नई दिल्ली। केंद्र सरकार राफेल खरीद प्रक्रिया में तेज़ी लाने पर ज़ोर दे रही है और अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के 18 महीनों के भीतर पहला स्क्वाड्रन मिलने की उम्मीद है।
भारत की सैन्य क्षमताओं को मज़बूत करने के उद्देश्य से, सरकार आने वाले हफ़्तों में बहुप्रतीक्षित कई बड़े रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत भारतीय वायु सेना और नौसेना को महत्वपूर्ण लड़ाकू उपकरण मिलने वाले हैं। इस सूची में सबसे ऊपर भारतीय वायु सेना का फ्रांस से 114 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का प्रस्ताव है, जिसका उद्देश्य अपने लड़ाकू स्क्वाड्रनों की बढ़ती कमी को पूरा करना है। यह तात्कालिकता इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि भारतीय वायु सेना अगले महीने चंडीगढ़ में अपने मिग-21 स्क्वाड्रनों को सेवानिवृत्त करने की तैयारी कर रही है, जिससे सक्रिय लड़ाकू स्क्वाड्रनों की कुल संख्या घटकर केवल 29 रह जाएगी, जो स्वीकृत संख्या 42 से काफ़ी कम है।
केंद्र सरकार राफेल खरीद प्रक्रिया में तेज़ी लाने पर ज़ोर दे रही है और अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के 18 महीनों के भीतर पहला स्क्वाड्रन मिलने की उम्मीद है। भारतीय वायुसेना ने रक्षा मंत्रालय को प्रस्ताव पहले ही सौंप दिया है, जिसकी वर्तमान में रक्षा वित्त सहित विभिन्न आंतरिक विभागों द्वारा समीक्षा की जा रही है। आंतरिक मंज़ूरी के बाद, प्रस्ताव रक्षा खरीद बोर्ड और उसके बाद आवश्यकता की स्वीकृति के लिए रक्षा अधिग्रहण परिषद के पास जाएगा, जिससे औपचारिक वाणिज्यिक वार्ता का मार्ग प्रशस्त होगा। इस बीच, भारत अमेरिका के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों पर भी आगे बढ़ रहा है। भारतीय नौसेना छह अतिरिक्त च्-8प् समुद्री निगरानी विमान खरीदने वाली है, जिस पर चर्चा अब अंतिम चरण में है। अमेरिकी रक्षा विभाग का एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल, बोइंग के अधिकारियों के साथ, इस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए वर्तमान में भारत में है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी व्यापार नीतियों को लेकर पहले भी चिंताएँ रही हैं, लेकिन रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। दरअसल, अमेरिका के साथ 113 थ्-404 इंजनों का एक और बड़ा सौदा पहले ही हो चुका है।