बांग्लादेश में हालात सुधरने के बजाय बिगड़ रहे हैं. चुनावों की घोषणा के बाद भी कट्टरपंथी इस्लामिक नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या से तनाव बढ़ गया है. भारत और अवामी लीग के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं. हादी के अतिवादी विचारों और भारत पर आरोप लगने से स्थिति और गंभीर हो गई है. आशंका है कि फरवरी में चुनाव टल सकते हैं, जिससे कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा मिलेगा और भारत की पूर्वी सीमा पर खतरा बढ़ेगा...
बांग्लादेश में स्थितियां सुधरने के स्थान पर बिगड़ने की ओर हैं। पहले समझा गया था कि चुनावों की घोषणा के साथ यह देश स्थिरता की ओर बढ़ेगा, पर चुनावों की घोषणा के कुछ घंटों के भीतर ही कट्टर इस्लामिक विचारधारा से जुड़े छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी पर ढाका में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा हमला कर दिया गया। हादी ने सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। उस पर हमले के बाद से ही बांग्लादेश में भारत और अवामी लीग के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू हो गए।
हादी की शिक्षा एक मदरसे में हुई थी। वह एक कट्टरपंथी मौलाना का बेटा था। अतिवादी जिहादी विचारधारा के चलते ही उसने कुछ दिन पहले भारत के पूर्वाेत्तर राज्यों पर कब्जा करने वाले बयान दिए थे। उस पर गोली चलाने वाले जानते थे कि हमले का आरोप भारत पर लगेगा और यही हुआ भी।
हादी पर हमले का उद्देश्य फरवरी में चुनाव न होने देना हो सकता है, क्योंकि चुनाव होने पर अमेरिकी पिट्ठू माने जाने वाले मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को जाना होता। हालांकि खालिद जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी चुनाव जीतने की स्थिति में है, परंतु अमेरिकी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों द्वारा पुनर्जीवित इस्लामिक कट्टरपंथी शक्तियों को अब खालिदा बूढ़ी और कमजोर लगती हैं।
उन्हें लगता है कि वे भारत के विरुद्ध एक सीमा से आगे नहीं जा सकतीं। वे बहुत अस्वस्थ हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। लंदन में रह रहे उनके बेटे तारिक अनवर बीएनपी का नेतृत्व करने के लिए बांग्लादेश लौट सकते हैं, पर वे सामाजिक विकास की योजनाओं के आधार पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, न कि भारत विरोध और कट्टरपंथ के नाम पर। कट्टरपंथी जमाते इस्लामी और खालिदा जिया की बीएनपी दशकों से गठबंधन में रहे हैं, पर अब वह टूट चुका है। जमात के पाकिस्तानपरस्त कट्टरपंथियों को लगता है कि उनके पास सत्ता पाने का मौका है।
बीएनपी इस्लामिक कट्टरपंथियों के प्रति नरम रवैया रखने के बावजूद 1971 के मुक्ति संग्राम को पवित्र मानती है। वहीं जमात बांग्लादेश बनने को इस्लामिक एजेंडे के साथ धोखा मानती है। उसके नेता पाकिस्तान के साथ एकीकरण चाहते हैं। 1971 में तो उसके नेता पाकिस्तान की फौज के साथ मिलकर मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना से लड़े भी थे। अब वे बीएनपी की जगह शेख हसीना के खिलाफ विद्रोह से उपजी नई पार्टियों जैसे हादी के इंकिलाब मंच के साथ बांग्लादेश पर राज करने का सपना देख रहे हैं।
हादी ने पिछले दिनों बीएनपी को भी धमकी दी थी कि अगर भारत के प्रति जरा भी नरम रवैया दिखाया तो उसकी सरकार वैसे ही पलट दी जाएगी, जैसे अवामी लीग की पलटी गई थी। हादी और जमाती अमेरिकापरस्त नई राजनीतिक शक्ति नेशनल सिटीजन पार्टी एनसीपी को भी आंखें दिखा रहे थे। एनसीपी में वही छात्र नेता हैं, जिन्होंने शेख हसीना सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। साफ है कि बांग्लादेश के अंदर ही बहुत सी शक्तियों के पास हादी की हत्या कराने के कारण थे, पर मोहम्मद यूनुस सरकार ने यह प्रोपोगंडा चलने दिया कि हादी की हत्या भारत ने कराई है और उसके हत्यारे भारत भाग गए हैं।
इसके बाद से भारतीय उच्चायोग के ठिकानों पर हमले शुरू हो गए। कट्टरपंथियों की भीड़ ने बांग्लादेश के दो सबसे बड़े अखबारों ‘द डेली स्टार’ और ‘प्रोथोम आलो’ को भारत का एजेंट बताते हुए उनके दफ्तरों को जला दिया। बांग्लादेश की फौज यह सब देखती रही। उसने कट्टरपंथियों की भीड़ पर कार्रवाई नहीं की। भीड़ ने एक हिंदू युवक को पीट-पीटकर मार डाला और उसकी लाश को चौराहे पर लटकाकर जला डाला।
अब अगर यह अस्थिरता आगे बढ़ती है तो यूनुस के पास फरवरी के चुनाव टालने का एक बहाना होगा। अगर ऐसा नहीं भी हुआ तो इस्लामिक कट्टरपंथी पार्टियों को सहानुभूति मिलेगी और उनकी सीटें बढ़ जाएंगी, जिसके चलते चुनाव बाद बीएनपी के किसी भी गठबंधन में दोयम दर्जे की साझेदार रह जाने की संभावना बढ़ती है।
भारत की समस्या बस इतनी ही नहीं है कि बांग्लादेश में अमेरिकापरस्त एनसीपी और पाकिस्तानपरस्त जमाती भावी सरकार का नेतृत्व करते दिख सकते हैं। जब शेख हसीना का तख्तापलट हुआ था तो उनके रिश्तेदार और बांग्लादेश के सेना प्रमुख वकारूजमां ने उन्हें सुरक्षित निकलने का रास्ता दिया था। इससे भारत ने यह सोचकर राहत की सांस ली थी कि कम से कम सेना तो सही हाथों में है, परंतु उसके बाद से बांग्लादेश के सैन्य नेतृत्व ने निराश ही किया है। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद भी सेना ने कट्टरपंथी भीड़ को प्रधानमंत्री आवास में घुसने दिया, जिसने वहां उनके अंतरूवस्त्र तक कैमरों के सामने लहराए।
इसके बाद जब यूनुस ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की जन्मतिथि मनाने पर प्रतिबंध लगाया और जमातियों ने उनकी मजार पर जाने वालों को पीटा तो भी वकारूजमां ने कुछ नहीं किया। क्या बांग्लादेशी सैनिकों का एक बड़ा धड़ा जमात के प्रभाव में है और वकारूजमां इस कट्टरपंथी विचारधारा के सामने मजबूर हैं? प्रश्न यह भी है कि क्या बांग्लादेश को भारत की सीमा पर सीरिया जैसे इस्लामिक गृहयुद्ध से ग्रस्त क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां भांति-भांति के इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पनप सकें?
बांग्लादेश में इस समय जमाती और यूनुस सरकार के घटक ग्रेटर बांग्लादेश का सपना देख रहे हैं, जिसमें म्यांमार का रखाइन प्रांत, पूर्वाेत्तर भारत के राज्य, पश्चिम बंगाल, ओडिशा एवं बिहार तक के हिस्सों पर कब्जा करके सिराजुद्दौला की बंगाल सल्तनत की स्थापना होगी। हादी ने अपने फेसबुक अकाउंट पर स्वयं इस आशय के पोस्ट किए थे।
सुनने में यह सब हास्यास्पद लग सकता है, पर इस पागलपन में करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशी विश्वास करते हैं और यह स्थिति बांग्लादेश को जिहाद का नया मंच बना देने के लिए काफी है। इसका अर्थ होगा भारत की पूर्वी सीमा पर भी पाकिस्तान की ही तरह एक आतंकी देश का उभरना और वहां रह रहे 1.30 करोड़ हिंदुओं के लिए अपनी जान बचाना मुश्किल होना।