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तटीय क्षेत्रों की संस्कृति समझने के लिए होगी टोंस परिक्रमा: योगेश शुक्ल

SV News

मेजा, प्रयागराज (श्रीकान्त यादव)। मेजा मे रविवार से शुरू होने वाली टोंस परिक्रमा को लेकर बंधवा गांव मे भाजपा नेता योगेश शुक्ल ने भाजपाइयों के साथ बैठक कर यात्रा को लेकर विचार विमर्श किया गया। योगेश शुक्ल ने नदियों की महत्वत्ता के बारे मे विस्तार से बताया। श्री शुक्ल ने कहा कि प्रयाग, ब्रम्हा जी के प्रथम यज्ञ का भू-क्षेत्र, सोम, वरुण और प्रजापति का जन्म स्थान, महर्षि भरद्वाज और वाल्मीकि कि कर्मभूमि रही है। इसी प्रयाग में बहती है एक नदी टौंस ।
टोंस गंगा की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है जो प्रयागराज जनपद के यमुनापार क्षेत्र में सिरसा के पास चौकी और पनासा गांव के तटों पर गंगा से मिलती है। 
मध्य प्रदेश के कैमूर पर्वत से निकली यह टोंस नदी गंगा की तरफ बढ़ते हुये जिस स्थान पर प्रयागराज जनपद और उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करती है वहां प्रयागराज के दक्षिणी छोर से बहने वाली नदी बेलन का संगम होता है। इसी बेलन नदी की घाटी में पुरा-पाषाण काल से पनपी सभ्यता को इतिहासकार विश्व प्रसिद्ध बेलन घाटी सभ्यता के रूप में परिभाषित करते हैं।

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बेलन घाटी में अब तक हुयी खुदाइयों और खोजों से प्रमाणित हो चुका है कि यहां पर 17000 वर्ष पूर्व मानव सभ्यता विकसित हो चुकी थी। यहां हुयी खुदाइयों में मिले अनाज के अवशेषों ने अपने कार्बन डेटिंग के तथ्यों से सिद्ध किया है कि प्रयागराज के इस क्षेत्र में 10000 वर्ष पूर्व रहने वाले लोग खेती करना जानते थे और ग्राम सभ्यता विकसित हो चुकी थी। 
मानव सभ्यता के सभी अध्यायों को समेटे हुये और इतिहास की प्राचीनतम सभ्यताओं से इस क्षेत्र का नाता जोड़ने वाली ये नदियां बेहद खूबसूरत और प्राकृतिक सौन्दर्य से सुशोभित हैं।
मध्य-काल के मुग़ल शासन काल में बुन्देलखण्ड के महान योद्धा और महाराजा वीर क्षत्रशाल ने जब औरंगजेब और मोहम्मद खान बंगश को पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना स्वतन्त्र हिन्दू राज्य स्थापित किया था तब उनके सम्मान में उनके साम्राज्य की सीमा को परिभाषित करने वाली पंक्तियाँ आज भी हमें गर्व और रोमांच से भर देती हैं: 
“इत यमुना , उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस। क्षत्रशाल सो लरन की, रही न काहूँ होस ॥”
यह वही टोंस नदी है जो वीर क्षत्रशाल के साम्राज्य की पूर्वी सीमा को पहचान देती थी। इस टोंस नदी के तट पर रहने वाले लोग सनातनी परम्परा के पोषक हैं भारतीय संस्कृति एवं विरासत के वाहक भी। हमारे जीवन दृष्टि में टोंस नदी बहते पानी का केवल एक मार्ग नहीं बल्कि एक जीवन्त इकाई है। 
विगत देवोत्थान एकादशी को टोंस तट के एक गांव कोना पर हुये दीप-दान कार्यक्रम के समय ही टोंस परिक्रमा करने की प्रेरणा जगी थी। मुझे भरोसा है कि इस यात्रा से मुझे और मेरे साथी सह-यात्रियों को टोंस की वर्तमान स्थिति तथा उसके तट पर बसे गांवों की संस्कृति, विरासत, परम्पराओं को देखने और समझने का अवसर मिलेगा। हम इन गांव की विशिष्टताओं और समस्याओं को समझने का प्रयास करेंगे, इस यात्रा से हम इस क्षेत्र की कृषि, पर्यटन सहित सामाजिक एवं आर्थिक विकास की संभावनाओं का आकलन भी कर पाएंगे। 
मैंने चौकी और पनासा के तटों पर खड़े होकर इस टोंस नदी की जल-धारा को गंगा जी मे मिलते हुये और गंगाजल बन जाते हुये देखा है, इसलिये मै इसे गंगा स्वरूपा मानता हूँ। इसी दैवी भाव के कारण मैंने अपनी इस पैदल यात्रा को टोंस परिक्रमा नाम दिया है। हमारी यह परिक्रमा यात्रा दिनांक ११ दिसम्बर को प्रातः १० बजे गंगा टोंस संगम के पास के चौकी गांव से प्रारम्भ होकर टोंस के दक्षिणी तट के गांवों से होते हुये बेलन संगम तक जायेगी और फिर वहां से उत्तरी तट से होते हुये गंगा के पनासा घाट पर समाप्त होगी। इस यात्रा से मिलने वाले अनुभव को हम समाज, अपनी पार्टी और सरकार से साझा करेंगे। मेरी और मेरे साथी यात्रियों की यह परिक्रमा यात्रा सकुशल सम्पन्न हो, समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो तथा टोंस के तटों की स्वच्छता एवं उसकी धारा की निर्मलता और अविरलता के प्रति लोग सचेत बने रहें , इसके लिए मुझे और मेरे साथी सह-यात्रियों को आप प्रयागवासियों के आशीर्वाद की आवश्यकता है। इस मौके पर वरिष्ठ भाजपा नेता जयशंकर पाण्डेय, हेमंत दुबे, वीरेन्द्र मिश्र, सुभाष पयासी, पप्पू उपाध्याय, हरिमोहन पाण्डेय, विनय शुक्ल, रमाकांत निषाद सहित कई लोग मौजूद रहे। 

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