मिर्जापुर (राजेश सिंह)। एक ऐसा रेस्टोरेंट जहां महिला वेटर के साथ ही स्वागत से लेकर सुरक्षा तक की जिम्मेदारी महिलाएं संभालती हैं। यहां स्वाद लेना है तो परिवार में महिला सदस्य का होना जरूरी है। कुछ ऐसी ही अलग खूबियों वाला यह रेस्टोरेंट आज कल चर्चा में है। ओखली में कूटी गई खड़े मसाले की सुगंध तथा खाने का जायका, हांडी में पकी हुई दाल की भीनी-भीनी खुशबू तथा हांडी में ही पके चावल और उपली पर सेंकी गई देशी घी में लिपटी हुई बाटी के साथ ही जांते में पीसी गई सत्तू का स्वाद बेटियों के रेस्टोरेंट का लजीज व्यंजन है।
ऐसे लजीज व्यंजनों का स्वाद, हांडी की खीर के साथ वाराणसी- शक्तिनगर राजमार्ग पर लतीफपुर में मौजूद बेटियों के रेस्टोरेंट में लिया सकता है। जहां घर की तरह महिलाएं आपको व्यंजन परोसती मिलेंगी। बेटियों को रोजगार से जोड़ने के लिए किए गए इस कारोबार में मध्यकालीन युग की भोजन शैली की विशेषताएं मिलेंगी। ग्रामीण परिवेश की भीनी-भीनी माटी की खुशबू और बेटियों को प्रोत्साहित करने वाला यह रेस्तरां बेटियों को समर्पित है। यहां बेटियों के बगैर प्रवेश निषिद्ध है। पारंपरिक भोजन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय मूल की प्राचीन परंपरा कुशा के आसन धरा पर बिछाए गए हैं। जिस पर बैठकर परास के पत्तों से बने पत्तल तथा मिट्टी के कुल्हड़ तथा कसोरे मे परोसे गए लजीज व्यंजन भूख बढ़ाती जाएगी। राजसी परंपरा के तौर तरीकों से सुसज्जित बेटियों के इस रेस्टोरेंट में मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी और कोयले की आग से भोजन पकाने की व्यवस्था की गई है। करकट की मड़ई, सन की रस्सी से बनी हुई खटिया इस रेस्टोरेंट में प्राचीन तौर-तरीकों के भोजन शैली की विशेषता है।
रेस्टोरेंट का प्रभार संभाल रहे ललित तिवारी ने बताया कि यह रेस्टोरेंट बेटियों को समर्पित है। जहां डॉटर्स डे को बेटियों को प्रोत्साहित किया जाता है। स्वास्थ्यवर्धक भोजन परोसने की रसोई बनाई गई है। जाते में पीसी गई चने की सत्तू, ओखली में हाथ से कूटा मसाला तैयार कर बनाया जाता है।