हम आपको बता दें कि शिखर सम्मेलन के दौरान पंद्रह से अधिक समझौते हुए, जिनमें श्रम गतिशीलता, अनियमित प्रवासन पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सहयोग, खाद्य सुरक्षा, ध्रुवीय जल क्षेत्रों में जहाज़ी विशेषज्ञ प्रशिक्षण, पोत परिवहन, खाद उर्वरक आपूर्ति, सीमा शुल्क सहयोग, डाक सेवाओं का आदान प्रदान और व्यापक मीडिया साझेदारी शामिल रही...
तेईसवीं भारत और रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने अगले दशक की जरूरतों के अनुरूप विस्तार देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण समझौतों और कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया है। हम आपको बता दें कि दोनों नेताओं ने यह रेखांकित किया कि द्विपक्षीय संबंध वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी विश्वास और परस्पर सम्मान पर टिके हुए हैं।
हम आपको बता दें कि शिखर सम्मेलन के दौरान पंद्रह से अधिक समझौते हुए, जिनमें श्रम गतिशीलता, अनियमित प्रवासन पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सहयोग, खाद्य सुरक्षा, ध्रुवीय जल क्षेत्रों में जहाज़ी विशेषज्ञ प्रशिक्षण, पोत परिवहन, खाद उर्वरक आपूर्ति, सीमा शुल्क सहयोग, डाक सेवाओं का आदान प्रदान और व्यापक मीडिया साझेदारी शामिल रही। विज्ञान, शिक्षा और मीडिया में भी बहुआयामी सहयोग को नई गति देने पर सहमति बनी।
दोनों पक्षों ने साल 2030 तक आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों का कार्यक्रम अपनाया और व्यापार को संतुलित एवं सतत बढ़ाने, भुगतान तंत्रों में राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने तथा दोनों देशों की वित्तीय संदेश प्रणाली और डिजिटल मुद्रा प्लेटफ़ॉर्म को इंटरऑपरेबल बनाने पर बल दिया। साथ ही ऊर्जा, खनिज संसाधन, तेल गैस, परमाणु ऊर्जा और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक साझेदारी को और मजबूत करने का भी निर्णय हुआ है।
इसके अलावा, आईएनएसटीसी, चेन्नई व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे परिवहन गलियारों को विकसित करने के लिए व्यापक सहयोग पर जोर दिया गया, जिससे एशिया यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका और मजबूत होने की उम्मीद है। साथ ही आर्कटिक क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाएँ तेज़ करने, रूस के फ़ार ईस्ट में निवेश बढ़ाने और भारतीय कार्यबल की भागीदारी की नई संभावनाओं पर भी चर्चा हुई।
रक्षा सहयोग में दोनों देशों ने को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन पर आधारित आत्मनिर्भरता वाले मॉडल पर भी जोर दिया और साथ ही यह सुनिश्चित करने की दिशा में सहमति जताई कि रूसदृनिर्मित प्रणालियों के स्पेयर पार्ट्स और घटकों का निर्माण भारत में हो सके।
इसके अलावा, सांस्कृतिक और पर्यटन संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से रूस के नागरिकों के लिए तीस दिन का ई-टूरिस्ट वीज़ा निशुल्क देने की घोषणा की गई है।
हम आपको यह भी बता दें कि दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहनशीलता की आवश्यकता दोहराई और बहुपक्षीय मंचों जैसे जी20, ब्रिक्स, एससीओ और संयुक्त राष्ट्र में घनिष्ठ समन्वय जारी रखने पर सहमति जताई है।
देखा जाए तो इस बार का शिखर सम्मेलन यह साबित करता है कि भारत ऐसे दौर में है जब विश्व महाशक्तियाँ दो ध्रुवों में बंटी दिखती हैं। मगर भारत अपनी विदेश नीति को किसी भी दबाव के आगे झुकने नहीं दे रहा। साथ ही रूस और पश्चिम टकराव तथा अमेरिका और चीन प्रतिद्वंद्विता के बीच भारत जिस रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन कर रहा है, उसी ने उसे वैश्विक संकटों में विश्वसनीय, तटस्थ और प्रभावशाली नेतृत्व की भूमिका प्रदान की है।
सबसे महत्त्वपूर्ण संकेत यह है कि भारत अपने मार्गों को खुद गढ़ रहा है, चाहे वह प्छैज्ब् हो, नॉर्दर्न सी रूट हो या चेन्नई व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर हो। ये सभी पहलें एशिया और यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत को निर्णायक नोड के रूप में उभारती हैं और चीन की ठत्प् जैसी परियोजनाओं को अप्रत्यक्ष चुनौती देती हैं।
इसके अलावा, ब्रिक्स के भीतर राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार और वैकल्पिक भुगतान तंत्र पर बढ़ती चर्चा, डॉलर पर निर्भर वैश्विक वित्तीय ढाँचे में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
साथ ही रक्षा और ऊर्जा जैसे भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा के स्तंभ इस साझेदारी से स्थिर होते हैं। पश्चिमी प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक अस्थिरताओं के दौर में रूस से ऊर्जा और रक्षा आपूर्ति की निरंतरता भारत के लिए रणनीतिक बीमा की तरह है। साथ ही यह तथ्य कि दोनों देश को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन जैसे आगे की सोच वाले मॉडल पर जा रहे हैं, यह भारतीय आत्मनिर्भरता को नई ऊँचाई देता है।
यूक्रेन संघर्ष पर भी भारत की भूमिका विशुद्ध यथार्थवादी है। न तो किसी गुट के साथ खड़ा होना और न ही नैतिकता के झूठे दंभ में फँसकर राष्ट्रीय हितों से समझौता करना। यही संतुलन भारत को भविष्य में एक संभावित मध्यस्थ शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
बहरहाल, शिखर सम्मेलन यही दिखाता है कि भारत रूस संबंध केवल इतिहास की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की भू-राजनीति का खाका हैं। पश्चिम जहाँ रूस को अलग-थलग करने में व्यस्त है, वहीं भारत यह संदेश दे रहा है कि उसकी विदेश नीति किसी प्रलोभन या दबाव की मोहताज़ नहीं, वह केवल राष्ट्रीय हित के प्रति उत्तरदायी है।
