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अपूज्य की पूजा कर स्वयं का अहित न करें हिन्दू: शङ्कराचार्य

SV News

कुंभक्षेत्र प्रयागराज में परमधर्म संसद् में शंकराचार्य जी ने जारी किया परमधर्मादेश

प्रयागराज (राजेश सिंह)। परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती १००८ की मौजूदगी में संवत् २०८१ माघ कृष्ण तृतीया 16 जनवरी गुरुवार को परम धर्म संसद में प्रश्नोत्तर काल के बाद कहा कि शास्त्र कहते हैं– जहाँ अपूज्य की पूजा होती है और पूज्य की पूजा में व्यतिक्रम होता है वहाँ दुर्भिक्ष, मरण और भय उत्पन्न होता है। पर आज हिन्दुओं में यह बीमारी तेजी से बढ़ चुकी है और अब परिस्थिति यह है कि पूज्य देवताओं के मन्दिरों में भी अपूज्यों की पूजा का प्रचलन हो रहा है। इसलिए परमधर्मसंसद् १००८ के आज के सत्र में हिन्दुओं के उपास्य देवताओं के सन्दर्भ में विचार किया गया और अन्त में परमधर्मादेश पारित किया जाता है कि –
हमारे वेदों में एक ही उपास्य देवता बताया गया है। वह हैं- सच्चिदानन्दघन परब्रह्म। उसी के असंख्य रूप हैं। उसी के विनोद-विलास में पाँच कर्म; उत्पत्ति-स्थिति-लय-निग्रहानुग्रह के अनुसार पाँच नाम-रूप -लीला- धाम प्रकट होकर आदित्यं गणनाथञ्च देवीं रुद्रञ्च केशवम्। पञ्चदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। का निर्देश शास्त्रों ने किया है। यह पूजा - श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य, आत्मनिवेदन रूप में नवधा होती है। ३३ कोटि देवता कहने पर भी इन्हीं पाँच कोटि के देवताओं का ग्रहण होता है। १२ आदित्य अर्थात् उत्पादक सूर्य, ८ वसु अर्थात् पोषक विष्णु, ११ रुद्र अर्थात् संहारक शिव, युग्म देवता अश्विनी कुमार अर्थात् निग्रहानुग्रहकर्ता देवता हैं। अतः यही पञ्चदेवता अपने असंख्य नामों, रूपों लीला, धामों में पूज्य होकर हमारी पूजा उस एक उपास्य देव तक पहुँचाते हैं। अतः उसी एक परब्रह्म सच्चिदानन्दघन परमात्मा की उपासना (पृथ्वी- जल- तेज- वायु- आकाश के प्रतिनिधि/अधिष्ठाता देव) गणेश- सूर्य- विष्णु- शिव- शक्ति के रूप में हो सकती है। अचेतन और अयोग्य की पूजा किसी भी दशा में नहीं की जा सकती। इन्हीं पाँचों रूपों में इष्ट देवता को मध्य में विराजमान कर बाकी चार रूपों को चार दिशाओं में विराजमान कर नियमानुसार पञ्चायतन पूजा करनी चाहिए।
परमधर्म संसद के आज के सत्र में सबसे पहले जयोद्घोष के बाद ब्रह्मचारी केशवानंद जी (छड़ीदार) के देवलोकगमन पर शोक प्रकट किया गया। इसके बाद प्रश्नोत्तर काल शुरू हुआ, जिसमें राजा सक्षम सिंह योगी, सचिन जानी अहमदाबाद, चन्द्रकांत पाठक सतना, त्यागी जी महाराज व अन्य लोगों ने प्रश्न किए जिनका परमाराध्य ने संतुष्ठिपूर्ण जवाब दिए।
साध्वी पूर्णाम्बा जी ने आज के विषय (कौनसे देवता की पूजा हम सनातनियों द्वारा की जानी चाहिए) की स्थापना की। डा. गार्गी पंडित जी ने उपास्य देवताओं पर चर्चा की। इसके बाद साध्वी गिरिजा गिरी जी, चन्द्रानंद गिरी जी महाराज अखाड़ा वाले, जितेन्द्र खुराना जी दिल्ली, देवेन्द्र पांडेय जी, फलाहारी बाबा महाराष्ट्र, टिहरी उतराखंड ससे अनुसुईया प्रसाद जी उनियाल, अलवर से केदारनाथ शर्मा, आशु पंडित, किशन जी राघव, संत त्यागी जी महाराज, निलेश मिश्रा जी, जितेन्द्र खुराना जी व विशेष आमंत्रित अतिथि में काशी से आए आचार्य कमलाकांत त्रिपाठी जी चर्चा में भाग लिया। प्रकट धर्माधीश किशोर भाई दवे जी ने उद्बोधन किया।

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