पटना। बिहार में दोनों चरणों के मतदान के बाद अब इस बात का विश्लेषण हो रहा है कि इस राज्य की जनता ने 243 विधानसभा सीटों पर किस आधार पर रिकॉर्डतोड़ मतदान किए हैं।
विधानसभा चुनाव के दो चरणों में 65 से 70 प्रतिशत की रिकॉर्ड वोटिंग हुई, जिसे सियासी पंडित श्परिवर्तन की हुंकारश् मान रहे थे। यह धारणा कि ज्यादा वोटिंग सत्ता को हटाती है, देश के कई भाजपा शासित राज्यों में बार-बार टूट चुकी है। और अब, मतदान संपन्न होते ही आए ज्यादातर एग्जिट पोल इसी मिथक को बिहार में तोड़ते नजर आ रहे हैं। शुरुआती रुझानों का संकेत है कि श्निश्चय नीतीशश् का लंगर, श्तेजस्वी के परिवर्तन के जोशश् पर भारी पड़ सकता है और एनडीए की सरकार बनती दिख रही है।
आपको चुनाव के बीच से ही इस बदलते माहौल के बारे में बता रहा था। यह महज हवा नहीं थी, बल्कि बूथ मैनेजमेंट की अदृश्य ताकत थी, जिसने श्एंटी-इंकम्बेंसीश् को श्प्रो-इंकम्बेंसीश् में बदलते हुए दिखाया है। चुनाव तगड़ा लड़ा गया है। तेजस्वी की पार्टी राजद ने पूरी ताकत दिखाई, लेकिन महागठबंधन के अन्य दल उतने सक्षम नहीं दिखे। पटना की सड़कों पर अब इस विरोधाभासी नतीजे पर गहन सियासी उथल-पुथल का सन्नाटा तैर रहा है।
परिवर्तन की हुंकार क्यों टूटी? बंपर वोटिंग की वजह सिर्फ युवाओं का उत्साह नहीं था। दोनों ही गठबंधनों ने बूथ तक मतदाता को लाने में असाधारण ताकत लगाई, लेकिन अमित शाह का प्रबंधन निर्णायक साबित होता दिख रहा है। एनडीए के रणनीतिकारों ने प्रवासी बिहारी वोटरों को वापस लाने में जबरदस्त ताकत झोंकी, यह सुनिश्चित किया गया कि जो लोग काम के लिए बाहर हैं, उन्हें वोट देने के लिए गाँव लाया जाए। इसके साथ ही, ग्रामीण इलाकों में मुस्लिम महिलाओं को एक तरफ जहां नागरिकता खोने (सीएए और एनआरसी) का डर सताता रहा। वहीं छक्। ने उन्हें सुरक्षा और योजनाओं की निरंतरता का विश्वास दिलाकर अपने पाले में बनाए रखा। ज्यादा मतदान प्रतिशत इस बात का भी संकेत है कि एनडीए का कोर वोटर पूरी तरह से बाहर निकला, जिससे परिवर्तन की लहर दब गई।
निश्चय नीतीश और तेजस्वी का जोश
श्भरोसाश् जीतता दिख रहा है। श्बदलाव के जोखिमश् से एग्जिट पोल ने जो रुझान दिया, वह बताता है कि निश्चय नीतीश फैक्टर ने परिवर्तन की हुंकार को सफलतापूर्वक थामा। गांव-देहात में महिलाओं और बुजुर्गों का एक बडा वर्ग है, जिसके लिए कानून-व्यवस्था में सुधार और सरकारी योजनाओं की सीधी पहुंच ही सबसे बडा वादा थी। एग्जिट पोल संकेत देते हैं कि नीतीश पर श्भरोसाश् का भावनात्मक आधार, युवा आक्रोश से पैदा हुए श्बदलाव के जोखिमश् से अधिक मजबूत रहा। यानी, स्थिरता की गारंटी (निश्चय नीतीश) ने परिवर्तन की आशंका को हरा दिया। दूसरी तरफ, तेजस्वी ने युवाओं को एकजुट किया, लेकिन उस जोश को बूथ तक अंतिम वोट में बदलने में शायद चूक हो गई। सीवान के होटल लॉबी में युवा चर्चा कर रहे थे कि तेजस्वी के नौकरी के वादे पर श्हो जायेगा?श् वाला संदेह, अनुभवहीनता के कारण बना रहा, जिसने उनके समीकरणों को नुकसान पहुँचाया।
सीमांचल का सियासी गणित
ध्रुवीकरण ने राहत को लील लिया सीमांचल के क्षेत्र (जैसे किशनगंज, कटिहार, अररिया) में इस बार मुस्लिम मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी देखी गई, जो महागठबंधन के लिए बडी राहत थी। मुस्लिम मतदाताओं का यह जबरदस्त टर्नआउट राजद या महागठबंधन के लिए रक्षा कवच का काम करता है। यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके पारंपरिक वोटबैंक का शत-प्रतिशत ध्रुवीकरण हुआ है। लेकिन सवाल यह है कि एग्जिट पोल की एनडीए की ओर क्यों झुके? मुस्लिम वोटों की जबरदस्त एकजुटता भी शायद गैर-मुस्लिम वोटों के मजबूत ध्रुवीकरण (एनडीए के पक्ष में) को रोकने में असफल रही। यानी, एक पक्ष की एकजुटता ने दूसरे पक्ष को और अधिक संगठित कर दिया, जिससे महागठबंधन को मिलने वाली राहत पर पानी फिरता दिख रहा है।
बूथ के बाहर की खामोशी
वोटर की सेटिंग ही असली रिजल्ट! पटना के फ्रेजर रोड पर एक पान वाले की बात में चुभन थी कि “अरे साहब, हवा से सरकार बनत है? जनता अब खुदे मन बनावत है।” ग्राउंड पर यह सवाल अब एग्जिट पोल की सुई पर टिका है, जिसने साबित किया कि इस बार एनडीए के मजबूत बूथ मैनेजमेंट और श्साइलेंट महिला वोटरश् की सेटिंग ही असली गेम चेंजर रही। नदी किनारे खडे एक नौजवान ने बस मुस्कुराकर कहाकृ“ई चुनाव में नेता से ज़्यादा वोटर सेटिंग में बा३ देख लीं, असली रिजल्ट ओही लोग लाएगा।”
अंतिम फैसला 14 नवंबर को होगा, जब पता चलेगा कि एग्जिट पोल ने सही भविष्यवाणी की या बिहार की बोलती खामोशी ने एक बार फिर सबको चौंकाया है।