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महाकुंभः भूखे शैला-सतीश की प्रयागराज महाराज ने हमारी झोली भर दी

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कुंभनगर (राजेश सिंह)। महराजगंज के तहसील गाजीपुर के छोटे से गांव मोहाव के रहने वाले सतीश गुप्ता, पत्नी शैला के साथ संगम स्नान के लिए प्रयागराज आए थे। यहां स्नान के बाद भोजन की तलाश में थे। मीडिया सेंटर के पास बहन-बहनोई की दुकान थी तो पूछते पूछते वहां पहुंच गए। 

भूख लगी थी तो बहन ने रोटी बनाने के लिए बर्तन, सब्जी और आटा का प्रबंध कर दिया। शैला ने पहली रोटी बनाई तब तक दुकान के सामने दो लोग आ गए। खाना मांगा तो मना नहीं कर पाए। कुछ मिनटों में दुकान के बाहर एक-एक की भीड़ दर्जनों में बदल गई। तवा की रोटी ने हर भूखे को अपनी ओर खींच लिया। 

दिन में 15-20 हजार रुपये की बिक्री

दुकान पर इतनी भीड़ आई की रोटी, सब्जी सब खत्म हो गई। इससे पहले पति-पत्नी ने कभी कोई दुकान नहीं चलाई थी, लेकिन बहनोई ने सलाह दी कि यहीं रुक जाओ, बिजनेस कर लो। 

बात सही लगी और अगले दिन ठेले का प्रबंध हुआ, दुकान चल पड़ी। अब एक दिन में 15-20 हजार रुपये से अधिक की बिक्री कर रहे हैं। एक महीने से अधिक का समय दुकान खोले बीत गया है। सूचना पर छोटा बेटा पंकज भी प्रयागराज आ गया है। शैला बताती हैं कि हम काम करते-करते थक जाते हैं तो दुकान बंद कर देते हैं। पर भीड़ नहीं खत्म होती। इतनी दुकान चलेगी यह तो कभी सोचा ही नहीं था।

प्रयागराज महाराज ने तो हमारी झोली भर दी 

सतीश गुप्ता कहते हैं कि वह लोगों के घरों में विशेष आयोजनों पर खाना बनाने का काम करते हैं, इसलिए इस काम में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। प्रयागराज महाराज ने तो हमारी झोली भर दी। 

शैला की उम्र 52 व सतीश 54 साल है और पांच बच्चे हैं। इनमें से दो बेटियों की शादी कर चुकी हैं, जिनसे दो नाती भी हैं। अब दोनों के जीवन का दृष्टिकोण बदल गया है। 

वह कहते हैं कि यहां जब आए थे तो कभी यह नहीं सोचा कि हम पैसे कमाएंगे या बिजनेस करना सीख जाएंगे। यहां बिजनेस के साथ हम पुण्य भी कमा रहे हैं। अगर कोई पैसे नहीं दे पाता, तब भी भोजन करा ही देते हैं। रोजगार के मुद्दे को लेकर युवा चिंतित रहते हैं, लेकिन संगम तट से 52 वर्षीय शैला क्या खूब संदेश देती हैं। कहती हैं कि वह पूरी तरह से गृहिणी हैं। उनकी घर में रोटी और खाना बनाने की कला ही उनका स्टार्टअप बन जाएगी यह तो कभी सोचा नहीं था। 

रोजगार के लिए पैसों की जरूरत नहीं होती अगर इच्छा शक्ति है तो कहीं से भी शुरुआत हो सकती है। रोजगार के लिए बस सोच चाहिए। काम अगर छोटा बड़ा नहीं मानते तो महाकुंभ आपको परिपक्व बिजनेसमैन बना देगा। अब हम जब अपने गांव जाएंगे तो वहां भी इसे आगे बढ़ाने पर विचार करेंगे। महाकुंभ में ऐसी हजारों कहानियां है, जो चाय बेचकर, दातून बेचकर यहां तक की पानी बेचकर खुद का रोजगार कर रहे हैं।

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