प्रयागराज (राजेश सिंह)। प्रयागराज मे एक शर्मनाक करतूत सामने आई है। पिता ने मासूम बेटी को तीन अनजान लड़कों के हाथों बेच दिया। बेटियों को बोझ समझने वाले लोगों की आज भी कमी नहीं है। अपनी मुंह बोली मामी द्वारा बेरहमी से पीटी गई मासूम की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। इलाज के दूसरे दिन जब बच्ची को होश आया तो उसने आप बीती बयां की। बच्ची ने बताया कि वह लखनऊ के चौक इलाके की रहने वाली है। मां के गुजर जाने के बाद दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पिता रामबाबू उसका पालन पोषण करते थे। बेटी को बोझ समझने वाले पिता ने तीन अंजान लड़कों के हाथों उसे बेच दिया। जिसके बाद वह कानपुर आ गई। बच्ची ने बताया की कानपुर में उसे जहां रखा गया था, वहां कुछ और लड़किया भी थीं। वहीं कुछ दिनों बाद बच्ची का सौदा प्रयागराज की बेऔलाद सिन्हा दंपती के साथ हो गया। आर्मी स्कूल के अध्यापक अरूण सिन्हा अपनी पत्नी अंजना सिन्हा के साथ उस बच्ची को लेकर प्रीतमनगर स्थित सनसाइन अपार्टमेंट में रहने लगे। वह उसे बेटी नहीं बल्कि नौकरानी की तरह इस्तेमाल करने लगे।
बच्ची घर का झाडू, पोछा, बर्तन साफ करना व खाना बनाने लगी। अगर वह काम करने में थोड़ा सा आना कानी करती तो अंजना सिन्हा उसे जमकर पीटती। उसके हाथ जो आता उसी से बच्ची को मारने लगती। वहीं अरूण सिन्हा मासूम पर हो रही यातनाओं को देखकर भी खामोश रहा। शुक्रवार को अंजना ने बच्ची पर पैसे चुराने का आरोप लगाया। वह बच्ची कहती रही कि उसने चोरी नहीं किया, मगर उसकी एक न सुनी गई। जिसके बाद सिन्हा दंपती ने उसे जानवरों की तरह पीटा। उसका हाथ कसकर मरोड़ा गया, जिससे कोहनी टूट गई। बच्ची का हाथ टूटा देख अंजना सिन्हा ने शुक्रवार की रात छावनी अस्पताल में फोन करके पूछा कि कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ है। जिसके बाद उनसे शनिवार की सुबह आने के लिए कहा गया। वहीं शनिवार को जब बच्ची अस्पताल पहुंची तो, उसकी हालत ने सिन्हा दंपती को सलाखों के पीछे धकेल दिया।
छावनी अस्पताल में भर्ती बच्ची से जब पूछा गया कि वह जब ठीक हो जाएगी तो क्या अपने पिता के पास जाना चाहेगी। इस सवाल पर वह रो पड़ी। उसका कहना कि पिता ने हमेशा उसको बोझ समझा। उसे हर समय उल्टा सीधा कहता था। कभी एक टाइम खाना मिलता था तो कभी नहीं मिलता था। अब वह कहीं नहीं जाना चाहती।
शरीर पर अनगिनत चोट के निशान
बच्ची के पूरे शरीर पर चोट के निशान हैं। हाथ की हड्डी के साथ कान के पीछे की हड्डी भी फ्रैक्चर हो गई है। छावनी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रियंका सिंह का कहना है कि बच्ची की कमर व कूल्हे गहरी चोट है। जिसकी वजह से वह उठ बैठ नहीं पा रही है। इसके अलावा बांय हाथ का कूल्हा कई जगह से फ्रैक्चर हो गया है। जिसके लिए बच्ची के हाथ का ऑपरेशन करके प्लेट डालना होगा। सीना, पीठ व गाल को बुरी तरह से जलाया गया है, उसकी नाक पर भी चोट के निशान हैं। चिकित्सक का कहना है कि उसकी सिर्फ आंख सलामत है।
बच्ची के शरीर में हीमोग्लोबिन 6 यूनिट है। जिसकी वजह से उसके हाथ का आपरेशन नहीं हो पा रहा है। बच्ची का इलाज कर रही डॉ. प्रियंका सिंह का कहना है कि उसे कई दिनों से खाना नहीं मिला। जिसके कारण हीमोग्लोबिन की मात्रा घट गई है। इसके अलावा प्राइवेट पार्ट में चोट आने के कारण उसकी यूरीन भी ठीक तरीके से नहीं हो रही है। डॉक्टर का कहना है कि बच्ची को फिलहाल एक यूनिट ब्लड चढ़ाया जा रहा है और जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाती है, ऑपरेशन नहीं किया जा सकता है।
पीड़ित बच्ची की मदद के लिए हजारों हाथ खड़े हो गए। कई लोग कपड़ा, खाने की सामग्री लेकर अस्पताल पहुंचे। कई लोगों ने रूपए तक देने चाहे। मगर प्रोजेक्ट हेड सिद्वार्थ पांडेय ने रूपए लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि बच्ची का इलाज अस्पताल प्रशासन करवा रहा है, इसलिए रूपए की आवश्यकता नहीं है। छावनी सामान्य हॉस्पिटल प्रशासन बच्ची की सुरक्षा के मद्देनजर बाहरी लोगों द्वारा लाई गई खाद्य सामग्री नही दे रहा है। सिर्फ अपने यहां तैयार खाद्य सामग्री ही बच्ची को दी जा रही है।
बच्ची को जब तक कोई एडॉप्ट नहीं कर लेता है, तब तक छावनी परिषद उसका पालन पोषण करेगा। नॉमिनी सदस्य विनोद वाल्मीकि रविवार को बच्ची का हाल चाल लेने अस्पताल पहुंचे, जहां उन्होंने कहा कि कैंटोनमेंट परिसर में स्कूल, अस्पताल सहित तमाम प्रकार की सुविधाएं मौजूद हैं। ऐसे में बच्ची को जब तक कोई गोद नहीं लेता है, परिषद बच्ची की देख भाल करेगा। उन्होंने कहा कि वह इसके लिए बोर्ड को अपना प्रस्ताव भी भेजेंगे।
बच्ची को छावनी अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में रखा गया है। जहां पर उसका इलाज चल रहा है। इसके अलावा वार्ड के बाहर कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। अस्पताल प्रशासन के अलावा किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है।
बच्ची को बड़ी बेरहमी से पीटा गया है। उसके शरीर पर जिस तरह चोट के निशान हैं वह किसी बड़ी दुर्घटना में देखने को मिलते हैं। फिलहाल बच्ची कितने दिन तक अस्पताल में रहेगी अभी यह कह पाना मुश्किल है। अभी उसका इलाज चल रहा है। - डॉ. हर्ष वर्धन, जनरल फिजीशियन, छावनी अस्पताल
अगर कोई बच्ची को एडॉप्ट नहीं करता है तो मैं उसे गोद लूंगा। मेरी एक बेटी है, बच्ची को गोद लेने के बाद दो हो जाएंगी। मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है। - सिद्वार्थ पांडेय, प्रोजेक्ट हेड, छावनी अस्पताल