मेजा, प्रयागराज (राजेश शुक्ल)। उरुवा विकास खंड अंतर्गत सोरांव गांव में श्रीमद् भागवत सप्ताह यज्ञ का शुभारंभ शनिवार 19 अक्टूबर 2024 को कलश यात्रा से हुआ। सुबह मुख्य यजमान श्रीमती निर्मला देवी शुक्ला पत्नी स्वर्गीय त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल (सुग्गन शुक्ल) अपने पुत्र भुपेंद्र शुक्ल सहित भारी संख्या में महिलाओं, पुरूषों औैर युवाओं के साथ गंगा तट पर पहुंचकर माता गंगा का पूजन का उनका जल कलश में भरकर कथा स्थल पर पहुंच विधि विधान से पूजन किया। शाम को कथा के प्रथम दिवस अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक बालशुक पंडित देव कृष्ण शास्त्री जी महाराज अयोध्या धाम व मुख्य यजमान श्रीमती निर्मला देवी शुक्ला पत्नी गोलोकवासी पंडित त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल को पंडित आत्मदेव, धुंधकारी व गोकर्ण की कथा का संगीतमयी रसपान कराते हुए कहा कि-तुंगभंगा नदी के किनारे के एक गांव था वहां पर आत्म देव नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी धुंधली रहती थी आत्म देव तो सज्जन था लेकिन उसकी पत्नी दुष्ट प्रवृति की थी। आत्म देव बहुत उदास रहता था क्योंकि उसको कोई संतान नहीं हो रहा था। और बहुत बार उसने आत्महत्या करने की भी कोशिश किया लेकिन सफल नहीं हो पाया, लेकिन एक दिन हताश होकर जंगल की तरफ आत्महत्या करने निकल गए आत्म देव, रास्ते में उन्हें में एक ऋषि जी मिले और फिर आत्म देव ऋषि को अपनी कहानी सुना कर रोने लगा और उपाय पूछने लगा ऋषि ने कहा मेरे पास अभी तो ऐसा कुछ नहीं की जिससे मैं तुम्हें कुछ दे पाऊं, लेकिन आत्म देव ने बताया की उसकी गाय को कोई बच्चा नहीं हो रहा है और जब आत्म देव ऋषि को बार बार बोलने लगा तो ऋषि ने उसे एक फल दिया और उसको अपनी पत्नी को खिलाने को कहा और कहा की एक साल तक तुम्हारी पत्नी को सात्विक जीवन जीना पड़ेगा। आत्म देव वह फल लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आकर सारी बात धुंधली को बताता है और उसको वो फल खाने को देता है।
लेकिन धुंधली सोचती है अगर बच्चा हुआ तो उसको बहुत कष्ट का सामना करना पड़ेगा यही सोच कर वह उस फल को नहीं खायी और जाकर सारी बात अपने छोटी बहन को बताई तो उसकी बहन ने उसे एक रास्ता बताया और कहा की मैं गर्भवती हूँ और मुझे बालक होने वाला है तू ही लेना उसको और उस फल को गाय को खिला दे इससे उस ऋषि की शक्ति का भी पता चल जायेगा। धुंधली ने ऐसा ही किया। और अपने पति आत्म देव के सामने गर्भावस्था का नाटक करने लगी और कुछ दिन बाद जाकर अपने बहन से बच्चा लेकर आ गयी। आत्म देव बहुत खुश हुआ खुशियां मनाई और उस बच्चे का नाम ब्रह्मदेव रखना चाहा लेकिन धुंधली ने फिर झगड़ कर उसका नाम धुंधकारी रखा। और धुंधली ने जो फल गाय को खिलाये थे उसके भी गर्भ से मनुष्य का बालक हुआ जिसके कान लम्बे लम्बे थे इसीलिए उसका नाम आत्म देव ने गोकर्ण रखा।
दोनों बड़े हो गए जिसमें धुंधकारी दुष्ट व चाण्डाल प्रवृति का था तो गोकर्ण सरल स्वभाव का था। धुंधकारी सारे गलत काम करता एक दिन तो उसने अपने पिता आत्म देव की ही पिटाई कर दी। आत्म देव बहुत दुखी हुआ और अपने दुखी पिता को देख गोकर्ण उनके पास आया और उनको वैराग्य जीवन जीने के लिए कहा। और कहा की संसार में हम बस भागवत दृष्टि रखकर ही सुखी हो सकते है। गोकर्ण की बात मानकर आत्म देव गंगा के किनारे आकर भागवत के दशम स्कंध का पाठ करने लगे थे और उसी जीवन में उन्हें भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति हो गयी थी। समय बीतता गया और एक दिन धुंधली भी धुंधकारी के अत्याचारों को देख दुखी होकर एक कुएँ में कूद कर आत्महत्या कर ली। अब धुंधकारी एकदम ही अत्याचारी और दुष्कर्म वाला इंसान बन गया था। वह वैश्यों के मांगो के लिए चोरी करता और एक दिन तो उसने राजा के यहाँ ही डाका दाल दिया सभी वेश्याएं सोची अगर ये जिन्दा रहा तो एक दिन हमको भी मरवा देगा। यह सोच कर उन लोगों ने धुंधकारी को बांध कर उसको जल्दी हुई आग में उसका मुख डालकर तड़पा कर मार डाला। बुरे प्रवृति के होने की वजह से धुंधकारी प्रेत बन गया और वह अपने भाई गोकर्ण को डराने लगा। हालाँकि गोकर्ण ने अपने भाई का श्राद्ध गया जाकर किया था लेकिन धुंधकारी को फिर भी मुक्ति नहीं मिली। वह गोकर्ण को डराने के कोशिश करता लेकिन गोकर्ण गायत्री मंत्र का जाप करता तो धुंधकारी उसके पास नहीं जा सकता था। गोकर्ण ने जब कहा की मैंने तो तुम्हारा पिंडदान कर दिया हूँ फिर भी तुम प्रेत बन घूम रहे हो तो धुंधकारी बोलता है की मैंने इतना पाप किया है पिंडदान से मेरा मुक्ति नहीं होगा।
उसके बाद गोकर्ण ने सभी विद्वानों से राय लिया और सूर्य देवता को नमन कर इसका उपाय पूछा तो सूर्य देव ने कहा की इसको मोक्ष की प्राप्ति भागवत कथा सुनने से ही होगी। गोकर्ण ने भागवत कथा का आयोजन किया और धुंधकारी एक बांस पर जाकर छिप कर बैठ गया वहां पर सात गांठ था वो वहीं जाकर बैठा था। बहुत से लोग सात गांठ का बांस लगते है भागवत कथा में की ऐसा मानता है की अगर परिवार का कोई सदस्य भूत हो गया है तो ऐसे अवश्य लगानी चाहिए। पहले दिन के कथा में पहला गांठ का भेदन हुआ ऐसे ही दूसरे दिन दूसरे में ऐसे करके सातों गांठों का भेदन हो गया। धुंधकारी दिव्य रूप धारण कर प्रकट हो गए और उनको लेने भगवान स्वयं आये। भागवत कथा बहुत लोगों ने सुनी होगी मगर धुंधकारी को स्वयं भगवान लेने क्यों आये बहुत कम लोग जानते होंगे। इसका वजह यह है की धुंधकारी ने पूरी भागवत कथा श्रद्धा तथा प्रेम भाव से सुना। कथा के अंतिम पड़ाव पर मनमोहक झांकी निकाली गई उसके पश्चात आरती कर भगवान का प्रसाद वितरण किया गया। उक्त अवसर पर पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, पूर्व प्रधान नागेश्वर प्रसाद शुक्ल, पूर्व उपप्रधान नागेश्वर प्रसाद कलट्टर शुक्ल, बालकृष्ण शुक्ल, मुनेश्वर शुक्ल, श्याम नारायण शुक्ल, विंध्यवासिनी प्रसाद शुक्ल, संतोष शुक्ल, कृष्णा कांत शुक्ल, प्रेम शंकर मिश्र, विनय शुक्ल, अवधेश शुक्ल, विजय शंकर दुबे, कृष्ण कुमार उर्फ नंघेसर शुक्ल, द्वारिका प्रसाद शुक्ल, श्रीराम शुक्ल, मनोज द्विवेदी, आलोक शुक्ल व भूपेन्द्र कुमार उर्फ पिंकू शुक्ल, ईंजीनियर विपुल कुमार शुक्ल, सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।