प्रयागराज (राजेश सिंह)। नगर पंचायत के निन्दूरा गाँव मे तीन वर्ष पूर्व होलिका दहन स्थल पर हुये अवैध कब्जे के सम्बंध मे उपजिलाधिकारी सोरांव से सामूहिक शिकायत की गई थी उक्त सामूहिक शिकायत को पोर्टल पर फर्जी रुप से निस्तारित दिखाया गया था। जिसकी शिकायत का निस्तारण करने तथा निस्तारण के सम्बंध मे माँगी गई जनसूचना न देने के कारण 16/10/21 से दिनांक 18/05/23 तक पदस्थ सभी उपजिलाधिकारीयों पर पृथक पृथक 25000 -25000 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाकर उनके वेतन से जुर्माने की वसूली का आदेश राज्य सूचना आयुक्त उ०प्र०लखनऊ द्वारा लगाया गया है। बताते चले कि निन्दूरा लालगोपालगंज निवासी रामसुरेश निर्मल ने उनके गांव मे हुये होलिका दहन स्थल पर अवैध कब्जा निर्माण की शिकायत शासन मे बैठे जिम्मेदार उच्चअधिकारियों से किया था। जिसमें समस्या का समाधान करने के बजाय उपजिलाधिकारी कार्यालय सोरांव प्रयागराज ने अवैध कब्जाकर्ताओ को बचाते हुये शिकायत का फर्जी निस्तारण दिखाकर आख्या पोर्टल पर अपलोड कर दिया। जिसके सम्बंध मे आवेदक रामसुरेश निर्मल ने जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत उपजिलाधिकारी से प्रकरण के निस्तारण का ब्यौरा मांगा कि उक्त संवेदनशील प्रकरण किस सक्षम अधिकारी की देखरेख मे जाँच करके निस्तारित किया गया। जबकि अवैध कब्जा आज भी कायम है।
उपजिलाधिकारी के द्वारा जबाब न देकर भ्रष्टाचार करने वाले तहसील कर्मियों को बचाया गया अपील पर भी जबाब नही मिलने पर आवेदक ने राज्य सूचना आयोग मे उपजिलाधिकारी के विरूद्ध अपील किया। माननीय राज्य सूचना आयुक्त उ०प्र० के द्वारा अनेकों नोटिस जारी करने के बाद भी उपजिलाधिकारी सोरांव माननीय सूचना आयोग मे उपस्थित नही हुये जिस कारण उक्त दायर अपील की दिनांक से अन्तिम आदेश पारित होने के दिनांक तक सभी पदस्थ उपजिलाधिकारियों पर माननीय राज्य सूचना आयुक्त को अर्थदण्ड लगाकर उनके वेतन से वसूली का आदेश परित करना पड़ा। लगाये गए अर्थदण्ड मे पूर्व की उपजिलाधिकारी श्रीमती ज्योति मौर्य सहित वर्तमान उपजिलाधिकारी आईएएस श्री सार्थक अग्रवाल भी शामिल है। आवेदक रामसुरेश निर्मल ने संवाददाता को बताया कि ऐसा ही एक फर्जीवाड़े का मामला सरकारी चकरोड का है जिसमें तहसील समाधान दिवस मे दसियों शिकायत की गई है। मौके पर सरकारी चकरोड गायब है जिससे चिन्हित करके बनवाया जाना जनहित मे आवश्यक है। परंतु क्षेत्रीय लेखपाल यतेन्द्र त्रिपाठी द्वारा हर बार फर्जी रिपोर्ट लगाकर प्रकरण को निस्तारित किया जा रहा है। मौके पर चकरोड नगर पंचायत के संरक्षण में है और मिट्टी डाल दी गई है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान मे मामला आता है उसके बाद भी भ्रष्टाचार करने वाले कर्मियों पर आखिर अफसर क्यों मेहरबान रहते है ऐसी क्या मजबूरी है। आरटीआई का जबाब ना देकर किन भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए उपजिलाधिकारी ने अर्थदण्ड लेना उचित समझा कहीं न कहीं यह सरकार के सिस्टम की पोल जरूर खोल रहा है। ऐसे में एक सवाल और उठता है क्या यह अर्थदंड को देखते हुए उच्च अधिकारी या यूं कहें जिलाधिकारी क्या अब भी इस प्रकरण पर कोई ठोस कदम उठाएंगे ?