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विदेश में भी छठ पूजा की गूंज, प्रयागराज की डॉ. ईशान्या राज ने यूके के एडिनबर्ग में आस्था के साथ सूर्यदेव को दिया अर्घ्य

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। ऐसा नहीं कि छठ महापर्व सिर्फ भारत में ही मनाया गया, इस महापर्व की आस्था की गूंज विदेश में भी दिखी। प्रयागराज की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक डॉ. ईशान्या राज ने यूनाइटेड किंगडम के एडिनबर्ग स्थित क्रैमंड बीच पर पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ छठ महापर्व मनाया।

विदेश की धरती पर भारतीय परंपरा का सुंदर नजारा 

इस दौरान विदेश की धरती पर भारतीय परंपरा और आस्था का यह सुंदर संगम देखने लायक रहा। डॉ. ईशान्या राज ने महापर्व मनाते हुए कहा कि देश से दूर रहकर भी हमारी आस्था और संस्कार कभी दूर नहीं हो सकते। यह पर्व आत्मानुशासन, नारी शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

डॉ. ईशान्या बोलीं- संस्कारों की निरंतरता ही विरासत

विदेश में मनाए गए इस छठ पर्व ने न केवल भारतीय समुदाय को गर्व का एहसास कराया, बल्कि युवाओं को अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा भी दी। डॉ. ईशान्या राज का मानना है कि आधुनिक जीवनशैली और वैश्विक परिवेश के बीच संस्कारों की निरंतरता ही हमारी सबसे बड़ी विरासत है। प्रयागराज से लेकर एडिनबर्ग के क्रैमंड बीच तक उनकी यह आस्था यही संदेश देती है कि जहां भी रहें, अपनी मिट्टी की पहचान साथ रखें। 

खत्म हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत

कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि पर चहुंओर भक्तिमय माहौल रहा। नदियों के तट पर मंगलवार की भोर से पूजा की सिलसिला आरंभ हो गया। डाला छठ की व्रती महिलाओं ने गन्ने के मंडप में बैठकर विधि-विधान से छठी मइया का पूजन करके उगते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान की कुशलता, पति की चिरायु और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना किया। पूजन के बाद ठेकुआ, मिष्ठान व खजूर खाकर जल ग्रहण करके 36 घंटे के निर्जला व्रत का पारण किया।

रात भर महिलाओं ने किया जागरण

डाला छठ का व्रत रखने वाली महिलाओं ने बुधवार की शाम संगम, गंगा और यमुना घाटों पर पूजन करके डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। रातभर घर व घाट जागरण किया। गीतों के जरिये छठी मइया की महिमा बखानी। भोर होने पर पूजन में जुट गई। कोसी बनाकर पूजन करने वाली आराधना किया। दीपक जलाकर फल, फूल, ठेकुआ, गन्ना को सूप में रखकर दीपक जलाकर विधि-विधान से पूजन करते हुए भूलचूक के लिए क्षमायाचना किया। सूर्याेदय होने पर पति व परिवार के सदस्यों के साथ कमरभर पानी में प्रवेश करके अर्घ्य दिया। घर पर पूजन करने वाली महिलाओं ने छत पर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया।

सुहागन रहने का लिया आशीष

सूर्यदेव को अर्घ्य देने से पहले व्रती महिलाओं की मांग में सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर की भराई हुई। बड़ी महिलाओं ने उम्र से छोटी स्त्रियों की मांग में सिंदूर भरकर सदा सुहागन रहने का आशीष दिया।

ढोल-ताशा की हुई गूंज

व्रती महिलाओं ने घर से घाट तक का सफर छठी मइया का गीत गाते हुए पूरा किया। ढोल-ताशा जैसे वाद्ययंत्रों के वादन के बीच गीत गाते हुए पग बढ़ा रही थी। घाट पर पहुंचने पर पूजन के दौरान भी ढोल-ताशा बजता रहा। पूजन के दौरान और उसके बाद घाटों पर आतिशबाजी की गई।

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