मेजा, प्रयागराज (श्रीकान्त यादव)। मेजा के मेजारोड पांती स्थित श्री सिद्ध हनुमान मानस मंदिर मे चल रहे 55वें विराट मानस सत्संग समारोह के सातवें दिन महाराज डॉ रामसूरत रामायणी ने कथा सुनाई। महाराज ने कहा कि
"भगति हीन नर सोहई कैसे। बिनु जल वारिद देखिय जैसे"।
भक्ति के बिना व्यक्ति उसी प्रकार दिखाई देता है जैसे बिना जल के। जल के बिना जैसे बादल शोभा नहीं पाता उसी प्रकार भक्ति के बिना व्यक्ति शोभा नहीं पाता है। भक्ति स्वतंत्र है सभी गुणों की है। भक्ति की प्राप्ति सत्संग से ही हो सकती है। भक्ति तीन प्रकार की होती। भगवान की भक्ति, गुरू और संतों की भक्ति, भक्तों की भक्ति। तीनों के प्रति भक्ति हो जाए तो जीवन सफल हो जाए। लेकिन भक्ति के लिए विश्वास जरूरी है।
"बिनु विश्वास भगति नही होई, बिनु प्रवहिं न राम।
राम कृपा बिनु सपनेहूं जीवन मह विश्राम"।।
वहीं कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज मानस रत्न बांदा डॉ रामगोपाल तिवारी ने कहा कि श्री राम के दर्शन दो प्रकार होते हैं। एक रूप और दूसरा स्वरूप होता है। अर्थात जो आंखों से दिखाई पड़े वह रुप और जो आंख बंद करके ध्यान से अनुभव हो वह स्वरूप है। रूप बदलता हुआ संसार में अस्थाई होता है। जबकि स्वरूप सदैव शाश्वत एक समान रहता है। रूप में तो संशय तर्क भी हो सकते हैं परंतु स्वरूप सभी तर्कों से परे है। इसलिए लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से राम के रामत्व को पहचानने के लिए संसार से उठकर आंख बंद करने अंतर्मुखी होने की सलाह दी।
"बिहंसे लखन कहा मन माही। आंख कतहूं कोई नाही"।।
श्री सिद्ध हनुमान मानस मंदिर मे सत्संग सुनने जुटे सैकड़ों श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।