हाईकोर्ट ने कहा-पुलिस हिरासत में मौत के मामले में डीजीपी की सफाई पुलिस को बचाने वाली
प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस हिरासत से लापता शिव कुमार के मामले में आदेश के अनुपालन में दाखिल हलफनामे में डीजीपी के रुख की तीखी आलोचना की है। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे से प्रतिध्वनि आ रही है कि पुलिस सही है और याची गलत है। कोर्ट ने कहा कि लापता कि हो सकता है मौत हो गई हो। इसलिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बजाय इसे आपराधिक याचिका के रूप में शुक्रवार 12 दिसंबर को सक्षम कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश किया जाय।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।
याची का कहना है कि बस्ती निवासी शिवकुमार को 2018 में थाना पैकौलिया, जिला बस्ती ने पुलिस हिरासत में लिया था और वह तब से लापता है। पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है।
कोर्ट ने उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ प्रदेश के डीजीपी को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। आदेश के अनुपालन में डीजीपी ने हलफनामा दायर किया। कोर्ट ने कहा एक व्यक्ति पुलिस स्टेशन ले जाया गया और पुलिस हिरासत से लापता हो गया। वर्षों बीत गए और वह अभी भी लापता है।
डीजीपी के हलफनामे में शिव कुमार का पता लगाने के लिए किए गए प्रयासों की जानकारी दी गयी है। कहा है कि 2018-2019 की अवधि के कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स का समय बीत जाने के कारण न मिलना, इंटरऑपरेशनल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (आईसीजेएस) और सीसीटीएनएस पोर्टल्स पर कोई प्रगतिशील जानकारी नहीं मिली है। इसके अतिरिक्त पुलिस ने बताया कि 10 सितंबर 2018 से 20 सितंबर 2018 तक के क्राइम रजिस्टरों की जांच में शिव कुमार को स्टेशन लाए जाने की कोई एंट्री नहीं है।
यह भी बताया गया कि गांव के चौकीदार और होमगार्ड ने सितंबर 2018 में शिव कुमार को पैकौलिया पुलिस थाने पर कभी नहीं देखने की बात कही है। कोर्ट ने कहा पुलिस हिरासत से लापता हुए युवक का पता लगाने का पुलिस रजिस्टर में कोई रिकॉर्ड नहीं हैं। याचिका के आरोपों की विवेकपूर्ण तरीके से जांच की जानी चाहिए, खासकर तब जब एक व्यक्ति प्रथम दृष्टया पुलिस हिरासत से लापता है। कोर्ट ने कहा कि अब उप-निरीक्षक और दो कांस्टेबलों के खिलाफ दर्ज एफआईआर की गहन जांच की जानी चाहिए। लापता युवक का पता लगाने के लिए व्यापक प्रयास की आवश्यकता है। पुलिस हिरासत में मौत के संदर्भ में भी जांच की जानी चाहिए।
