दक्षिणी दिल्ली। शरजील इमाम न केवल हिंसा भड़काने वाला था, बल्कि श्हिंसा भड़काने की एक बड़ी साजिश का सरगनाश् भी था। ये टिप्पणी साकेत कोर्ट ने 2019 जामिया हिंसा मामले में सुनवाई के दौरान की।
साथ ही शरजील इमाम के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा कि जामिया विश्वविद्यालय के पास 13 दिसंबर को इमाम का भाषण जहरीला था, एक धर्म को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने वाला और वास्तव में एक नफरत भरा भाषण था।
अदालत इमाम और अन्य के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस ने आईपीसी, सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम (पीडीपीपी) और शस्त्र अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
सात मार्च को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा कि इमाम ने पीएचडी छात्र होने के नाते श्अपने भाषण को चालाकी से पेश कियाश् जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य समुदायों का उल्लेख करने से परहेज किया। पर चक्का जाम के इच्छित पीड़ित अन्य समुदायों के सदस्य थे।
अदालत ने कहा, दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहर में, किसी भी समय गंभीर रूप से बीमार चिकित्सा रोगियों को तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है और वे अस्पताल पहुंचने की जल्दी में होते हैं। चक्का जाम संभावित रूप से उनकी स्थिति को खराब कर सकता है या अगर उन्हें समय पर चिकित्सा देखभाल नहीं मिलती है तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है, जो कि गैर इरादतन हत्या से कम नहीं होगी।
इमाम पर आईपीसी की धाराओं के तहत आरोप लगाने का आदेश दिया गया है, जिसमें उकसाना, आपराधिक साजिश, समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, दंगा करना, गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होना, गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास, सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालना, आग या विस्फोटक पदार्थ से उत्पात मचाना और पीडीपीपी धाराओं के तहत आरोप शामिल हैं।
आशु खान, चंदन कुमार और आसिफ इकबाल पर भी लगे ये आरोप
तीन अन्य आरोपियों की भूमिका पर अदालत ने कहा, आरोपित आशु खान, चंदन कुमार और आसिफ इकबाल तन्हा ने पूर्व साजिश के तहत उकसावे के साथ-साथ घटनास्थल पर हिंसक भीड़ की गतिविधि को भड़काया, जिसके लिए उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 109 (उकसाने) का दंडात्मक प्रावधान उचित रूप से लागू किया जाता है।