भीरपुर, प्रयागराज (रमेश पटेल) - एक ओर जहां क्षेत्र में पड़ रही भीषण गर्मी से तालाब, कुआं, पोखरो की सूखने का सिलसिला जारी है। जिससे बेजुबान जानवर जीव जंतुओं के लिए पानी की संकट गहराने लगा है। तो वहीं प्यास बुझाने के लिए जंगल में रहने वाले जानवर भी गांव की तरफ रुख करते हुए देखे जाते हैं। इसी तरह करछना क्षेत्र में 250 से अधिक तालाब बने है। लेकिन कुछ गिने चुने तालाबों को छोड़कर ज्यादातर तालाब सूख गए हैं, या सूखने के कगार पर है। लेकिन क्षेत्र के कचरा गांव स्थित एक ऐसा भी तालाब है जो सदियों से जीवो के लिए वरदान साबित होता चला है।
माना जाता है कि जिया का तालाब नाम से चर्चित प्राचीनतम इस तालाब में भीषण गर्मी के दिनों में भी पानी भरा रहता है। जिससे पेयजल की समस्या कभी उत्पन्न नहीं होती और जीव-जंतुओं को पानी के लिए भडटकना नहीं पड़ता। बस्ती से 1 किलोमीटर की दूरी पर बने इस तालाब में रोजाना हजारों की संख्या में पशु पक्षी पहुंचकर अपनी प्यास को बुझाते हैं। कचरी गांव निवासी प्रताप बहादुर सिंह बताते हैं कि 55 व 60 के दशक में अत्यधिक संसाधन न होने के कारण कई गांव के ग्रामीण पुरुष, महिलाएं इस तालाब में नहाया करते थे। इस तालाब पर दो पक्के घाट बनाए गए हैं। लोगों की सहजता से तालाब के घाटों पर स्वच्छता और सुंदरता हमेशा बनी रहती थी। ज्यादातर लोग साबुन का उपयोग न करके काली मिट्टी को लगाकर नहाते थे। सुबह से लेकर शाम तक तालाब के घाट पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। तालाब का पानी इतना स्वच्छ रहता था कि लोग खाना पकाने के उपयोग में भी लेते थे। लेकिन समय के परिवर्तन व रख रखाव के अभाव में जिया का तालाब का अस्तित्व धीरे धीरे खोता जा रहा है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में सरकार ने पानी संरक्षण हेतु तालाबों की जीर्णोद्धार व सौन्दरीकरण के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत कार्य कराया जा रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य न किए जाने से चारो तरफ गंदगी व झाड़ियों का अंबार लग गया।