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विश्व पर्यावरण दिवस आपदा के कारण घर छोड़ने वालों में तीसरी बड़ी आबादी भारतीय

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नई दिल्ली। भारत में 2015 से 2024 के बीच बाढ़ और तूफानों जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 3.2 करोड़ लोगों को अपने ही देश में अपने रहने की जगह बदलने को मजबूर होना पड़ा। अपने ही देश में दर-ब-दर होने वालों की यह संख्या दुनिया में तीसरी सबसे अधिक है। इस तरह के आबादी के विस्थापन में चीन पहला और फिलीपीन दूसरा देश है। विश्व पर्यावरण दिवस से पूर्व यह खुलासा जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक, प्राकृतिक आपदाओं की वजह से दुनिया में 2015-24 बीच 210 देशों में कुल 26.48 करोड़ लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा। इस तरह से आपदा की वजह से घर छोड़ने (आपदा विस्थापन) वालों में पूर्वी और दक्षिण एशिया के लोग सबसे अधिक रहे। दुनिया में देशों के स्तर पर विस्थापन पर नजर डाले तो बांग्लादेश, चीन, भारत, फिलीपीन और अमेरिका में बीते 10 साल में सबसे अधिक आंतरिक विस्थापन के मामले देखने को मिले। इस सूची में 4.69 करोड़ विस्थापित लोगों के साथ चीन अव्वल रहा तो 4.61 करोड़ लोगों के विस्थापन के बाद फिलीपीन दूसरे नंबर पर रहा।

2024 में दुनियाभर में 4.58 करोड़ लोग हुए विस्थापित

आईडीएमसी की रिपोर्ट चेताती है कि यदि मौजूदा जलवायु स्थितियां बनी रहीं, तो भविष्य में हर साल औसतन 3.2 करोड़ लोग नदी और समुद्री तटों की बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी आपदाओं के कारण विस्थापित हो सकते हैं। यह खतरा 100ः बढ़ जाएगा।  

दुनियाभर में महज 2024 में ही 4.58 करोड़ लोगों को आपदाओं के चलते घर छोड़ना पड़ा। यह विस्थापन अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है। यह बीते 10 साल के औसत 2.65 करोड़ से काफी ऊपर है। भारत में 2024 में 54 लाख लोगों को बाढ़, तूफान और अन्य आपदाओं के कारण विस्थापित होना पड़ा और विस्थापन का यह आंकड़ा 12 वर्षों में सबसे अधिक रहा।

दक्षिण एशियाई देशों में अगले 10 साल में गर्मी का कहर रू विश्व बैंक

दक्षिण एशियाई देशों में अगले दशक में भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। जोखिम से लचीलेपन तक रू दक्षिण एशिया में लोगों और फर्मों को अनुकूलन में मदद करना शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में विश्व बैंक ने चेताया है कि दक्षिण एशिया चरम मौसम में तेजी से बढ़ोतरी झेल रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस से पूर्व मंगलवार को जारी विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक लगभग 90ः आबादी के गर्मी से जूझने की आशंका है।

रिपोर्ट में सुझाया कि दक्षिण एशियाई देशों की सरकारें नीतिगत सुधारों से लोगों और व्यवसायों को चरम मौसम से निपटने में मदद कर सकती हैं। विश्व बैंक की दक्षिण एशिया क्षेत्र की प्रमुख अर्थशास्त्री फ्रांजिस्का ओहन्सोर्ग ने कहा कि निजी क्षेत्र अगर पूरी तरह अनुकूलन करे तो क्षेत्र में संभावित जलवायु क्षति का एक-तिहाई हिस्सा टाला जा सकता है।

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