यह पता नहीं चल रका कि मेरे पुत्र और गाय बछड़ों का रूप धारण करके कृष्ण ही रोज आते जाते हैं यहां तक कि ग्वालों के डंडे गायों के गले में बंधी हुई घंटी भी कृष्ण ही बन गये। वर्ष भर बाद ब्रह्मा ने गुफा का द्वार खोला तो वही ग्वाल बाल बछड़े कंदरा में वही कृष्ण के आगे पीछे यह चमत्कार देख कर ब्रह्मा दंग रह गए। भगवान कृष्ण की स्तुति करते हुए ब्रह्मा ने क्षमा याचना किया और अपनी तुच्छता के लिए पश्चाताप किया।चीर हरण की आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए महराज श्री ने कहा कि जीव के ऊपर जो माया का पर्दा पड़ा हुआ है उसकी निवृत्ति ही चीर हरण का तात्पर्य है। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी। जीवात्मा और परमात्मा के बीच माया का पट पड़ा हुआ है उस आवरण को भंग करने के बाद ही जीव ब्रह्म का एकीकरण संभव है।कालीय दमन की चर्चा करते हुए आपने कहा कि हमारा अहंकार ही काली नाग है कालीय को 101 फण थे उसी प्रकार हमें भी जाति कुल बल वैभव पद प्रतिष्ठा पद पुत्र पिता आदि के अहंकार के अनेकों फण हैं।इन समस्त संबंधों पर भगवान के चरण अंकित हो जायं सब उनका प्रसाद बन जाए । समझ लो कि कालीय मर्दन हो गया।आज की कथा में भगवान का नाम करण बाल लीला ऊखल बंधन वेणु गीत और गोवर्धन धारण की मार्मिक कथा सुनाकर आपने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।आज कथा में पूर्व ब्लाक प्रमुख पं जय प्रकाश पांडेय ग्राम प्रधान भोला गर्ग पं दिवाकराचार्य त्रिपाठी घनश्याम चतुर्वेदी विदुप अग्रहरि विनोद त्रिपाठी रामानंद त्रिपाठी अनूप त्रिपाठी राकेश चंद्र त्रिपाठी राजेश त्रिपाठी चंद्रमणि मिश्र रामायण प्रसाद शुक्ल रम जी शुक्ला सत्यदेव त्रिपाठी आदि क्षेत्र के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे ‌। आयोजक पं अमरनाथ दूबे ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं जंगी राम दूबे की स्मृति में यह भव्य कथा महोत्सव रखा है ‌। पं भोलानाथ दूबे पं अभय शंकर दूबे ह्रदय शंकर दूबे अमिय शंकर दुबे व अनिय शंकर दूबे ने समस्त क्षेत्रीय श्रृद्धालुओं से अधिकाधिक संख्या में पधारकर कर कथामृत पान करने का आग्रह किया है।

























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