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श्रावणी उपकर्मः संगम तट पर वैदिक ब्राह्मणों का महाप्रायश्चित अनुष्ठान

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। संगम नगरी प्रयागराज सहित पूरे देश में आज रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। भाई-बहन के प्रेम के इस पावन अवसर के साथ ही आज का दिन वैदिक ब्राह्मणों के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत विशेष है। श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों और द्विज जातियों का वर्षभर का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है।

वैदिक परंपरा के अनुसार जैसे क्षत्रियों के लिए दशहरा, वैश्य वर्ग के लिए दीपावली और शूद्र वर्ग के लिए होली का विशेष महत्व है, वैसे ही ब्राह्मणों के लिए श्रावणी पर्व प्रमुख होता है। यह दिन कर्मकांडी ब्राह्मणों के लिए आत्मशुद्धि और संस्कारों के नवीनीकरण का अवसर है। वर्षभर यजमानों के लिए यज्ञ, हवन और धार्मिक अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण इस दिन अपने तन, मन और आत्मा को पवित्र करने के लिए विशेष कर्मकांड करते हैं।

श्रावणी पर्व की शुरुआत पवित्र नदियों या तीर्थ स्थलों के तट पर स्नान से होती है। प्रयागराज में आज सुबह से ही गंगा-यमुना के संगम तट पर ब्राह्मण पंचगव्य स्नान, अभिषेक, यज्ञोपवीत पूजन और सप्त ऋषि पूजा में लीन दिखाई दिए। इस दिन गोबर, गोमूत्र, दूध, दही, घी, आंवला, दूर्वा, कुशा और भस्म का प्रयोग शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र) का सेवन और उससे स्नान कर न केवल बाहरी बल्कि आंतरिक पवित्रता प्राप्त की जाती है।

धार्मिक मान्यता है कि वर्षभर यजमानों से प्राप्त दान और कर्मकांड के बदले संचित हुए पापों का प्रायश्चित इस दिन के अनुष्ठानों से किया जाता है। महाप्रायश्चित संकल्प, शालिग्राम पूजन, अरुंधति और सप्त ऋषियों की पूजा, तथा नए यज्ञोपवीत धारण करना इस पर्व के मुख्य अंग हैं।

प्रयागराज में आज संगम के तटों पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यह परंपरा निभाई जा रही है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आत्मचिंतन, शुद्धि और नए संकल्प का अवसर भी प्रदान करता है। श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मण समाज में वैदिक संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है।

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