प्रयागराज (राजेश सिंह)। करछना निवासी 50 वर्षीय महिला एक महीने से पेट दर्द से अत्यधिक परेशान थीं। पहले एक निजी अस्पताल में तीन दिन तक इलाज कराया, कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्हें छह अक्टूबर को स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय (ैत्छ भ्वेचपजंस) के सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया।
महिला के पेट में सिस्ट
सीईसीटी स्कैन में पेट में एक बड़ा वॉल्ड आफ नेक्रोसिस और स्यूडोपैंक्रियाटिक सिस्ट पाया गया। यह स्थिति अक्सर एक्यूट पैंक्रियाटाइटिस के बाद उत्पन्न होती है, जिसमें अग्न्याशय की सूजन के कारण स्रावित द्रव और मृत ऊतक मिलकर एक थैली जैसी संरचना बना लेते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि यदि इसका इलाज समय पर न किया जाए तो संक्रमण, रक्तस्राव या आस-पास के अंगों पर दबाव जैसी गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है जिनके अत्यंत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में लेप्रोस्कोपिक सिस्टोगैस्ट्रोस्टामी जैसी सर्जरी ही जीवन-रक्षक उपाय होती है, जिसमें बिना पेट खोले एक नली के माध्यम से सिस्ट की दीवार को पेट की दीवार से जोड़ दिया जाता है ताकि उसके अंदर जमा द्रव सुरक्षित रूप से निकल सके।
डाक्टरों की टीम ने किया कमाल
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए विभागाध्यक्ष,सर्जरी विभाग प्रो. (डॉ.) वैभव श्रीवास्तव ने 16 अक्टूबर को लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी और लेप्रोस्कोपिक सिस्टोगैस्ट्रोस्टॉमी एक बार में ही किया। ऑपरेशन के बाद रोगी को दो दिन आईसीयू में रखा गया, फिर सामान्य वार्ड में शिफ्ट किया गया। अब सामान्य रूप से आहार ले रही हैं और ऑपरेशन के दसवें दिन उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
इन डॉक्टरों का रहा योगदान
प्रो.(डॉ.) वैभव श्रीवास्तव की टीम में डॉ. तरुण कालरा, डॉ. मोनिका, डॉ. अनमोल और डॉ. नृपेन्द्र शामिल रहे। एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. अरविंद यादव ने किया, जिनके साथ डॉ. आकांक्षा और डॉ. शहनाज़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चुनौतीपूर्ण था आपरेशन
डॉ. वैभव श्रीवास्तव ने बताया कि “यह ऑपरेशन चुनौतीपूर्ण था क्योंकि सिस्ट में दीवार की सड़न और पुराना पैंक्रियाटाइटिस दोनों ही मौजूद थे। लेप्रोस्कोपिक तकनीक से ऐसे जटिल केस को सफलतापूर्वक संभालना पूरे विभाग के लिए गर्व की बात है। मरीज अब स्वस्थ हैं और सामान्य जीवन जी रही है।
