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किन्नर अखाड़ा: यहूदी-ईसाई और मुस्लिमों को बनाया संन्यासी

 

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कुम्भनगर (राजेश शुक्ला)। महाकुंभ में यहूदी, ईसाई और मुस्लिम किन्नरों ने सनातन धर्म स्वीकार किया है। निष्ठा व समर्पण भाव जिसमें अधिक था उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया है।

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2015 में बने किन्नर अखाड़ा का शुरुआती दौर अत्यंत चुनौतीपूर्ण था। धर्मगुरुओं ने अखाड़े का व्यापक विराेध किया, लेकिन अखाड़ा निरंतर आगे बढ़ता रहा। धर्मगुरु बनने पर किन्नरों के प्रति समाज में सम्मान का भाव पैदा हुआ। हर कोई उनका आशीर्वाद लेने को लालायित है। इससे दूसरे धर्मों को मानने वाले किन्नरों में सनातन से जुड़ने की ललक बढ़ी है।

महाकुंभ के दौरान उज्जैन की यहूदी एलाइजा सती बन गईं। मुंबई की ईसाई मार्टिन अब भैरवीनंद गिरि हैं। भैरव ने कथक में स्नानक किया है। इसी प्रकार कभी मुस्लिम रहीं गुजरात जूनागढ़ की स्वीटी को नया नाम गिरिनारीनंद गिरि के साथ महामंडलेश्वर की पदवी मिली है। बैंक में काम करने वालीं इब्राहिम बेंजामिन की पहचान ईशानंद गिरि के रूप में है। सभी अखाड़े में समर्पित भाव से भजन-पूजन में लीन हैं।


जीवन में आया चमत्कारिक परिवर्तन


माथे पर टीका, गले में रुद्राक्ष, स्फटिक और बैजंती की माला, बदन में साड़ी धारण करने वाले किन्नर धर्मगुरु श्रद्धा का केंद्र हैं। सती कहती हैं कि सनातन धर्म से जुड़ने के बाद उनके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आया है। समाज से अपनत्व और सम्मान मिला है। भैरवीनंद कहती हैं कि कभी हमारी पहचान नाचने-गाने वालों में होती थी। पैसा मिलता था, लेकिन सम्मान नहीं। अब स्थिति बदल गई है। हमें अपेक्षा से अधिक सम्मान मिल रहा है। ईशानंद व गिरिनारीनंद कहती हैं कि जो किन्नर कभी ताना सुनते थे, उपेक्षित थे वह अब सम्मान पा रहे हैं। यह बदलाव किन्नर अखाड़ा बनने के बाद हुआ है।

पूजा और जप करना अनिवार्य

संन्यासी बनने वाले किन्नरों को सुबह-शाम भगवान शिव, बहुचरा माता की स्तुति अनिवार्य है। साथ ही दीक्षा में मिले गुरुमंत्र का 24 घंटे में एक बार जप करना होता है। मांस, मदिरा का सेवन वर्जित है। संन्यास लेने वाले किन्नरों से इसे लिखित रूप में लिया जाता है। इसका पालन न करने वाले अखाड़े से निष्कासित हो जाते हैं।

किन्नर अखाड़ा सनातन धर्म के संस्कार, ज्ञान और वैराग्य का अनुशरण करता है। हम जबरन किसी को संन्यासी नहीं बनाते। सिर्फ अपना काम समर्पित भाव से करते हैं। हमें मिलने वाले मान-सम्मान को देखकर दूसरे धर्म को मानने वाले किन्नरों में स्वयं को बदलकर सनातन से जुड़ने की ललक पैदा होती है। ऐसे लोग अखाड़े से संपर्क करते हैं तो उन्हें संन्यासी बनाया जाता है। -डा. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, आचार्य महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा

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