प्रयागराज (राजेश सिंह)। पूर्वजों की तृप्ति और मुक्ति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान शुक्रवार से आरंभ होगा। इससे पहले पिंडदान के लिए लोग संगम पहुंचने लगे हैं। उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों से पहुंचे वंशजों ने प्रथम श्राद्ध के साथ अपने-अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए जतन किए। प्रथम श्राद्ध के साथ ही वंशज गया में पिंडदान के लिए रवाना हुए।
पितृपक्ष आरंभ होने के साथ ही बृहस्पतिवार को संगम पर तर्पण-अर्पण और श्राद्ध आरंभ हो गया। मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित महूं से सार्ईंराम कसेरा ने सौ से अधिक श्रद्धालुओं के साथ पिंडदान किया। पं. प्राणनाथ पांडेय ने पिंडदान कराया। इसी तरह उड़ीसा के जाजपुर से आए सौ से अधिक लोगों ने एक साथ अपने-अपने पूर्वजों के नाम पर पिंडदान किया। रामचंद्र ने बताया कि संगम पर प्रथम श्राद्ध के बाद वह यहां से पिंडदान के लिए गया जाएंगे।
जय त्रिवेणी जय प्रयाग संस्था के अध्यक्ष तीर्थपुरोहित प्रदीप पांडेय और दिवाकर पांडेय ने समूहों में संगम पर पिंडदान कराया गया। एक तरफ मुंडन कराने और दूसरी ओर पंक्तिबद्ध होकर पिंडदान करने का सिलसिला दिनभर चला। तीर्थपुरोहितों की चौकियों पर दिन भर दूर-दराज के इलाके से आने वाले वंशजों की भीड़ लगी रही। प्रथम दिन पूर्णिमा तिथि के साथ ही प्रतिपदा का भी श्राद्ध और तर्पण किया गया। संगम में डुबकी लगाने के साथ ही मुंडन कराकर तीर्थ पुरोहितों के निर्देशानुसार लोग तर्पण करते रहे।
प्रदीप के मुताबिक मान्यता है पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्माएं धरती पर अपने परिवार के लोगों से अपनी मुक्ति और तृप्ति लेने के लिए आती हैं। इसलिए इस दौरान पिंडदान, तर्पण,अर्पण, अन्न, वस्त्र और शैय्या दान का खास महत्व माना जाता है। यह क्रम संगम पर पखवारे भर यानी 14 अक्तूबर तक चलेगा।