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अधिकमास मंगलागौरी व्रत से महिलाओं को मिलता है अखंड सौभाग्य

 

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पंडितों के अनुसार जब किसी की कुंडली में मंगल 1,4, 7, 8 और 12वें घर में हो तो ऐसी स्थिति में मंगल दोष बनता है। कुंडली में मंगल दोष होने से विवाह में बाधा आती है और अगर विवाह हो भी जाए तो वैवाहिक जीवन में कई परेशानियां रहती है..

सावन के मध्य में पड़ रहे इस अधिक मास के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा। देवी मंगला गौरी को माता पार्वती का ही एक रूप माना जाता है, ऐसे में ये व्रत मुख्य रूप से देवी पार्वती को समर्पित माना गया है। इस दिन व्रत रखने के साथ ही बड़ी संख्या में लोग देवी गौरी का विधिविधान से पूजन करते हैं। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं, वहीं कन्याएं एक आदर्श पति प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। पंडितों का मानना है कि विवाह में जिन लोगों के देरी हो रही है इस व्रत से माता उनको मनचाहा वरदान प्रदान करती हैं।

पंडितों के अनुसार जब किसी की कुंडली में मंगल 1,4, 7, 8 और 12वें घर में हो तो ऐसी स्थिति में मंगल दोष बनता है। कुंडली में मंगल दोष होने से विवाह में बाधा आती है और अगर विवाह हो भी जाए तो वैवाहिक जीवन में कई परेशानियां रहती है। इसे दूर करने के लिए सावन के मंगलवार के दिन मां मंगला गौरी के साथ ही भगवान हनुमान की भी पूजा करें। हनुमान जी के चरणों से सिंदूर लेकर माथे पर टीका लगाएं। ऐसे लोग जो विवाह योग्य हैं लेकिन किसी कारण विवाह नहीं हो पा रहा है तो इसके लिए सावन के मंगलवार के दिन मिट्टी का एक खाली पात्र जल में प्रवाहित कर दें। स्त्रियां, मुख्यतः नवविवाहित स्त्रियां, सुखी वैवाहिक जीवन के लिये माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु इस व्रत को करती हैं।

पंडितों के अनुसार प्रातः नहा-धोकर एक चौकी पर सफेद लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। सफेद कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाते हैं तथा लाल कपड़े पर गेहूँ से षोडश माता बनाते हैं। चौकी के एक तरफ चावल व फूल रखकर कलश स्थापित करते हैं। कलश में जल रखते हैं। आटा का चौमुखी दीपक बनाकर 16-16 तार की चार बत्तियां डालकर जलाते हैं। सबसे पहले गणेशजी का पूजन करते हैं। पूजन करके जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं। इसके बाद कलश का पूजन गणेश पूजन की तरह किया जाता है। फिर नौ ग्रह तथा षोडश माता की पूजा करके सारा चढ़ावा ब्राह्मण को दे देते हैं। इसके बाद मिट्टी की मंगला गौरी बनाकर उन्हें जल, दूध, दही आदि से स्नान करवा कर वस्त्र पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दूर, मेंहदी व काजल लगाते हैं। सोलह प्रकार के फूल पत्ते माला चढ़ाते हैं। पांच प्रकार के सोलह-सोलह मेवा, सुपारी, लौंग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूड़िया चढ़ाते हैं। कथा सुनकर सासुजी के पाँव छूकर एक समय एक अन्न खाने का विधान है। अगले दिन मंगला गौरी का विसर्जन करने के बाद भोजन करते हैं।

अधिकमास मंगला गौरी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

अधिकमास मंगला गौरी व्रत से जुड़ी एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है। उसके जीवन में उसे धन वैभव की कोई कमी न थी। किंतु उसे केवल एक ही बात सताती थी जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान नहीं थी। जिसके लिए वह खूब पूजा पाठ ओर दान पुण्य भी किया करता था। उसके इस अच्छे कार्यों से प्रसन्न हो भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा। अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है, अतरू उस सेठ ने सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया और कुछ समय पश्चात अपने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी अतरू इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था जिसके परिणाम स्वरुप सेठ का पुत्र दीर्घायु हुआ।

अधिकमास मंगलागौरी व्रत का ऐसे करें उद्यापन 

श्रावण माह में अधिकमास के मंगलवारों का व्रत करने के बाद इसका उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में खाना वर्जित होता है। मेंहदी लगाकर पूजा करनी चाहिए। पूजा चार ब्राह्मणों से करानी चाहिए। एक चौकी के चार कोनों पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए। कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलागौरी की स्थापना करनी चाहिए। साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएं रखनी चाहिए। हवन के उपरान्त कथा सुनकर आरती करनी चाहिए। चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रुपया व साड़ी सासू जी को देकर उनके पैर छूने चाहिए। पूजा कराने वाले पंडितों को भी भोजन कराकर धोती व अंगोछा देना चाहिए।

अगले दिन सोहल ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए। सुहाग पिटारी में सुहाग का सामान व साड़ी होती है। इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।

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