Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile

झारखंड में भाजपा की नेतृत्व संकट

sv news

नई दिल्ली। झारखंड में सत्ता में वापसी का सपना टूटने के बाद भी भाजपा का द्वंद्व खत्म नहीं हुआ है। विधानसभा चुनाव के तीन महीने बाद भी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं हो पाया है, जबकि सोमवार से बजट सत्र की शुरुआत भी होने जा रही है। इसी चक्कर में प्रदेश अध्यक्ष की उम्मीदवारी पर भी पर्दा पड़ा हुआ है, जिसके दावेदारों की लंबी लाइन है। सब कुलबुला भी रहे हैं, क्योंकि इंतजार लंबा हो रहा है।

फिलहाल इतना तय है कि पहले नेता प्रतिपक्ष का चेहरा सामने आएगा, उसके बाद ही प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन की बारी आएगी। मगर द्वंद्व इसलिए कि नेता प्रतिपक्ष का रास्ता भी प्रदेश अध्यक्ष से होकर ही गुजर रहा है।

दरअसल, झारखंड में ओबीसी और आदिवासी समुदाय की बड़ी आबादी है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दोनों को साध कर आगे बढ़ना चाहता है। विधानसभा में नेता के लिए भाजपा के पास विकल्प सीमित है।

आदिवासी समुदाय से सिर्फ दो विधायक हैं। बाबूलाल मरांडी एवं झाविमो से आए चम्पई सोरेन। बाबूलाल अभी प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। यदि उन्हें सदन के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी जाती है तो फिर प्रदेश अध्यक्ष किसी ओबीसी या सवर्ण को दिया जा सकता है। ऐसे में मजबूत दावेदार रघुवर दास हैं, जिनकी क्षमता पर किंतु-परंतु नहीं है।

मनीष जायसवाल बहुत तेजी से उभरे

ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर हाल में झारखंड की राजनीति में सक्रिय होने वाले रघुवर को अगर राष्ट्रीय कमेटी में जगह दी जाती है तो प्रदेश अध्यक्ष के बाकी दावेदारों के बीच इतनी रस्साकशी है कि केंद्रीय नेतृत्व को भी सोचना पड़ सकता है। हजारीबाग के सांसद मनीष जायसवाल बहुत तेजी से उभरकर ऊपर आए हैं। संगठन पर राज्यसभा सदस्य प्रदीप वर्मा की अच्छी पकड़ है। आरएसएस के साथ अच्छे समन्वयक भी हैं।

तीन दशकों से भाजपा के विभिन्न पदों पर काम करते आ रहे आदित्य साहू की दावेदारी भी किसी से कम नहीं है। हाल के दिनों में धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो की संभावनाओं को भी संबल मिला है। केंद्रीय नेतृत्व की उलझन किसी सवर्ण नेता को भी लेकर भी है। लोकसभा चुनाव में राजपूत समुदाय से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया गया था। ऐसे में चतरा के पूर्व सांसद सुनील सिंह या रांची के विधायक सीपी सिंह को भी बड़ी जिम्मेवारी देने पर विचार किया जा सकता है।

झारखंड में कम हुई शीर्ष नेतृत्व की दिलचस्पी

हालात बता रहे कि विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड में दिलचस्पी लेना कम कर दिया है। झारखंड विधानसभा चुनाव का परिणाम 23 नवंबर 2024 को आया था। इस हिसाब से पूरे तीन महीने गुजर गए। इस दौरान प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी सिर्फ एक बार रांची गए और हार की समीक्षा कर लौट आए। दोबारा जाना जरूरी नहीं समझा है।

इसी तरह चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता विस्व सरमा ने भी झारखंड से मुंह मोड़ लिया। किसी को मतलब नहीं रह गया है। यही कारण है कि सदस्यता अभियान में भी सुस्ती दिख रही है। अभी तक बूथ कमेटियों के गठन का काम भी पूरा नहीं हो पाया है। इसके लिए प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेता भी तेजी नहीं दिखा रहे हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad