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आखिर... टूट गया मुख्तार अंसारी का मायाजाल, हर कोशिश हुई बेकार

SV News

लखनऊ (राजेश सिंह)। मुख्तार अंसारी की हर कोशिश नाकाम हो रही है। कभी नंद किशोर रूंगटा अपहरण व हत्याकांड, विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड, जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड जैसे गंभीर मामलों में भी सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर मुख्तार बाइज्जत बरी हो गए थे। माफिया मुख्तार अंसारी के मायाजाल को आखिरकार तोड़ दिया गया। 25 साल से बाहुबल, धनबल और राजनीति के अपराधीकरण के जरिए कानून को खिलौना बनाकर खेल रहे मुख्तार अंसारी के अर्थतंत्र को तोड़ने के बाद अब मुकदमों में सजा से घेरने की तैयारी है। 19 साल पुराने मुकदमे में सजा दिलाने के बाद बाकी बचे मुकदमों में भी पैरवी तेज और प्रभारी हो गई है। सरकार ने मुख्तार अंसारी के अर्थतंत्र को तोड़कर पहले बड़ी चोट पहुंचाई। इसके बाद उनके ठिकानों पर बुलडोजर ऐक्शन हुआ। अब तमाम केस में प्रभावी और हाई लेबल मॉनिटरिंग के जरिए सरकार की कोशिश माफिया को सजा दिलाने की है। 

10 साल बाद वादी को जिरह के लिए खुद बुलवाया था मुख्तार ने

जिस मुकदमे में मुख्तार अंसारी को सजा हुई है, उसे मुख्तार ने मनमुताबिक मैनेज कर लिया था। लेकिन सरकार की प्रभावी पैरवी ने उसके मैनेजमेंट को ध्वस्त कर दिया। 23 अप्रैल 2003 में आलमबाग में दर्ज हुए मुकदमे में दो महीने बाद ही 28 जून 2003 को आरोप तय हो गए। मुकदमे के वादी एसके अवस्थी का कोर्ट में मुख्य परीक्षण भी 12 दिसंबर 2003 को हो गया था। उस दौरान एसके अवस्थी की उम्र करीब 61 वर्ष थी। इसके बाद करीब 10 वर्षों तक उन्हें एक बार भी कोर्ट में नहीं बुलाया गया। 25 फरवरी 2014 को मुख्तार की अप्लीकेशन पर एसके अवस्थी को जिरह के लिए बुलाया गया। 10 वर्ष बाद वह अपने बयान से पलट गए। एसके अवस्थी ने कहा कि धमकी व हथियार की बात को उन्होंने आंखों से नहीं देखा था। इस बयान के चलते 23 दिसंबर 2020 को ट्रायल कोर्ट ने मुख्तार को दोषमुक्त करार दिया। एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय बताते हैं कि 27 अप्रैल 2021 को इस मामले में हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर सटीक पैरवी की गई। इस आधार पर हाई कोर्ट ने कहा कि वादी का 10 साल के बाद क्रॉस करवाया गया। उस दौरान उनकी उम्र 71 वर्ष थी। इससे विश्वसनीयता खतरे में पड़ती है। 

दो मामलों में पूर्व मुख्य सचिवों के करवाए बयान

मुख्तार के खिलाफ अन्य मुकदमों में भी सजा कराने के लिए पैरवी तेज हो गई है। गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में फर्जी दस्तावेज के जरिए असलहा का लाइसेंस बनवाने के मामले में पूर्व मुख्य सचिव व तत्कालीन डीएम गाजीपुर आलोक रंजन का सात जुलाई 2022 को बयान करवाया गया है। वहीं, आगरा के जगदीशपुरा थाने में दर्ज मुकदमे में पूर्व मुख्य सचिव व 1999 में आगरा के डीएम रहे आरके तिवारी का बयान दर्ज कराया गया है। जेल में छापेमारी के दौरान मुख्तार की बैरक से मोबाइल फोन व अन्य प्रतिबंधित सामग्री मिली थी। आरके तिवारी ने 12 सितंबर 2022 को कोर्ट में गवाही दी है। 

सपा-बसपा सरकार में रहा जलवा

योगी सरकार के सत्ता में आने के पहले सरकार चाहे सपा की हो या बसपा की, हर सरकार में मुख्तार का जलवा रहा। अपराधों को ढकने के लिए मुख्तार 1995 में राजनीति की जमीन पर उतरा। 1996 में पहली बार बसपा के टिकट पर मऊ सदर विधानसभा का चुनाव जीता। 2002 व 2007 में निर्दलीय जीत कर सियासी दलों को अपनी ताकत का अहसास करवाया। इस दौरान मुख्तार मुलायम सरकार के करीबी हो गया। लेकिन 2007 में मायावती के सत्ता में आते ही वह फिर बसपा में शामिल हो गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुख्तार को मुरली मनोहर जोशी के मुकाबले में वाराणसी से उतारा। यहां तक कि कभी किसी की तारीफ नहीं करने वाली मायावती ने एक जनसभा में मुख्तार को रॉबिनहुड बताया तो राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई। 2010 में मायावती ने अंसारी बंधुओं से फिर किनारा कर लिया। 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्तार ने कौमी एकता दल के नाम से अपनी पार्टी बनाई और मऊ सदर सीट से चुनाव जीता। 

यादव परिवार में विवाद की वजह बन गए

2016 में सपा में मुख्तार अंसारी और उनके परिवार को शामिल करने को लेकर यादव परिवार में विवाद हो गया। चाचा भतीजे की लड़ाई खुलकर सामने आ गई। ऐसे में 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान मायावती को फिर मुख्तार की याद आई। मायावती ने मुख्तार पर कोर्ट में आरोप सिद्ध ना होने का हवाला देकर कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर लिया। बसपा उम्मीदवार के रूप में मुख्तार ने पांचवीं बार मऊ सदर सीट से जीत हासिल की। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले बसपा ने फिर उससे किनारा कर लिया। 

दो सरकारों के बीच विवाद की वजह बन गया था मुख्तार

मुख्तार अंसारी की वजह से यूपी और पंजाब की सरकार आमने-सामने आ गई थीं। दरअसल जब योगी सरकार ने माफिया मुख्तार अंसारी और उसके गैंग पर शिकंजा कसा तो वह पंजाब में दर्ज एक मुकदमे में वहां चला गया। रोपड़ जेल में रहने के दौरान यूपी सरकार ने कई बार मुख्तार को यूपी लाने की कोशिश की। लेकिन पंजाब सरकार ने किसी न किसी बहाने उसे वहीं रोकती रही। मुख्तार को लाने के लिए जब यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई तो वहां भी पंजाब सरकार ने उसे बचाने की कोशिश की। लेकिन वहां पंजाब सरकार की दाल नहीं गली। आखिरकार छह अप्रैल 2021 को यूपी सरकार उसे पंजाब की रोपड़ जेल से बांदा जेल लाने में कामयाब रही। 

ऐसे कसा गया अर्थतंत्र पर शिकंजा

मुख्तार अंसारी की 527 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति पर सरकार शिकंजा कस चुकी है। इसमें सरकार ने गैंगस्टर एक्ट के तहत माफिया और उसके करीबियों की 246 करोड़ 65 लाख 90 हजार 939 रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं। जबकि उसके अवैध कब्जे से करीब 281 करोड़ की संपत्तियां या तो मुक्त कराई गई हैं या ध्वस्त कर दी गई हैं। मुख्तार अंसारी के खिलाफ मामलों की सूची देखें तो यह काफी लंबी है। पूरे देश में मुख्तार पर कुल 59 मामले दर्ज हैं। इसमें से 20 मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं। गैंग का ठेका, टेंडर और अवैध व्यवसाय पर शिकंजा कसकर मुख्तार अंसारी को सरकार ने 212 करोड़ की चोट पहुंचाई है।

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