एजेंसी, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना भले ही गलत हो, लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा अपराध नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक सरकारी कर्मचारी को श्पाकिस्तानीश् कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला बंद करते हुए यह टिप्पणी की।
आरोपी के खिलाफ केस बंद
यह शिकायत झारखंड के एक उर्दू अनुवादक और एक कार्यवाहक क्लर्क ने दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, जब वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए आरोपी से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया। उन्होंने ये भी कहा कि उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन को रोकने के लिए आपराधिक बल का इस्तेमाल किया।
इसके चलते उस व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा, अपीलकर्ता पर ‘मियां-तियान’ और ‘पाकिस्तानी’ कहकर सूचनाकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है। निस्संदेह, दिए गए बयान सही नहीं हैं। हालांकि, यह सूचनाकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के बराबर नहीं है। शीर्ष अदालत के अनुसार, आरोपी की ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया जिससे शांति भंग हो सकती हो।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता द्वारा कोई हमला या बल का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) लगाई जा सके।