जेवनियां में वंचितों के श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास ने मुद्रिका प्रसंग पर विस्तार से किया वर्णन
मेजा,प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
दिव्यांगोत्थान श्री राम सेवा ट्रस्ट न्यास के तत्वावधान में क्षेत्र के जेवनिया गांव में आयोजित पांच दिवसीय वंचितों के श्री राम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास डॉ अशोक हरिवंश (भैया जी) ने मुद्रिका प्रसंग पर विस्तार से वर्णन किया।उन्होंने कहा कि भगवान श्री राम जब केवट को सीता द्वारा दी गई मुद्रिका को देना चाहा तो केवट ने मुद्रिका लेने से इंकार कर दिया।वही मुद्रिका जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका जाने लगे तो राम ने हनुमान को पहचान के लिए अंगूठी दे थी।यदि केवट उस अंगूठी को ले लिया होता तो भगवान राम के पास माता सीता को देने के लिए कुछ भी नही था।उन्होंने कहा कि वही अंगूठी माता सीता को उनके मायके में मिली थी।जिसमें राम नाम लिखा था।फिर उसी अंगूठी को देखकर माता सीता जी के मन में संसय उत्पन्न हुआ था तो हनुमान जी ने सारी कथा माता सीता को सुनाई।वही अंगूठी जब सीता के पास पहुंची तो वह सुरक्षित रही।कथा व्यास ने अंगूठी का वर्णन करते हुए कहा कि यदि वही अंगूठी माता सीता के पास रही होती तो रावण माता सीता का हरण नही कर सकता था।अंगूठी का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने कहा कि यदि वही अंगूठी भगवान राम ने हनुमान को न दिए होते तो हनुमान का समुद्र पर करना संभव न होता। कथा व्यास कहते हैं कि "प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघी गए अचरज नाही।" हनुमान ने भगवान राम द्वारा दी गई अंगूठी को अपने मुंह में रखकर समुद्र को पार किया।उन्होंने कहा कि हनुमान ने अंगूठी को मुंह में इसलिए रखा कि उसमे राम नाम लिखा था।जिसके मुख में राम नाम हो वह किसी भी कार्य को आसानी से कर सकता है।कथा व्यास ने आज की कथा केवट द्वारा मुद्रिका को वापस किए जाने से शुरू की।कथा व्यास ने अंत में श्रोताओं के बीच बैठकर रामनाम का कीर्तन किया।श्रोता श्रीराम कथा को सुनकर गदगद हो उठे।इस मौके पर आयोजक मंडल न्यास के अध्यक्ष अभिषेक तिवारी व पूर्व प्रधान रुचि तिवारी के साथ व्यास का माला पहनाकर मंचासीन किया। आयोजक मंडल ने उपस्थित श्रोताओं का आभार वयक्त किया। इस मौके पर मेजारोड व्यापार मंडल संरक्षक ई. नित्यानंद उपाध्याय,अध्यक्ष विष्णु प्रकाश उपाध्याय,सिद्धांत तिवारी,नीरज सिंह यादव,बसंत लाल शुक्ल,शशिकांत तिवारी, पुष्कर तिवारी,पमपम तिवारी, कैलाश चंद्र शुक्ल सहित भारी संख्या में श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।