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इंसान के फिंगरप्रिंट की तरह गायों की पहचान बताएगा उनका थूथन, एआई आधारित बायोमेट्रिक तकनीक विकसित

SV News

प्रयागराज (राजेश सिंह)। लाइव स्टाक फार्मिंग यानी पशुपालन उद्योग में पशुओं की बड़ी संख्या के बीच उनकी सटीक पहचान, स्वास्थ्य निगरानी, चोरी होना या खोना, इंश्योरेंस क्लेम आदि हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। गायों की पहचान पारंपरिक तरीकों जैसे कि कान की टैगिंग, टैटू, या आरएफआईडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) जैसी तकनीकों से की जाती है। 
हालांकि, ये तकनीकें चोरी या पहचान की पुनरावृत्ति जैसे मामलों में भरोसेमंद नहीं साबित होती हैं। इसका समाधान खोजते हुए आईआईटी बीएचयू के विज्ञानी ने एक अनोखी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली तैयार की गई है जो थूथन (मजल) से गायों की पहचान करने में सक्षम है। 
साथ ही पशुधन की पहचान बीमारी के फैलाव को नियंत्रित करने, टीकाकरण प्रबंधन, उत्पादन प्रबंधन, पशुओं की ट्रेसबिलिटी (सही पहचान और निगरानी) और पशु स्वामित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसी वर्ष तकनीक को पेटेंट भी मिल गया है।
बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली का विकास करने वाले आइआइटी बीएचयू में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. संजय कुमार सिंह आईआईआईटी इलाहाबाद में मशीन इंटेलिजेंस पर आधारित कान्फ्रेंस में हिस्सा लेने पहुंचे थे। संवाददाता से विशेष बातचीत में डा. सिंह ने बताया कि जैसे इंसानों के फिंगरप्रिंट्स विशिष्ट होते हैं और एक अनोखी पहचान का प्रतीक होते हैं, ठीक वैसे ही गायों के थूथन पर भी पैटर्न या संरचनाएं विशिष्ट होती हैं। हर गाय के थूथन पर मौजूद निशान और लकीरें अलग-अलग होती हैं, जिससे इनकी पहचान की जा सकती है।
थूथन बायोमेट्रिक पहचान की प्रक्रिया में गायों के थूथन की तस्वीरें ली गईं, जिनमें उनके त्वचा के पैटर्न, रेखाओं और विशिष्ट संरचनाओं को कैप्चर किया गया। इन तस्वीरों का विश्लेषण कर एक डेटाबेस में संग्रहीत कर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित एल्गोरिद्म और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर तकनीक का विकास किया गया। 
वह बताते हैं कि इसमें प्रत्येक पशु को एक अद्वितीय कैटल आइडी (सीआइडी) होगी, जिससे पशुओं की पहचान और ट्रैकिंग आसान हो जाएगी, यह प्रणाली भारतीय नागरिकों के लिए बनाए गए आधार कार्ड की तरह ही कार्य करेगी, जिससे प्रत्येक पशु का डेटा डिजिटल रूप से संग्रहित किया जाएगा और इसे आसानी से एक्सेस किया जा सकेगा। 
यह प्रणाली पशुपालन क्षेत्र में चोरी या गलत पहचान की समस्या का हल होगी। इसमें सामान्य जानकारी जैसे वैक्सीनेशन, डिवर्मिंग, वृद्धि, पुनरुत्पादन, उत्पादन के अलावा पशु के फार्म इनपुट रिकार्ड भी दर्ज किए जा सकेंगे।

छोटे जानवरों की पहचान के लिए आईसीएआर ने सौंपी जिम्मेदारी

गाय के लिए एआई आधारित बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली के विकास से प्रभावित होकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने प्रो. संजय कुमार सिंह को छोटे जानवरों बकरी, भेड़ और सुअर के लिए भी बायोमीट्रिक पहचान प्रणाली विकसित करने का बड़ा प्रोजेक्ट सौंपा है। इसके तहत उनको दो करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है। 
इस प्रोजेक्ट के तहत विज्ञानी तकनीक का विकास करेंगे। इसके बाद आईसीएआर पूरे देश में इस बायोमेट्रिक प्रणाली को लागू करेगा। प्रो. संजय सिंह कहते हैं कि एक प्रोफेशनल एप भी विकसित किया जा रहा है, जिसकी मदद से छोटे पशुपालक भी अपने पशुओं का बायोमीट्रिक डेटाबेस तैयार कर सकेंगे।

हैदराबाद की कंपनी कर रही प्रयोग

इस तकनीक का उपयोग अब प्रायोगिक स्तर पर भी किया जा रहा है।हैदराबाद की कंपनी हेरीटेज फूड लिमिटेड अपने पशुधन की पहचान और उनकी रियल टाइम निगरानी के लिए बायोमेट्रिक प्रणाली का प्रयोग कर रही है। इसके परिणाम उत्कृष्ट हैं।तकनीक के माध्यम से वे अपने पशुधन का कुशल प्रबंधन कर रहे हैं।

थूथन बायोमेट्रिक पहचान के फायदे

सटीक पहचान, इंश्योरेंस भी आसान: हर गाय की सटीक पहचान की जा सकती है, क्योंकि थूथन का पैटर्न जीवनभर नहीं बदलता। बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली की मदद से इंश्योरेंस क्लेम आसान होगा।कान काटने की प्रक्रिया अमानवीय है।
गायों की चोरी रोकने में मदद: बायोमेट्रिक पहचान गायों की चोरी और अवैध तस्करी रोकने में भी सहायक हो सकती है, क्योंकि हर गाय की पहचान डेटाबेस में दर्ज होती है। चोरी या खोई गाय की पहचान कर उसे वापस लाना आसान हो सकता है।
पशुधन का बेहतर प्रबंधन: इस तकनीक से किसान अपने पशुओं का सटीक रिकार्ड रख सकते हैं। इससे पशुओं की देखभाल, उनके स्वास्थ्य की निगरानी और उनके उत्पादकता का ट्रैक रखना सरल हो जाता है।

बायोमेट्रिक पहचान के उपयोग

डेयरी उद्योग: डेयरी उद्योग में गायों की पहचान और ट्रैकिंग अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस तकनीक से दूध उत्पादन, स्वास्थ्य ट्रैकिंग और जनसंख्या नियंत्रण अधिक सटीक हो सकता है। हर गाय का रिकार्ड रखकर उसके दूध उत्पादन और स्वास्थ्य की स्थिति का सही आकलन किया जा सकता है।

पशुधन निगरानी: सरकारी एजेंसियां और स्थानीय प्राधिकरण पशुधन का सही डेटा जुटा सकते हैं। इससे पशुधन की संख्या और उसकी देखभाल में सुधार होगा, जिससे पशु कल्याण के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आएंगे।

फार्म मैनेजमेंट: फार्मों पर काम करने वाले किसान आसानी से अपने पशुओं की पहचान कर सकेंगे, जिससे फार्म संचालन और प्रबंधन में सुधार होगा। यह तकनीक विशेष रूप से बड़े पशु फार्मों के लिए उपयोगी हो सकती है।

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