कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है सुदामा चरित्र की कथा -कृष्णनंदन शास्त्री
मेजा,प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
मेजा तहसील के उरुवा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत अछोला में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का समापन रविवार को हुआ। अंतिम दिन श्रीमद्भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का जनसैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा।कथा व्यास कृष्णनंदन शास्त्री ने श्रीमद्भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण करवाया, जिसमें प्रभु कृष्ण के 16108 शादियों के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं सुनाई। सुदामा चरित्र व राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा सुनकर श्रोता भक्ति भाव में डूब गए। वृंदावन से पधारे कृष्णा जी महाराज ने कहा कि द्वारपाल ने द्वारिकाधीश से जाकर कहा, प्रभु द्वार पर एक ब्राह्मण आया है और आपसे मिलना चाहता है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।
यह सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े-दौड़े चले आए। सुदामा जी ने भगवान के पास जाकर भी कुछ नहीं मांगा। भगवान श्री कृष्ण अपने स्तर से सुदामा को सब कुछ देते हैं। कथा व्यास ने सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया।उन्होंने कथा के माध्यम से यह भी बताया कि सुदामा चरित्र जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है। इसके बाद उन्होंने परीक्षित मोक्ष की कथा का श्रवण कराया।कथा व्यास ने बताया कि उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र पांडवों के एक मात्र उत्तराधिकारी राजा परीक्षित आखेट करते समीका महर्षि के आश्रम में पहुंचे,लेकिन महर्षि ने राजा के पहुंचने से बेखबर रहे।क्रोध वश राजा ने पास पड़े मरे हुए सर्प को महर्षि के गले डाल दिया और चले गए।महर्षि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने यह दृश्य देख लिया और राजा को सातवें दिन सांप के काटने से मृत्यु होने का श्राप दे दिया। शृंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिए तक्षक नामक सांप ब्राह्मण का भेष बदलकर राजा परिक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डंस लेते हैं और जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्री मद् भागवत कथा सुनने के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। पिता की मृत्यु को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं तब देवता सहित सभी ऋषि मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। कथा व्यास ने कहा कि कथा के श्रवण करने से जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं।
संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की इच्छा ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। मोक्ष का शाश्वत साधन है श्रीमद भागवत।सात दिन में सम्राट परीक्षित को जब मोक्ष हुआ तो ब्रह्मा जी ने अपने लोक में एक तराजू लगाई। इसके एक पलडे़ में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद भागवत को रखा तो भागवत का ही पलड़ा भारी रहा। अर्थात भागवत सारे वेद पुराण शास्त्रों का मुकुट है। कथा व्यास ने एक से बढ़कर एक संगीत पेश किए।इनके साथ आर्गन पर कौलास कुमार, नाल पर राजा आनंद बाबू व पैड पर देव सिंह ने संगत किया। कथा के समापन के अवसर पर मुख्य यजमान आयोजकगणों ठाकुर प्रसाद पांडेय,मथुरा प्रसाद पांडेय,देवीप्रसाद पांडेय,तपेश्वरी प्रसाद पांडेय,राजेंद्र प्रसाद पांडेय और महेंद्र प्रसाद पांडेय ने कथा व्यास, मुख्य आचार्य महेंद्र मिश्र,आचार्य श्रीशंकर पांडेय तथा प्रधान पंडित सत्यदेव मिश्र सहित भागवत में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहयोग करने वालों का आभार व्यक्त किया। वही कथा को सफल बनाने में लगे सभी लोगों को कथा व्यास ने सम्मानित किया।
सातवें और आखिरी दिन की कथा का समापन मुख्य यजमान छविराजी देवी द्वारा व्यासपीठ एवं भागवत पुराण की आरती पूजन के साथ के हुआ।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से केदारनाथ पांडे, सुबह लाल पांडे,ओंकार नाथ पांडे, चिंतामणि पांडे,रामजी पांडेय और विनय कुमार पांडे,राजू शुक्ला,सतीश चंद्र दुबे,कमलेश मिश्र सहित भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।कार्यक्रम में सुभाष पांडेय, मुकेश, रत्नेश, विजय, प्रशांत, रूपेश, शुभम, नागेश, आशीष, अखिलेश, आकाश और पुष्पराज सहित समस्त पांडेय परिवार का योगदान सराहनीय रहा।