न्याय के लिए दर दर भटक रहे परिजन
प्रयागराज (के एन उर्फ घंटी शुक्ला)। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डा० भगवान प्रसाद उपाध्याय के पौत्र एवं एक हिन्दी दैनिक के सम्पादक पवनेश पवन के पुत्र उत्कर्ष उपाध्याय के हत्यारों को धरती निगल गई अथवा आसमान, यह रहस्य हत्या के पच्चीस दिन बाद भी नहीं सुलझ पाया है। परिजन न्याय की आशा लिए आला अधिकारियों की चौखट पर हलाकान ह़ो रहे हैं और उनको आश्वासन से ही बोध करना पड़ रहा है।
बता दें कि उत्कर्ष बी टेक का छात्र था और विगत 31 दिसम्बर 2022 को उसे घर से उत्तर रेलवे पटरी के बीचों बीच औंधे मुंह पाया गया था जिसे स्थानीय प्रथम दृष्टया देखने वाले लोगों ने बिना किसी चिकित्सकीय इलाज के कथित तौर पर मृत घोषित कर दिया था और आनन-फानन में उसकी लाश को बिना पोस्टमार्टम कराए प्लास्टिक पॉलिथीन बैग में पैक कर दिया गया | परिजनों को केवल मुंह देखने की अनुमति थी और बदहवास एवं चेतना शून्य परिजनों को स्थानीय लोगों ने खूब जमकर छला और एन केन प्रकारेण जबरन पंचनामा करके उत्कर्ष की बॉडी परिजनों को सौंप दी गई | कई अनसुलझे प्रश्न परिजनों के मन में उसी दिन से घूम रहे हैं कि आखिर वह कौन लोग थे जिन्होंने यह घिनौना कृत्य करके रेल दुर्घटना की साजिश रची ? जबकि रेल के किसी भी रिकॉर्ड में रेल हादसे का कोई जिक्र नहीं है | आखिर वह कौन लोग थे ? जिन्होंने आनन-फानन में पंचनामा करने पर जोर दिया और परिजनों को बरगलाया | यहां तक कि घटनास्थल पर पहुंची पुलिस को भी भ्रमित किया गया | दोनों पत्रकार पिता-पुत्र को अलग-अलग लोगों ने आकर अलग-अलग तरीके से समझाया और एक दूसरे को मिलने नहीं दिया गया | ऐसी स्थिति में निर्णय न ले पाने के कारण लोगों को जबरन पंचनामा पर हस्ताक्षर करवा लिया गया आखिर वे कौन लोग थे ? जिन्होंने दाह संस्कार के लिए भी बहुत शीघ्रता करवाया और इतना उतावलापन कि आधे परिजन घर से बाहर होने के बाद भी दाह संस्कार की सारी व्यवस्था कर दी गई और आनन-फानन में उन्हें डीहा गंगा घाट पर पहुंचा दिया गया ? आखिर वे कौन लोग थे जिन्होंने गलत समाचार विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया ? और वह अपनी ओर से संस्कार का घाट भी बदल दिए ? आखिर वह कौन लोग थे जो अंतिम संस्कार के बाद अनर्गल कुतर्क करके दूसरे दिन भी परिजनों को समझाते रहे ? और रेल हादसा सिद्ध करने की घिनौनी साजिश रचते रहे ? आखिर वह कौन लोग थे जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया और वह आज बेखौफ घूम रहे हैं ? उच्चाधिकारियों तथा स्थानीय सांसद के दबाव के चलते 15 दिन बाद हत्या का मुकदमा कायम हुआ और अज्ञात के नाम अपराध संख्या 16 / 2023 पंजीकृत करके पुलिस जांच पड़ताल में जुटी | दर्जनों बार मिन्नतें करने के बाद उत्कर्ष के फोन का सीडीआर निकलवाया गया और मात्र कुछ लोगों का बयान लेकर के पुनः जांच जारी है जांच हो रही है साक्ष्य खोजे जा रहे हैं आदि आश्वासन दिया जाता रहा है ? आज भी कई यक्ष प्रश्न लोगों के मन में है कि आखिर कोई व्यक्ति रेल से टकराएगा तो उसका सिर उसी दिशा में क्यों रहेगा जिधर से ट्रेन आने की बात कही जा रही है ? कोई यदि रेल हादसे का शिकार होता है तो उसे सिर के अतिरिक्त और भी कहीं चोट लगनी चाहिए जबकि वह पूर्व की दिशा में औंधे मुंह गिरा पाया गया? जिन प्रत्यक्षदर्शियों ने फोटो खींचे उन्होंने उस दिन लोगों को क्यों नहीं दिखाया ? उन्होंने दूसरे दिन घिनौना कुतर्क परिजनों के सामने रखना शुरू किया ताकि वे साजिश कर्ताओं को बचा सकें ? आखिर जब घटना हुई उसके बाद उत्कर्ष का मोबाइल और उसके जेब में रखे इसके ₹19000 कहां चले गए ? जब उत्कर्ष का शरीर रेलवे ट्रैक पर मिला तो बिना सभी परिजनों के आए और घर के मुखिया के पहुंचने से पहले ही उसे सील क्यों कर दिया गया ? उत्कर्ष की मां उसकी बहन और उसकी दादी की आवाज दबाने की पूरी कोशिश क्यों की गई ? उपरोक्त तीनों महिलाओं ने बार-बार हत्या की आशंका जताई और एक स्थानीय पत्रकार ने भी इस बात के लिए संकेत किया कि यह संदिग्ध है किंतु उसे भी स्थानी कुछ संदिग्ध लोगों द्वारा धमकाया गया। इस गहरी साजिश के पीछे किसी शातिर दिमाग की उपज हो सकती है। घटना स्थल पर उपस्थित कुछ विशेष लोगों ने इस तरह का वातावरण निर्मित कर दिया कि सभी लोग सिर्फ रेल दुर्घटना ही मानें अन्य किसी घटना की ओर लोगों का दिमाग ना घूमे। जो लोग वहां मौजूद रहे वह अंत तक मौन क्यों रहे। पत्रकार परिवार का जमीनी विवाद पत्रकार परिवार का विद्यालय संबंधी विवाद भी संदेह के घेरे में आ रहा है क्योंकि विद्यालय में कई बार चोरी की घटनाएं हुई विद्यालय की गाड़ी की बैटरी भी चोरी हुई किंतु स्थानीय तत्कालीन पुलिसकर्मियों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था। पत्रकार परिवार की बढ़ती प्रतिष्ठा के प्रति किसी की ईर्ष्या भी घटना का हो सकती है। लोगों का यह भी अनुमान है कि आकस्मिक रूप से किसी ने लूट की घटना को अंजाम दिया हो और फिर उसे मारकर रेलवे ट्रैक पर रख दिया हो। गांव में दबे जुबान से इस बात की भी चर्चा है कि घटनास्थल के ठीक उत्तर की ओर मुख्य मार्ग पर मादक पदार्थों की बिक्री करने वाले एक गिरोह का शरण स्थल आज भी आबाद है और वहां आए दिन कथित अपराधियों का जमघट होता रहता है। पुलिस की निगाह उधर क्यों नहीं जा रही है। यह भी एक मौन प्रश्न है? जिन लोगों ने घटना को मोड़ने और अंतिम संस्कार तक सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाई वह सब बाद में लापता क्यों हो गए। उसमें से अधिकांश लोगों ने पीड़ित परिवार की कोई खोज खबर नहीं ली। अन्य जनपदों और अन्य प्रदेशों के सैकड़ों पत्रकार साथी पीड़ित पत्रकार के घर पहुंच सकते हैं लेकिन स्थानीय किसी पत्रकार ने वहां जाने की जहमत क्यों नहीं उठाई। यह सब यक्ष प्रश्न बार-बार अब आम जनमानस के लोगों में भी घुमडने लगा है। सभी शुभचिंतक न्याय के लिए उत्सुक हैं देखिए आगे क्या होता है।