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प्रह्लाद ने खंभे से नृसिंह को प्रगट करके सिद्ध कर दिया कि कण कण में भगवान हैं: पं. निर्मल कुमार शुक्ल

SV News

प्रयागराज (राजेश सिंह)। आज तीसरे दिन भगवान भगवत की कथा के कुछ संक्षेप सार इस प्रकार रहा -वेदों पुराणों गीता एवं सनातन धर्म संबंधित सभी ग्रंथ और पंथ ने परमात्मा के सर्वव्यापी होने में एक मत हैं। गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से बार बार कहते हैं ईश्वरः सर्व भूतानाम्। एक एक कण और परमाणु में ईश्वर की सत्ता विद्यमान है किन्तु प्रह्लाद ने तो इस सिद्धांत को समाज के सामने प्रत्यक्ष प्रकट कर दिया।नीबी लोहगरा में पं अमरनाथ दूबे के आवास पर तृतीय दिवस भागवत कथा प्रवक्ता मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने ध्रुव और प्रह्लाद चरित्र की व्याख्या करते हुए उक्त उद्गार व्यक्त किए। आपने कहा नारद बाबा के चार शिष्य हैं जिनमें दो बृद्ध और दो बालक हैं किन्तु ए चारों अद्वितीय हैं। वृद्ध शिष्यों में वाल्मीकि और व्यास हैं वैसे ही बालक शिष्यों में ध्रुव और प्रह्लाद जी हैं। ‌ध्रुव ने सौतेली माता के अपमान से दुखी होकर इतनी कठिन तपस्या किया कि मात्र पांच महीने में ही भगवान प्रकट हो गए।नारद के दूसरे बालक शिष्य प्रह्लाद की कथा तो विश्व में एक कीर्तिमान स्थापित कर गई।ए हिरण्यकशिपु नामक दुर्दांत राक्षस के पुत्र थे। हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान मानता है किसी अन्य की सत्ता पर उसे विश्वास नहीं था। उसने तीनों लोकों को जीत लिया इन्द्र आदि देवता उसके शरणागत हो गये उसके राज्य में कोई देव मंदिर नहीं रह गया सब तोड़ दिए गए।यज्ञ हवन पूजन वेद पुराण दान तीर्थ सब पर प्रतिबंध लगा दिए चारों ओर अनीति अधर्म का तांडव होने लगा।ऐसी विकट परिस्थिति में प्रह्लाद जी का जन्म हुआ ए जब गर्भ में थे तभी इनकी माता को नारद जी ने गुरु मंत्र दिया था और गर्भ में बैठे इस बालक ने भी वह मंत्र सुन लिया था।जन्म से ही धार्मिक स्वभाव के थे छोटे छोटे बच्चों को लेकर प्रेम से कीर्तन किया करते थे। पिता ने बहुत रोका किंतु इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ज्यों ज्यों विरोध बढ़ता गया त्यों-त्यों इनका विश्वास भी बढता गया।अंत में हिरण्यकशिपु ने इन्हें राक्षसी विद्या ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा वहां भी ए विद्यार्थियों के साथ बैठकर कीर्तन करते। पिता ने लाख प्रयास किया किंतु इन्हें विचलित नहीं कर सका अंत में हिरण्यकशिपु ने इन्हें मारने का विचार किया। पर्वत के उच्च शिखर से गिराया गया किन्तु भगवान ने अपनी विशाल भुजाएं फैला कर इन्हें गोद में उठा लिया गहरे समुद्र में फेंक दिया भगवान वहां भी नौका बनकर आ गये खीर में जहर मिला कर खिलाया गया वहां भी भगवान ने इनकी रक्षा किया। प्रह्लाद की बुआ को शंकर जी ने एक शाल दिया था और कहा था कि इसे ओढ़ कर अगर तूं आग में प्रवेश कर जाएगी तो इसके प्रभाव से भस्म नहीं होगी। हिरण्यकशिपु ने उस होलिका की गोद में बैठाकर इन्हें जलती चिता में बैठा दिया भगवान की कृपा से हवा का ऐसा झोंका आया कि वह शाल उड़ कर इनके ऊपर आ गई इनका बाल भी बांका नहीं हुआ होलिका जल कर राख हो गई। तबसे होली का त्योहार मनाया जाने लगा।सारे उपाय करके हिरण्यकशिपु हार गया अंत में सभा में बुलाकर इनसे कहने लगा बोल तेरा परमात्मा कहां है प्रह्लाद ने कहा मेरे भगवान सब जगह हैं तो क्या इस खंभे में भी हैं बालक निर्भीक बोल उठा हां इस खंभे में भी मेरा परमात्मा है। हिरण्यकशिपु ने दौड़ कर खंभे में मुष्टिका प्रहार किया महान आश्चर्य भयंकर आवाज हुई दशो दिशाएं कांप उठीं समुद्र में सुनामी आ गई धरती पर भूकंप आ गया पर्वत शिखर टूटकर गिरने लगे और खंभे को फाड़कर भगवान नृसिंह प्रकट हो गए।घन गर्जना करते हुए अपने तीखे नखों से हिरण्यकशिपु का उदर विदीर्ण करके टुकड़े टुकड़े फाड़कर हिरण्यकशिपु को फेक दिया और प्रह्लाद को गोद में बैठाकर दुलार करने लगे।इस प्रकार प्रह्लाद ने सिद्ध कर दिया कि कण कण में भगवान भरे हुए हैं। इससे पूर्व विद्वान वक्ता ने जड भरत महाराज ऋषभदेव वृत्तासुर आदि पात्रों की विलक्षण कथा सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।आज कथा में पं प्रभाकर शुक्ल डा दिवाकराचार्य त्रिपाठी भोला गर्ग राम कृष्ण मिश्र राम कीर्तन मिश्र राकेश चंद्र त्रिपाठी गणेश पाण्डेय कमला कांत त्रिपाठी प्रकाश चंद्र मिश्रा रामचंद्र पाल सुग्रीव शुक्ला जी मदन महाकाल इत्यादि गणमान्य श्रोताओं की उपस्थिति रही।पं अभय शंकर दूबे हृदय शंकर दूबे अमिय शंकर दूबे एवं अनिय शंकर दूबे ने आचार्य जी एवं सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा क्षेत्र के समस्त धर्म प्रेमी सज्जनों से अधिकाधिक संख्या में पधारकर कथामृत पान करने का आग्रह किया है।यह कथा गंगा दि 14 तक प्रतिदिन दिन दोपहर 2/30 से 6 बजे तक प्रवाहित होगी।

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