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अखाड़े का विवाद: निरंजनी अखाड़े की संपत्तियों से महावीर गिरि को किया जाए बेदखल

SV News

माफिया और बिल्डर से है संबंध

प्रयागराज (राजेश सिंह)। अलोपीबाग में तीन करोड़ का मठ बेचने वाले दिगंबर महावीर गिरि का नाम निरंजनी अखाड़े की कई संपत्तियों पर दर्ज है। इस बीच कुछ बिल्डर और माफिया से महावीर गिरि की नजदीकियों का पता चलने के बाद निरंजनी अखाड़ा सजग हो गया है। प्रयागराज और हरिद्वार में ऐसी संपत्तियों को चिह्नित कर महावीर गिरि की बेदखली के लिए नगर निगम व राजस्व विभाग के अधिकारियों के यहां अर्जी दाखिल कर दी गई है।
करोड़ों रुपये का भवन बेचे जाने के बाद निरंजनी अखाड़े से निष्कासित दिगंबर महावीर गिरि भूमिगत हो गए हैं। तहरीर पड़ने के बाद दारागंज पुलिस इस मामले की जांच में जुट गई है। इस बीच निरंजनी अखाड़े के संतराम सेवक गिरि ने नगर निगम में आपत्ति दाखिल कर कहा है कि जब तक राजस्व अभिलेखों में उनका नाम दर्ज न हो जाए, तब तक दिगंबर महावीर गिरि या अखाड़े के किसी भी अन्य संत की ओर से छल पूर्वक भवन बेचने की प्रक्रिया और नामांतरण पर रोक लगाई जाए।
संत राम सेवक गिरि ने कहा है कि नगर निगम के अंतर्गत अलोपीबाग में निरंजनी अखाड़े की संपत्ति पर महंत आनंद गिरि और दिगंबर महावीर गिरि का नाम दर्ज है। लेकिन, महावीर गिरि की स्वेच्छाचारिता और उनके मनमाने आचरण को देखते हुए निरंजनी अखाड़े की कार्यकारिणी ने उनको अखाड़े की समस्त चल-अचल संपत्ति से बर्खास्त कर दिया गया है। इसलिए कि दिगंबर महावीर गिरि ने महंत आनंद गिरि का वर्ष 2017 में ही फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा लिया था। जबकि, तब वह जीवित थे।
महावीर गिरि ने महंत आनंद गिरि का जाली मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर खुद अखाड़े की संपत्तियों को हथियाने और सर्वेसर्वा मालिक बनने का षडयंत्र किया था। संत राम सेवक गिरि ने अखाड़े का भवन बेचने को अक्षम्य अपराध करार दिया है। उन्होंने पुलिस कमिश्नर से दिगंबर महावीर गिरि के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने की गुहार लगाई है।

महंत आनंद गिरि पर जानलेवा हमला भी किया था महावीर गिरि ने

दिगंबर महावीर गिरि ने निरंजनी अखाड़े की संपत्ति हथियाने के लिए कूटरचित मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के साथ ही महंत आनंद गिरि पर जानलेवा हमला भी किया था। संत राम सेवक गिरि ने बताया कि महंत आनंद गिरि की जान लेने की कोशिश करने के आरोप में महावीर गिरि के खिलाफ केस भी दर्ज कराया जा चुका है। वर्ष 2017 में ही इस गड़बड़ी के आरोप में महावीर गिरि को बर्खास्त किया गया था, लेकिन उनके आचरण में कोई सुधार नहीं आया।

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