प्रयागराज (राजेश सिंह)। पीडीए की नैनी में स्थित यमुना विहार आवासीय योजना के विद्युतीकरण के लिए टेंडर नियमों को ताक पर रखकर कराए गए हैं। तीन बार में हुई निविदा दो बार बिना कारण बताए निरस्त की गई। बार-बार निविदा कराने के बावजूद अंत में सिर्फ दो कंपनियां ही इस टेंडर में हिस्सा ले सकीं। इसमें भी एक की विड खोली ही नहीं गई। इसकी जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमेटी ने विद्युतीकरण के लिए कराई गई इस टेंडर प्रक्रिया में अनियिमितता की रिपोर्ट दी है।
इस मामले में तत्कालीन मुख्य अभियंता मनोज मिश्रा (अब मथुरा विकास प्राधिकरण में तैनात) पर गाज गिरने के संकेत मिले हैं। नैनी की यमुना विहार आवासीय योजना में 10 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से विद्युतीकरण के लिए 16 मार्च 2021 को निविदा आमंत्रित की गई थी। तब इसमें चार कंपनियों ने हिस्सा लिया। इनमें मेसर्स आरके इंटर प्राइजेज, मेसर्स एस रोवर प्रालि, मेसर्स गंगा इलेक्ट्रिकल और मेसर्स प्रभावती इलेक्ट्रिकल वर्क्स ने प्रतिभाग किया। इसमें दो कंपनियां अर्ह पाई गईं। जबकि, दो कंपनियों की अर्हता पूर्ण नहीं मानी गई। ऐसे में कम से कम तीन निविदा न होने की दशा में टेंडर निरस्त कर नए सिरे से दोबारा निविदा कराई गई।
इसमें गंगा इलेक्ट्रिकल और मेसर्स प्रभावती इलेक्ट्रिकल वर्क्स ने हिस्सा लिया। इस बार भी गंगा इलेक्ट्रिकल को ही अर्ह माना गया। इस बार भी तीन निविदा न आने की वजह से स्वच्छ प्रतिस्पर्धा के लिए तीसरी बार टेंडर कराया गया। इस बार भी इन्हीं दो फर्मों ने निविदा डाली।
इसमें भी गंगा इलेक्ट्रिकल को अनुमन्य करार देते हुए प्रभावती इलेक्ट्रिकल वर्क्स को लिक्विड एसेट्स न होने के कारण रेस से बाहर कर दिया गया। अरुण मिश्रा की ओर से लोकायुक्त से की गई शिकायत में कहा गया था कि एक ही फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए पीडीए के तत्कालीन मुख्य अभियंता मनोज मिश्र की ओर से ऐसा कराया गया।
कई वर्ष से वहां एक ही फर्म को अलग-अलग निविदाओं के जरिए कार्य आवंटित किए जाने पर उंगली उठाई गई। लोकायुक्त के निर्देश पर मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत ने इस मामले की जांच के लिए संयुक्त निदेशक कोषागार, मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग और अपर आयुक्त प्रशासन की तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की। इस जांच कमेटी की रिपोर्ट में गड़बड़ी सामने आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तीसरी पर कराई गई निविदा में दो फर्में अर्ह पाई गईं, लेकिन एक ही वित्तीय निविदा नहीं खोली गई। जबकि, दोनों फर्मों की वित्तीय निविदा खोली जानी चाहिए थी। तीन निविदा प्राप्त होने की दशा में ही टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के नियम का भी अनुपालन नहीं किया गया। ऐसे में इस टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता परिलक्षित होती है।