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बिजली विभाग के डायरेक्टर के सेवा विस्तार सिफारिश पर हंगामार


प्रयागराज/लखनऊ (राजेश सिंह)। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन ने एक बार फिर निदेशक वित्त निधि नारंग का सेवा विस्तार 6 महीने बढ़ाने के लिए शासन को पत्र भेजा है। शासन की ओर से 30 जुलाई को ही नारंग के सेवा विस्तार को इनकार कर दिया गया था।

पावर कॉर्पाेरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल के इस निर्णय से निजीकरण का विरोध कर रहे बिजली कर्मचारियों में आक्रोश है। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि डॉ. गोयल बारदृबार वित्त निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने के लिए क्यों लालायित हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि नारंग के जरिए निजीकरण की प्रक्रिया पूरी कराकर डॉ. गोयल खुद को कोई फायदा पहुंचाना चाहते हैं। यूपीपीसीएल निदेशक वित्त निधि कुमार नारंग का 17 अगस्त 2025 को समाप्त हो रहा कार्यकाल।

दो बार पहले भी मिल चुका है सेवा विस्तार

पावर कॉरपोरेशन में वित्त निदेशक निधि कुमार नारंग को दो बार पूर्व में छह-छह महीने का सेवा विस्तार मिल चुका है। अब तीसरी बार सेवा विस्तार की पैरवी किए जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस बार मामला इस कारण और तूल पकड़ रहा है कि 30 जुलाई को ही शासन ने सेवा विस्तार को नामंजूर कर दिया था। सेवा विस्तार का पत्र यूपीपीसीएल की ओर से 14 जुलाई को भेजा गया था। इस पर शासन में विशेष सचिव राजकुमार ने सेवा विस्तार की इस सिफारिश को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि शासन स्तर पर उक्त प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं पाया गया है। नारंग का कार्य विस्तार अब संभव नहीं है। दो-टूक अंदाज में मना करने के बावजूद 31 जुलाई को यूपीपीसीएल की ओर से नए सिरे से सेवा विस्तार का पत्र शासन को भेजा गया है। इसमें बताया गया है कि 9 अप्रैल 2025 को निदेशक वित्त के पद पर पुरुषोत्तम अग्रवाल का चयन किया गया था। पर उन्होंने कार्यभार ग्रहण नहीं किया। इसके बाद शासन की मंजूरी से 15 मई को निधि कुमार नारंग को निदेशक वित्त बनाया गया। 23 मई को नारंग को तीन महीने की अवधि के लिए कार्य विस्तार दिया गया था। ये 17 अगस्त 2025 को समाप्त हो रहा है। मतलब 18 अगस्त को निदेशक वित्त का पद रिक्त हो जाएगा। 30 जुलाई को शासन ने नारंग का कार्यकाल बढ़ाने से मना करते हुए ये पत्र जारी किया था।

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यूपीपीसीएल की ओर से सेवा विस्तार के लिए दिया गया 5 तर्क

निदेशक वित्त पद पर निधि कुमार नारंग को सेवा विस्तार देने का कारण बताते हुए यूपीपीसीएल की ओर से शासन को लेटर भेजा गया है। जिसमें लिखा है- ऊर्जा विभाग के विभिन्न निगमों, कॉरपोरेशन और सहयोगी वितरण कंपनियों में निदेशक के 15 पद भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से चयन की प्रक्रिया चल रही है। इसमें निदेशक वित्त का पद भी शामिल है। इस प्रक्रिया के पूरी होने तक नारंग को सेवा विस्तार दिया जाए।

इसके अलावा ये भी बताया गया है कि निधि नारंग सक्षम, कार्यकुशल और पावर सेक्टर के विभिन्न कंपनियों में कार्य कर चुके दक्ष अधिकारी हैं। इसके पूर्व वे एनटीपीसी, एमबी पावर, हिंदुस्तान पावर प्रोजेक्ट, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के वित्त क्षेत्र में वरिष्ठ पदों पर कार्य कर चुके हैं।

शासन के निर्देश पर ऊर्जा विभाग में चल रहे निजीकरण की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर का चयन हो चुका है। उनके द्वारा बिजली वितरण कंपनियों का बैलेंस शीट आदि सूचना जुटाई जा रही है। इसके लिए अभी यूपीपीसीएल को एक अनुभवी निदेशक वित्त की जरूरत है।

प्रस्तावित बिजली सुधार की प्रक्रिया में निदेशक वित्त की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें निगमों के असेट वैल्यूएशन, बैलेंस सीट, इक्यूटी की गणना आदि के काम होते हैं। डेटा कलेक्शन, चयनित टीए के साथ समन्वय बनाकर सूचनाओं को समय पर उपलब्ध कराना, रेग्यूलेटर के साथ समन्वय करना, ऑडिटर के माध्यम से सही बैलेंस सीट और असेट का आकलन करने जैसा महत्वपूर्ण दायित्व निदेशक वित्त का होगा। यूपीपीसीएल सहित अन्य ऊर्जा निगमों में तैनात किसी भी अन्य निदेशक वित्त के पास ऐसा अनुभव नहीं है।

निजीकरण का ड्राफ्ट स्ट्रैटजी पेपर सहित सभी अभिलेख तैयार कर लिए गए हैं। एनर्जी टास्क फोर्स एम्पावर्ड कमेटी के सामने 16 मई को ये पेश किया जा चुका है। एंपावर्ड कमेटी इस पर निर्णय लेते हुए राज्य सरकार के माध्यम से नियामक आयोग को भेज चुकी है। इस पर आयोग की अंतरिम टिप्पणी भी राज्य सरकार को भेजी गई है। राज्य सरकार ने इस पर यूपीपीसीएल से राय मांगी है। आयोग को उसकी अंतरिम टिप्पणी में मांगी गई नई विद्युत वितरण निगमों की प्रस्तावित बैलेंस शीट, कंपनीज एक्ट और रेगुलेशन पर जवाब देना है। निजीकरण की प्रक्रिया में एक वर्ष का समय लगेगा। ऐसे में इस निजीकरण प्रक्रिया का हिस्सा रहे निधि नारंग का नियमित निदेशक वित्त के चयन होने तक रहना जरूरी है।

छह महीने या नए निदेशक की नियुक्ति तक सेवा विस्तार देने की मांग

यूपीपीसीएल की ओर से शासन को भेज गए कार्य विस्तार अनुमति पत्र में साफ लिखा है कि निधि कुमार नारंग का सेवा कार्य अधिकतम 6 महीने या नए निदेशक के कार्यग्रहण करने तक, जो भी कम हो, बढ़ाया जाए। नारंग की उम्र 63 वर्ष है। ऊर्जा निगमों में निदेशक पद के लिए अभी तक अधिकतम 62 वर्ष की उम्र निर्धारित थी। पर नई सेवा शर्तों में इसे अधिकतम 65 करना प्रस्तावित है। इस आधार पर शासन से निधि कुमार नारंग को सेवा विस्तार देने की मांग की गई है।

निजीकरण के खिलाफ आंदोलन चला रहे विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे कहते हैंदृ यूपीपीसीएल के अध्यक्ष डॉ. गोयल निजी कंपनियों के इशारे पर काम कर रहे हैं। सवाल उठाया कि निधि नारंग ने ही निजीकरण के लिए नियुक्त कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्नटन को झूठा एफिडेविट पत्र देने के बावजूद क्लीन चिट दी थी। जबकि इस एजेंसी पर अमेरिका में 40 करोड़ की पेनॉल्टी लग चुकी है।

इससे साफ है कि निधि कुमार नारंग और कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्नटन के बीच नजदीकी है। उन्होंने ये भी आरोप लगाए कि निजीकरण की गोपनीय फाइलें भी नारंग इस कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्नटन के साथ साझा कर रहे हैं। शैलेंद्र दुबे ने कहा जब सरकार ने 30 जुलाई को कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था, तो अब फिर से क्यों नए सिरे से सेवा विस्तार का पत्र शासन को भेजा गया?

संघर्ष समिति ने मुख्य सचिव को भेजा पत्र

संघर्ष समिति ने नवनियुक्त मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल को पत्र भेजा है। मांग की है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया में निदेशक वित्त निधि नारंग की भूमिका शुरू से ही बहुत विवादास्पद रही है।

निजीकरण के लिए नियुक्त ट्रांजैक्शन कंसलटेंट ग्रांट थॉर्नटन को झूठा एफिडेविट पत्र देने के मामले में भी निधि नारंग ने ही क्लीन चिट दी है। पत्र में मुख्य सचिव से मांग की है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को देखते हुए निधि नारंग को किसी भी कीमत पर सेवा विस्तार न दिया जाए। पिछले पांच साल में सबसे अधिक इस वित्तीय वर्ष में 19,644 करोड़ का गैप।

पिछले 5 वर्ष में सबसे अधिक वित्तीय घोटाले हुए

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा के मुताबिक, पिछले पांच वर्ष में सबसे अधिक वित्तीय घोटाले हुए हैं। इस वर्ष सबसे अधिक 19,644 करोड़ का घाटा दिखाया गया है। इससे साफ है कि ये सब कुछ निजीकरण के मसौदे को पूरा करने और निजी घरानों को लाभ पहुंचाने की पूरी साजिश है।

अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया कि 1 अगस्त को विद्युत नियामक आयोग में कॉस्ट डेटा बुक को लेकर पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष सहित निदेशकों के साथ गुपचुप बैठक की गई। इस बैठक की आड़ में निजीकरण के मसौदे की कमियों को दूर करना था।

निजीकरण की प्रक्रिया वाले मसौदे पर विद्युत नियामक आयोग की आपत्तियों पर आज तक प्रदेश सरकार और पावर कॉरपोरेशन जवाब नहीं दे पाया। वित्त निदेशक के रहते किसी एक वित्तीय वर्ष में 19,644 करोड़ का गैप पहुंचना ऐतिहासिक है।

नई कॉस्ट डेटा बुक जो तैयार हो रही है और उसमें 50ः तक कनेक्शन लेने का शुल्क बढ़ाने की तैयारी है। जबकि सभी को पता है कि कॉस्ट डेटा बुक, सप्लाई कोड रिव्यू पैनल सब कमेटी में पेश होगा, तभी फाइनल होगा। ऐसे में पावर कॉरपोरेशन और नियामक आयोग की कॉस्ट डेटा बुक की आड़ में हुई मैराथन बैठक सभी के समझ से बाहर है।


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