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पीएम से सीखा, कब बोलें और कब नहीं, विपक्ष भी सीखः किरेन रिजिजू

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नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीखा है कि कब बोलना चाहिए और कब नहीं। साथ ही उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि विपक्ष को भी यह सीखना चाहिए।

कभी-कभी चुप रहना भी एक ताकत होती है- रिजिजू

मानेकशॉ सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में रिजीजू ने कहा कि वैश्विक घटनाक्रमों के बीच यह देखना दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री मोदी कब बोलते हैं और कब नहीं। उन्होंने कहा कि कभी-कभी चुप रहना भी एक ताकत होती है, क्योंकि जरूरत से ज्यादा बोलना नुकसानदेह साबित हो सकता है।

पीएम मोदी हर मुद्दे पर सोच-समझकर कदम उठाते हैं

भारत-अमेरिका संबंधों में हाल में आई चुनौतियों पर पूछे गए सवाल के जवाब में रिजीजू ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हर मुद्दे पर सोच-समझकर कदम उठाते हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर यहां एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा कि 2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य केवल कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि ये हमारे देश को अग्रणी राष्ट्र बनाने की यात्रा है। सशस्त्र बलों के पराक्रम और युवाओं के सहयोग से इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

रिजीजू ने कहा कि युवाओं को देश की संपत्ति बनना चाहिए, न कि जिम्मेदारी। रिजीजू ने कहा कि भारत एक युवा देश है, लेकिन यदि इन युवाओं को उचित दिशा न मिली तो इस जनसांख्यिकी लाभांश के बोझ बनने में भी समय नहीं लगेगा।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया ब्रीफिंग में प्रमुख चेहरों में से एक कर्नल सोफिया कुरैशी ने युवाओं से सक्रिय रहने और भ्रामक सूचनाओं से बचने के लिए सतर्क रहने की अपील की और ज्यादा से ज्यादा डिजिटल जागरूकता पर जोर दिया।

युद्ध अब गतिहीन और संपर्क रहित होते जा रहेः सेना प्रमुख

सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि युद्ध की प्रकृति काफी तेजी से बदल रही है, इसलिए सैन्य ताकत के साथ-साथ बौद्धिक, तकनीकी और नैतिक तैयारी अब जरूरी हो गई है। जनरल द्विवेदी ने कहा कि दुनिया की सबसे युवा आबादी का जनसांख्यिकीय लाभांश, बदलती तकनीक और रणनीतिक भूगोल के तौर पर हमारे पास अपार अवसर हैं। इसी के समानांतर चुनौतियां भी हैं।

युद्ध के बदलते स्वरूप पर भी चर्चा की

उन्होंने युद्ध के बदलते स्वरूप पर भी चर्चा की। सबसे पहले, हमारे सामने परंपरागत शत्रु हैं, जिनसे हमें ढाई मोर्चे पर चुनौती मिलती है। दूसरे, आतंकवाद, छद्म युद्ध और आंतरिक खतरे अब भी मौजूद हैं। तीसरा, और सबसे महत्वपूर्ण, दुष्प्रचार अभियान हमारे सामाजिक तानेबाने को तोड़ने में जुटे हैं। इसलिए युद्ध अब गतिहीन और संपर्क रहित होता जा रहा है। ये फाइबर केबलों से गुजरता है, स्क्रीन पर झलकता है, पर्सों में घूमता है और हमारी कक्षाओं में युवाओं को उकसाता है।

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