प्रयागराज (राजेश सिंह)। दहशतगर्दों ने पहलगाम में आतंकी वारदात कर हिंदुस्तानियों ही नहीं कई पाकिस्तानी बाशिंदों को भी कभी न भूलने वाला दर्द दे दिया। सूबे में मौजूदा समय में रह रहे 1500 ऐसे ही पाकिस्तानी नागरिकों में कराची की हुमामा भी शामिल हैं। अपनों से मिलने का ख्वाब 11 साल बाद पूरा होने की उनकी खुशी आतंकियों की वजह से 11 दिन में ही छिन गई। वीजा की मुद्दत पूरी होने से पहले ही उन्हें मायूस होकर अपनों से रुखसत होना पड़ा। शुक्रवार को जब वह एलआईयू अफसरों के सामने पेश हुईं तो उनकी आंखें नम थीं। उनके भाई ताहा ने बताया कि 11 साल बाद बहन को घर आने का मौका मिला था। शाहगंज के दायराशाह अजमल स्थित घर में ही वह पली-बढ़ीं।
2002 में पाकिस्तानी शौहर से निकाह हुआ और इसके बाद वह उनके साथ जाकर कराची में बस गईं। निकाह के बाद 2014 में एक बार आईं लेकिन इसके बाद दोनों मुल्कों के रिश्तों में तल्खी बढ़ी तो फिर अपनों से मिलने की हर कोशिश नाकाम हो गई। बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार ऊपरवाले की मेहरबानी हुई और तरसती आंखों का ख्वाब 11 साल बाद पूरा हुआ। बहन 14 अप्रैल को बेटी के साथ घर आई। 45 दिन के लिए उसे भारत आने का मौका मिला। घर में सब लोग बहुत खुश थे। 27 मई तक उसे यहां रहना था।
लेकिन, यह खुशी 11 दिन भी नहीं टिकी। एलआईयू से फोन आया और कहा गया कि कार्यालय में आकर संपर्क करें। शुक्रवार को कार्यालय पहुंचे तो बताया गया कि 27 अप्रैल तक भारत छोड़ना होगा। इसके बाद सभी के चेहरे पर मायूसी छा गई। मायूस हुमामा ने कहा कि अभी तो अपनों के बीच ठीक से रह भी नहीं पाई। आते ही लखनऊ रिश्तेदारी में चली गई थी। सोचा था कि लौटकर घरवालों के साथ खुशी के पल बिताऊंगी। क्या पता था कि मुकद्दर को कुछ और ही मंजूर है। इतना कहकर वह भाई व बेटी के साथ चली गईं।
अपनों के बीच भी बेगानी, यहां पाकिस्तानी तो वहां हिंदुस्तानी
बहन की वीजा अवधि पूरी होने से पहले ही रुखसती से भाई ताहा बेहद मायूस नजर आए। बोले सात भाई बहनों में से दो बहनें पाकिस्तान में ब्याही हैं। बहनों का दर्द बयां करते हुए बताया कि वह तो अपनों के बीच भी बेगानी हैं। निकाह के इतने सालों बाद भी आज भी पाकिस्तान में उन्हें हिंदुस्तानी कहा जाता है। तो यहां आने पर वह पाकिस्तानी कहकर नवाजी जाती हैं।